Monday, October 10, 2016

अगर मज़ार पे सूरज भी ला के रख दोगे
अजल-नसीब न पाएगा रौशनी का सुराग़
भटक रहे हैं अँधेरों में कारवाँ कितने
जला सको तो जलाओ सदाक़तों के चराग़
-आमिर उस्मानी

(अजल-नसीब = जिसकी क़िस्मत में मरना लिखा हो, नश्वर), (सदाक़तों = सच्चाइयों)

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