Friday, August 4, 2017

दास्तान ए रेख़्ता

बेसहारा, बे-नवा, बेचारा, बेकस, रेख़्ता
कूचा ओ बाज़ार में था मुफ़लिसी में फिर रहा
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ताकता था हसरतों से कोठियों की शान को
देखता था हैरतों से पीर और तिफ़्लान को
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धोबी, मोची, बनिया, बुनकर और सिपाही ज़ात के
थे फ़क़त एहल ए ज़ुबां उन मुख़्तसर औक़ात के
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साहिबान ए बज़्म को भाता था कब फूटी नज़र
पर इनायत का वो उनके मुंतज़िर था किस क़दर
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दस्त ए शफ़क़त से क़ुतुब शह के ज़रा क़िस्मत खुली
कुछ तवानाई भी आई जब वली की शह मिली
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था वली का क़ौल, जो मिस्कीन का बानी हुआ
"ग़म तेरा सीने में मेरे हमदम-ए-जानी हुआ"
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चल के दक्कन से ये देहली आ गया था बे-वतन
पर यहाँ भी हाल उसका था जो था मुल्क ए दकन
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आरज़ू ओ आबरू ओ  मिर्ज़ा  मज़हर जानेजाँ
की मेहरबानी से बाक़ी है अभी नाम ओ निशाँ
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वरना मारे देते थे इस को तो हज़रात ए सुख़न
और नज़्र ए गोर करते इसको सब एहल ए वतन
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था जुआ-ख़ाने की ज़ीनत, मैकदे में पल रहा
चावड़ी बाज़ार में ख़ानम के कोठे का दिया
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फ़ारसी थी सर चढ़ी बज़्म ए तरब में इस क़दर
रेख़्ता को बैठने देता ना था कोई बशर
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दर्द, सौदा भी सिराज ओ क़ायम ए उर्दू शिनास
पुख़्ता करने में लगे थे रेख़्ता की वो असास
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आया देहली में नज़र जो शायरों का पीर था
नाम उस आशुफ़्ता सर का हम बताएँ मीर था
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क्या कहूँ बस सोज़ से दीवान तक लबरेज़ है
"हर वरक़ हर सफ़हा में इक शेर ए शोर-अंगेज़ है"
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कूचा ए देहली में गूँजी रेख़्ता की बोलियाँ
फ़ारसी सरकी ज़रा कुछ जा बनाई दरमियाँ
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फिर नज़ीर ओ मस्हफ़ी, इंशा ओ जुरअत, ज़ौक़ भी
परवरिश में लग गये और परवरिश भी ख़ूब की
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एक बदक़िस्मत ज़फ़र भी था जो था एहल ए क़लम
पर कलाम इसका है नज़्र ए जौर ए  एहबाब ए करम
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कू ए जानाँ में अजब कोहराम बरपा हो गया
"छोड़ कर काबा को बुत-ख़ाना में जब मोमिन फँसा"
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ख़ान ए मोमिन था इन्ही वक़्तों का इक शायर भला
था तख़य्युल जिस का नाज़ुक और तगज़्ज़ुल दिलरुबा
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रेख़्ता को पर नयी इक ताज़गी दरकार थी
इस ग़िज़ाल ए गुलसिताँ को हाजत ए रफ़्तार थी
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फ़ारसी को रश्क हो जिस पर वो आया अन्क़रीब
गुलशन ए ना आफ़रीदा का नवा संज अंदलीब
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बरगज़ीदा आसियों में पर सुख़न का था वली
ग़ालिब ए शीरीं बयाँ से कौन रहता अजनबी
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आबरू जिस की ना थी एहल ए वतन के दरमियाँ
ता क़यामत याद रख्खेगा उसे सारा जहाँ
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वो सुख़नवर बस असदुल्लाह ख़ाँ ग़लिब ही था
"बज़्म ए मय वहशत कदा था जिस के हर्फ़ ए मस्त का"
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इस ज़माने में हुए पंडित दया शंकर नसीम
रेख़्ता के वास्ते ये नाम है बेहद अज़ीम
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आया फिर दश्त ए सुख़न में एक वो मोजिज़ बयाँ
रेख़्ता का फ़ख़्र थी जिस की ज़ुबाँ की शोख़ियाँ
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दाग़ के तर्ज़ ए बयाँ पर सब को हैरानी हुई
"अश्क-अफ़्शानी भी उसकी गौहर-अफ़्शानी हुई"
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ख़ूबी ए गुफ़्तार में उस से ना था ऊँचा कोई
वैसा इक उस्ताद भी आया ना दोबारा कोई
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दाग़ के ज़ेर ए नज़र फिर ये हुआ कुछ मामला
रेख़्ता तालीम पा कर और मोहज़्ज़ब हो गया
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गो कि शायर ख़ूब तर पैदा हुए तब और अब
इन में लेकिन ख़ास हैं कुछ जिन से है रौशन अदब
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रेख़्ता है जिन से मुमकिन, जिस की ये दस्तार हैं
मीर ओ ग़ालिब, दाग़ ओ मोमिन, यार इस के चार हैं
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रेख़्ता इज्दाद का तोहफ़ा है, इक तहज़ीब है
दिल से दिल के राब्ते के वास्ते तरकीब है
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एक गौहर क़ीमती है हाथ में हम आप के
ये अगर गुम हो गया तो हाथ मलते जाएँगे
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क्यूँ सिखाएं अपने बच्चों को यहाँ जंग ओ जदल
बस मोहब्बत ही है जब सरमाया ए नज़्म ओ ग़ज़ल
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बात बाबर ख़ूब खींची तूने अब कर मुख़्तसर
कुछ ख़ता गर हो गयी हो कीजिएगा दरगुज़र
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-बाबर इमाम
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===meanings====
tiflaan = bachche, children
tawaanaai = taaqat, strength
shafqat = affection
bazm e tarab =khushi ki mehfil
urdu shinaas = urdu pehchaanne waale
asaas = neev
aashufta = bikhra hua, scattrered
labrez = bhara hua
safha = page
takhayyul = khayaal
taghazzul = ghazal ki khoobsurti, rhythm
naa afreeda = jo abhi bana nahin
andaleeb = a singing bird
nawaa sanj = gaane waala
bagazeeda = respected
aasiyon = gunahgaar
sheereeN bayaaN = jis ki baaten meethi hon
mojiz bayaaN = jis ki baaton mein jaadu ho
ashk-afshaani = aansuon bikherna
gauhar-afshaani = moti bikherna
guftaar = bolna
mohazaab = paak, behtar, civilized
dastaar = pagRi, izzat
ijdaad = poorvaj, ancestors,
tehzeeb = culture
raabta = contact
jang o jadal = war and battle
mukhtasar = short
Khata = ghalti
darguzar = overlook

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