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Sunday, November 15, 2015

थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँ

थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँ
ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूँ

मैंने सिर्फ उसूलों के बारे में सोचा भर था
कितनी मुश्किल से मैं अपनी जान बचा पाया हूँ

कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकी-महकी यादें
जीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूँ

मुझमें शायद थोड़ा सा आकाश कहीं पर होगा
मैं जो घर के खिड़की रोशनदान बचा पाया हूँ

इसकी क़ीमत क्या समझेंगे ये सब दुनिया वाले
अपने भीतर मैं जो इक इंसान बचा पाया हूँ

खुशबू के अहसास सभी रंगों ने छीन लिए हैं
जैसे-तैसे फूलों की मुस्कान बचा पाया हूँ

-अशोक रावत

Wednesday, January 14, 2015

कहीं खोया ख़ुदा हमने, कहीं दुनिया गँवाई है
बड़े शहरों में रहने की बड़ी क़ीमत चुकाई है
-शकील आज़मी

Saturday, August 16, 2014

चन्द सिक्के दिखा रहे हो क्या
तुम मुझे आज़मा रहे हो क्या ?

मैं सिपाही हूँ कोई नेता नहीं
मेरी क़ीमत लगा रहे हो क्या ?

शहर लेता है इम्तिहान कई
लौटकर गाँव जा रहे हो क्या ?

फिर चली गोलियाँ उधर से जनाब
फिर कबूतर उड़ा रहे हो क्या ?

पत्रकारों ! ये ख़ामुशी कैसी
चापलूसी की खा रहे हो क्या ?

-आशीष नैथानी 'सलिल'

Friday, August 16, 2013

तोहफ़ा समझ के झोली में डाली नहीं गयी,
आज़ादी एक दुआ थी जो खाली नहीं गयी |
बलिदान तो अनमोल थे क़ीमत चुकाते क्या,
हमसे तो विरासत भी संभाली नहीं गयी |
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Sunday, August 11, 2013

कितनी मुश्किल उठानी पड़ी
जब हक़ीक़त छुपानी पड़ी

शर्म आती है ये सोच कर
दोस्ती आजमानी पड़ी

हर मसीहा को हर दौर में
सच की क़ीमत चुकानी पड़ी

जो थी मेरी अना के ख़िलाफ़
रस्म वो भी निभानी पड़ी

रास्ते जो दिखाता रहा
राह उसको बतानी पड़ी

थी हर इक बात, जिस बात से
बात वो भी भुलानी पड़ी

-हस्तीमल 'हस्ती'

Thursday, June 20, 2013

वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है

इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्‍नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है

कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्‍क इस माने में बुधुआ की लुगाई है

रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बतलाएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है

-अदम गोंडवी

Thursday, May 30, 2013

अलफ़ाज़ गिरा देते हैं जज़्बात की क़ीमत
जज़्बात को लफ़्ज़ों में न ढाला करे कोई
-शायर: नामालूम

Thursday, March 14, 2013

कीमत फ़क़त बशर की गिरी है वगरना आज,
हर एक शै का दाम कहीं से कहीं गया।
-जगन्नाथ आज़ाद

(बशर = इंसान)

Friday, March 1, 2013

वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा,
मैं उसके ताज की क़ीमत लगा के लौट आया।
-राहत इन्दौरी

 (कासा = भिक्षापात्र)

Friday, September 28, 2012

वो ख़ुश है कि बाज़ार में गाली मुझे दे दी
मैं ख़ुश हूँ एहसान की क़ीमत निकल आई

-मुनव्वर राना

Tuesday, September 25, 2012

यहाँ लिबास की कीमत है, आदमी की नहीं

यहाँ लिबास की क़ीमत है, आदमी की नहीं
मुझे बड़े गिलास दे साक़ी, शराब कम कर दे
-बशीर बद्र