Sunday, November 6, 2016

ख़ुदा ख़ामोश है

बहुत से काम हैं
लिपटी हुई धरती को फैला दें
दरख़्तों को उगाएँ
डालियों पे फूल महका दें
पहाड़ों को क़रीने से लगाएँ
चाँद लटकाएँ
ख़लाओं के सरों पे नील-गूँ आकाश फैलाएँ
सितारों को करें रौशन
हवाओं को गति दे दें
फुदकते पत्थरों को पँख दे कर नग़्मगी दे दें
लबों को मुस्कुराहट
अँखड़ियों को रौशनी दे दें
सड़क पर डोलती परछाइयों को
ज़िंदगी दे दें

ख़ुदा ख़ामोश है!
तुम आओ तो तख़्लीक़ हो दुनिया
मैं इतने सारे कामों को अकेला कर नहीं सकता

-निदा फ़ाज़ली

(दरख़्तों = पेड़ों), (ख़लाओं = शून्य), (नग़्मगी = गीत), (तख़्लीक़ = उत्पत्ति करना, सृजन)

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