Monday, July 1, 2019

करता हूँ इस लिए मैं तेरे ग़म की जुस्तजू
काँटों के ख़रीदार सारे नहीं होते

साहिल के तलब-गार ये पहले से जान लें
दरिया-ए-मुहब्बत में किनारे नहीं होते

-"फ़ना" निज़ामी कानपुरी

(जुस्तजू = तलाश, खोज), (साहिल = किनारा)

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