Friday, February 22, 2019

चंद लम्हों की रिफ़ाक़त ही ग़नीमत है कि फिर
चंद लम्हों में ये शीराज़ा बिखर जाएगा

(रिफ़ाक़त = मेल-जोल, भाई-चारा, साहचर्य, बंधुत्व), (शीराज़ा = पुस्तकों की सिलाई में वो डोरा या फ़ीता जी जिल्द को बांधे रखता है, क्रम, तर्तीब, बिखरी हुई चीज़ों की एकत्रता)

अपनी यादों को समेटेंगे बिछड़ने वाले
किसे मालूम है फिर कौन किधर जाएगा

-मुशफ़िक़ ख़्वाजा

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