Tuesday, March 28, 2017

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम

(मरासिम = मेल-जोल, प्रेम-व्यवहार)

सहरा-ए-ज़िंदगी में कोई दूसरा न था
सुनते रहे हैं आप ही अपनी सदाएँ हम

(सहरा-ए-ज़िंदगी = ज़िन्दगी के रेगिस्तान), (सदाएँ = आवाज़)

इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम

(फ़राग़त = अवकाश, सुख, आराम, चैन)

तू इतनी दिल-ज़दा तो न थी ऐ शब-ए-फ़िराक़
आ तेरे रास्ते में सितारे लुटाएँ हम

( दिल-ज़दा = जिसका दिल घायल हो, दुखित), (शब-ए-फ़िराक़ = जुदाई की रात)

वो लोग अब कहाँ हैं जो कहते थे कल 'फ़राज़'
है है ख़ुदा-न-कर्दा तुझे भी रुलाएँ हम

(ख़ुदा-न-कर्दा = ख़ुदा न करे)

-अहमद फ़राज़

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