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Saturday, December 18, 2021

ज़िन्दगी की तलाश जारी है

ज़िन्दगी की तलाश जारी है
इक ख़ुशी की तलाश जारी है।

हर तरफ़ ज़ुल्मतों के मौसम में
रौशनी की तलाश जारी है।

(ज़ुल्मत = अंधेरा)

इस उदासी के ढेर के नीचे
इक हँसी की तलाश जारी है।

जो बचा ले सज़ा से हाक़िम को
उस गली की तलाश जारी है।

(हाक़िम  = न्यायाधिश, जज, स्वामी, मालिक, राजा, हुक्म करने वाला)

जो परख ले हमें यहां ऐसे
जौहरी की तलाश जारी है।

खो गया है कहीं कोई मुझमें
बस उसी की तलाश जारी है।

मिल गए हैं ख़ुदा कई लेकिन
आदमी की तलाश जारी है।

- विकास जोशी "वाहिद"  १३/१२/१९

Monday, June 22, 2020

ख़ुदा की उस के गले में अजीब क़ुदरत है
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है
-बशीर बद्र

Thursday, May 7, 2020

कभी उजालों की सम्त माइल कभी अंधेरों में खो रहा हूँ
तुझे बिखरने से क्या बचाऊँ मैं ख़ुद भी तक़्सीम हो रहा हूँ
-इक़बाल अशहर

(सम्त = तरफ़, ओर),(माइल =आकर्षित, आसक्त), (तक़्सीम = बाँटने की क्रिया या भाव, बँटाई)

Sunday, February 23, 2020

अंतस में जिसके रहा सच्चाई का वास
चेहरे पर उसके रहा हरदम एक प्रकाश
-हस्तीमल हस्ती

Monday, November 25, 2019

समय ने जब भी अंधेरो से दोस्ती की है

समय ने जब भी अंधेरो से दोस्ती की है
जला के अपना ही घर हमने रोशनी की है

सबूत है मेरे घर में धुएं के ये धब्बे
कभी यहाँ पे उजालों ने ख़ुदकुशी की है

ना लड़खडायाँ कभी और कभी ना बहका हूँ 
मुझे पिलाने में  फिर तुमने क्यूँ कमी की है

कभी भी वक़्त ने उनको नहीं मुआफ़ किया
जिन्होंने दुखियों के अश्कों से दिल्लगी की है

(अश्कों = आँसुओं)

किसी के ज़ख़्म को मरहम दिया है गर तूने
समझ ले तूने ख़ुदा की ही बंदगी की है

-गोपालदास नीरज

Tuesday, July 23, 2019

हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए
नज़र नहीं तो अंधेरा है आदमी के लिए
-नुशूर वाहिदी

(फ़रोज़ाँ = प्रकाशमान, रौशन)

Thursday, June 27, 2019

'बद्र' जब आगही से मिलता है

'बद्र' जब आगही से मिलता है
इक दिया रौशनी से मिलता है

(आगही  = ज्ञान, जानकारी, समझ-बूझ, चेतना, सूचना)

चाँद तारे शफ़क़ धनक खुशबू
सिलसिला ये उसी से मिलता है

(शफ़क़ = किरणे, सवेरे या शाम की लालिमा जो क्षितिज पर होती है), (धनुक = इन्द्रधनुष)

जितनी ज़ियादा है कम है उतनी ही
ये चलन आगही से मिलता है

(आगही  = ज्ञान, जानकारी, समझ-बूझ, चेतना, सूचना)

दुश्मनी पेड़ पर नहीं उगती
ये समर दोस्ती से मिलता है

(समर=फल)

यूँ तो मिलने को लोग मिलते हैं
दिल मगर कम किसी से मिलता है

'बद्र' आप और ख़याल भी उस का
साया कब रौशनी से मिलता है

-साबिर बद्र जाफ़री

Friday, June 7, 2019

चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सही
जला के अपना दिया रौशनी मकान में ला

(ताबनाक = प्रकाशमान, चमकदार, चमकीला)

है वो तो हद्द-ए-गिरफ़्त-ए-ख़याल से भी परे
ये सोच कर ही ख़याल उस का अपने ध्यान में ला

(हद्द-ए-गिरफ़्त-ए-ख़याल = विचारों की सीमा से परे)

-अकबर हैदराबादी


Thursday, May 16, 2019

ये कह के हमें छोड़ गई रौशनी इक रात
तुम अपने चराग़ों की हिफ़ाज़त नहीं करते
-साक़ी फ़ारुक़ी

Sunday, May 5, 2019

औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे

औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे
हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे

वो लोग जो सूरज के उजाले में चले थे
किस राह में गुम हो गए कुछ उन की ख़बर दे

इक उम्र से जलते हुए सहराओं में गुम हूँ
कुछ देर ठहर जाऊँगा दामान-ए-शजर दे

(सहराओं = रेगिस्तानों), (दामान-ए-शजर = पेड़ का दामन)

इक ख़ौफ़ सा तारी है घरों से नहीं निकले
तरसी हुई आँखों को सराबों का सफ़र दे

(तारी = आ घेरना, छाना), (सराबों = मृगतृष्णाओं)

सब अपने चराग़ों को बुझाए हुए चुप हैं
इक आग सी सीने में लगा दे वो शरर दे

(शरर = चिंगारी)

-खलील तनवीर

Thursday, April 25, 2019

एक हो जाएँ तो बन सकते हैं ख़ुर्शीद-ए-मुबीं
वर्ना इन बिखरे हुए तारों से क्या काम बने
-अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

(ख़ुर्शीद-ए-मुबीं = चमकता हुआ/ ज्योतिर्मय सूरज)

Saturday, April 13, 2019

मैं रोशनी था मुझे फैलते ही जाना था
वो बुझ गए जो समझते रहे चिराग़ मुझे
- राजेश रेड्डी

Wednesday, March 6, 2019

इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है
-अख़्तर शीरानी

Thursday, February 21, 2019

तुम मुझको कब तक रोकोगे

मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं
दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं, कुछ कर जाएं
सूरज-सा तेज नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे
अपनी हद रौशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोकोगे

मैं उस माटी का वृक्ष नहीं, जिसको नदियों ने सींचा है
बंजर माटी में पलकर मैंने, मृत्यु से जीवन खींचा है
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ, शीशे से कब तक तोड़ोगे
मिटने वाला मैं नाम नहीं, तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे

इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है
तानों  के भी शोर में रहकर सच कहने की आदत है
मैं सागर से भी गहरा हूँ, तुम कितने कंकड़ फेंकोगे
चुन-चुन कर आगे बढूँगा मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे

झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शौक नहीं
अपने ही हाथों रचा स्वयं, तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं
तुम हालातों की भट्टी में, जब-जब भी मुझको झोंकोगे
तब तपकर सोना बनूंगा मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे

-नामालूम






Wednesday, February 20, 2019

बदन को ज़ख़्म करें ख़ाक को लबादा करें

बदन को ज़ख़्म करें ख़ाक को लबादा करें
जुनूँ की भूली हुई रस्म का इआदा करें

(इआदा = दोहराना, पुनरावृत्ति)

तमाम अगले ज़मानों को ये इजाज़त है
हमारे अहद-ए-गुज़िश्ता से इस्तिफ़ादा करें

(अहद-ए-गुज़िश्ता = बीती हुई उम्र, भूतकाल), (इस्तिफ़ादा = लाभ उठायें)

उन्हें अगर मिरी वहशत को आज़माना है
ज़मीं को सख़्त करें दश्त को कुशादा करें

(दश्त = जंगल), (कुशादा = खुला हुआ, फैला हुआ)

चलो लहू भी चराग़ों की नज़्र कर देंगे
ये शर्त है कि वो फिर रौशनी ज़ियादा करें

सुना है सच्ची हो नीयत तो राह खुलती है
चलो सफ़र न करें कम से कम इरादा करें

-मंज़ूर हाशमी

Thursday, February 7, 2019

बैठे रहने से तो लौ देते नहीं ये जिस्म-ओ-जाँ
जुगनुओं की चाल चलिए रौशनी बन जाइए
-अब्बास ताबिश

Sunday, December 23, 2018

उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा

उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा

इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा

(तबस्सुम = मुस्कुराहट)

प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली
जिस को पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा

मिरे बारे में कोई राय तो होगी उस की
उस ने मुझ को भी कभी तोड़ के देखा होगा

एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा

-निदा फ़ाज़ली

Monday, January 29, 2018

ज़िंदगी की हर कहानी बेअसर हो जाएगी

ज़िंदगी की हर कहानी बेअसर हो जाएगी
हम ना होंगे तो ये दुनिया दर-ब-दर हो जाएगी

पांव पत्थर करके छोड़ेगी अगर रुक जाइये
चलते रहिए तो ज़मीं भी हमसफ़र हो जाएगी

तुमने ख़ुद ही सर चढ़ाई थी सो अब चक्खो मज़ा
मैं न कहता था के दुनिया दर्द-ए-सर हो जाएगी

तल्खियां भी लाज़िमी हैं ज़िन्दगी के वास्ते
इतना मीठा बनकर मत रहिए शकर हो जाएगी

जुगनुओं को साथ लेकर रात रौशन कीजिए
रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जाएगी

(सहर = सुबह)

- राहत इंदौरी

Monday, February 6, 2017

मंज़िलों की हर कहानी बे-असर हो जायेगी

मंज़िलों की हर कहानी बे-असर हो जायेगी
हम न होंगे तो ये दुनिया दर-ब-दर हो जायेगी

ज़िन्दगी भी काश मेरे साथ रहती सारी उम्र
खैर अब जैसी भी होनी है बसर हो जायेगी

जुगनुओं को साथ लेकर रात रौशन कीजिये
रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जायेगी

पाँव पत्थर कर के छोड़ेगी अगर रुक जाइये
चलते रहिये तो ज़मीं भी हमसफ़र हो जायेगी

तुमने खुद ही सर चढ़ाई थी सो अब चक्खो मज़ा
मै न कहता था दुनिया दर्द-ऐ-सर हो जायेगी

-राहत इन्दौरी

Sunday, November 6, 2016

ख़ुदा ख़ामोश है

बहुत से काम हैं
लिपटी हुई धरती को फैला दें
दरख़्तों को उगाएँ
डालियों पे फूल महका दें
पहाड़ों को क़रीने से लगाएँ
चाँद लटकाएँ
ख़लाओं के सरों पे नील-गूँ आकाश फैलाएँ
सितारों को करें रौशन
हवाओं को गति दे दें
फुदकते पत्थरों को पँख दे कर नग़्मगी दे दें
लबों को मुस्कुराहट
अँखड़ियों को रौशनी दे दें
सड़क पर डोलती परछाइयों को
ज़िंदगी दे दें

ख़ुदा ख़ामोश है!
तुम आओ तो तख़्लीक़ हो दुनिया
मैं इतने सारे कामों को अकेला कर नहीं सकता

-निदा फ़ाज़ली

(दरख़्तों = पेड़ों), (ख़लाओं = शून्य), (नग़्मगी = गीत), (तख़्लीक़ = उत्पत्ति करना, सृजन)