Sunday, January 20, 2019

मस्ज़िदों का न अब ये शिवालों का है

मस्ज़िदों का न अब ये शिवालों का है
मसअला तो वही दो निवालों का है।

नफ़रतों तुम कहीं दूर जा कर बसो
ये हमारा जहां प्यार वालों का है।

झूठ कहना तो ऐसे कि सच ही लगे
ये हुनर भी तो अख़बार वालों का है।

कह चुके तुम तुम्हारे ही मन की मगर
मरहला तो हमारे सवालों का है।

(मरहला = पड़ाव, ठिकाना, मंज़िल)

ढूँढना यूँ ख़ुदा कोई मुश्किल नहीं
इसमें झगड़ा मगर बीच वालों का है।

- विकास "वाहिद"
२३/०१/२०१९

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