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Monday, September 21, 2020

ज़ूम

तुझे ऐ ज़िंदगी अब आँख भर के देखना है,
तेरी बारीकियों को 'ज़ूम' कर के देखना है

ग़लत इल्ज़ाम कैसे ‘फ़ेस’ करती है हक़ीक़त,
ये ख़ुद पर ही कोई इल्ज़ाम धर के देखना है.

ज़माने का चलन है~ भावनाएँ ‘कैश’ करना,
ज़माने पर भरोसा फिर भी कर के देखना है.

किसी की शख़्सियत का ‘वेट’ है किस-किस के ऊपर ?
पहाड़ों से तराई में उतर के देखना है.

चिता की राख से और क़ब्र की गहराइयों से,
कहाँ जाते हैं सारे लोग, मर के देखना है.

डरा हूँ दोस्तों की भीड़ से अक्सर, मगर अब-
मुझे अपने अकेलेपन से डर के देखना है.

-आलोक श्रीवास्तव 

Sunday, November 6, 2016

यह तो किया कि सब पे भरोसा नहीं किया

यह तो किया कि सब पे भरोसा नहीं किया
लेकिन किसी के साथ में धोखा नहीं किया

घर से बुला के लाई हैं, घर की ज़रूरतें
मैंने ख़ुशी से पर ये दरिया नहीं किया

सारे चिराग़ मैंने लहू से जलाये हैं
जुगनू पकड़ के घर में उजाला नहीं किया

ऐसा न था के दर्द से बेचैन भी न थे
लेकिन सड़क पे कोई तमाशा नहीं किया

'मश्कूर' मैंने उम्र गरीबी में काट दी
लेकिन किसी अमीर को सजदा नहीं किया

-मश्कूर अली

Sunday, November 15, 2015

बढ़े चलिये, अँधेरों में ज़ियादा दम नहीं होता

बढ़े चलिये, अँधेरों में ज़ियादा दम नहीं होता
निगाहों का उजाला भी दियों से कम नहीं होता

भरोसा जीतना है तो ये ख़ंजर फैंकने होंगे,
किसी हथियार से अम्नो-अमाँ क़ायम नहीं होता

मनुष्यों की तरह यदि पत्थरों में चेतना होती
कोई पत्थर मनुष्यों की तरह निर्मम नहीं होता

तपस्या त्याग यदि भारत की मिट्टी में नहीं होते
कोई गाँधी नहीं होता, कोई गौतम नहीं होता

ज़माने भर के आँसू उनकी आँखों में रहे तो क्या
हमारे वास्ते दामन तो उनका नम नहीं होता

परिंदों ने नहीं जाँचीं कभी नस्लें दरख्तों की
दरख़्त उनकी नज़र में साल या शीशम नहीं होता

(दरख्त = पेड़)

-अशोक रावत

Tuesday, July 9, 2013

साया बनकर साथ चलेंगे इसके भरोसे मत रहना
अपने हमेशा अपने रहेंगे इसके भरोसे मत रहना

सावन का महीना आते ही बादल तो छा जाएँगे
हर हाल में लेकिन बरसेंगे इसके भरोसे मत रहना

सूरज की मानिंद सफ़र पे रोज़ निकलना पड़ता है
बैठे-बैठे दिन बदलेंगे इसके भरोसे मत रहना

बहती नदी में कच्चे घड़े हैं रिश्ते, नाते, हुस्न, वफ़ा
दूर तलक ये बहते रहेंगे इसके भरोसे मत रहना
-हस्तीमल 'हस्ती'

Tuesday, May 14, 2013

यूँ न मुरझा कि मुझे ख़ुद पे भरोसा न रहे,
पिछले मौसम में तिरे साथ खिला हूँ मैं भी।
-मज़हर इमाम 

Thursday, September 27, 2012

इरादे जिस दिन से उड़ान पर हैं।
हजारों तीर देखिये कमान पर हैं।


लोग दे रहे हैं कानों में उँगलियाँ,
ये कैसे शब्द आपकी ज़ुबां पर है।

मेरा सीना अब करेगा खंजरों से बगावत,
कुछ भरोसा सा इसके बयान पर हैं।

झुग्गियों की बेबसी तक भी क्या पहुंचेगी,
ये बहस जो गीता और कुरान पर है।

मक्कारों और चापलूसों से दो चार कैसे होगा,
तेरे पैर तो अभी से थकान पर है ।

-मुनव्वर राना
कुर्बत भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता
वो शख़्स कोई फ़ैसला कर भी नहीं जाता

आँखें हैं के खाली नहीं रहती हैं लहू से
और ज़ख्म--जुदाई है के भर भी नहीं जाता

दिल को तेरी चाहत पर भरोसा भी बहुत है
और तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता

पागल होते हो 'फ़राज़' उससे मिले क्या
इतनी सी ख़ुशी से कोई मर भी नहीं जाता
-अहमद फ़राज़

Tuesday, September 25, 2012

डूबी हैं मेरी उँगलियाँ मेरे ही लहू से,
ये कांच के टुकड़ों पर भरोसे की सजा है
-शायर: नामालूम