दूर तक एक स्याही का भँवर आएगा
ख़ुद में उतरोगे तो ऐसा भी सफ़र आएगा
आँख जो देखेगी दिल उस को नहीं मानेगा
दिल जो देखेगा वो आँखों में उभर आएगा
अपने एहसास का मंज़र ही बदल जाएगा
आँख झपकेगी तो कुछ और नज़र आएगा
और चलना है तो बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर निकलो भी
न किसी अब्र का साया न शजर आएगा
(बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर = बिना डरे, निर्भयता के साथ), (अब्र = बादल), (शजर = पेड़)
ख़त्म हो जाएगी जब जश्न-ए-मुलाक़ात की रात
याद बुझते हुए ख़्वाबों का नगर आएगा
-खलील तनवीर
ख़ुद में उतरोगे तो ऐसा भी सफ़र आएगा
आँख जो देखेगी दिल उस को नहीं मानेगा
दिल जो देखेगा वो आँखों में उभर आएगा
अपने एहसास का मंज़र ही बदल जाएगा
आँख झपकेगी तो कुछ और नज़र आएगा
और चलना है तो बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर निकलो भी
न किसी अब्र का साया न शजर आएगा
(बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर = बिना डरे, निर्भयता के साथ), (अब्र = बादल), (शजर = पेड़)
ख़त्म हो जाएगी जब जश्न-ए-मुलाक़ात की रात
याद बुझते हुए ख़्वाबों का नगर आएगा
-खलील तनवीर
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