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Wednesday, December 9, 2020

"फ़िराक़" ने तुझे पूजा नहीं, के वक़्त ना था

"फ़िराक़" ने तुझे पूजा नहीं, के वक़्त ना था
"यगाना" ने भी सराहा नहीं, के वक़्त ना था

"मजाज़" ने तिरे आँचल को, कर दिया परचम
तुझे गले से लगाया नहीं, के वक़्त ना था

(परचम = झंडा)

हज़ार दुःख थे ज़माने के, "फ़ैज़" के आगे
सो तेरे हुस्न पे लिक्खा नहीं, के वक़्त ना था

ब-राह-ए-क़ाफ़िला, चलते चले गए "मजरूह"
तुझे पलट के भी देखा नहीं, के वक़्त ना था

(ब-राह-ए-क़ाफ़िला = क़ाफ़िले के साथ)

ये कौन शोला बदन है, बताओ तो जानी ?
जनाब-ए-"जॉन" ने पूछा नहीं, के वक़्त ना था

वो शाम थी के, सितारे सफ़र के देखते थे
"फ़राज़" ने तुझे चाहा नहीं, के वक़्त ना था

कमाल-ए-इश्क़ था, मेरी निगाह में "आसिम"
ज़वाल-ए-उम्र को सोचा नहीं, के वक़्त ना था

(ज़वाल-ए-उम्र = घटती उम्र)

- लिआक़त अली "आसिम"

Sunday, November 29, 2020

ऐ मेरे दिल तू बता तुझ को गवारा क्या है

ऐ मेरे दिल तू बता तुझ को गवारा क्या है 
जो तिरा दर्द है सो है बता चारा क्या है 

अपनी बाबत कभी पूछा तो बताएँगे उसे 
डूबने वालों को तिनके का सहारा क्या है 

और भटकेंगे तो कुछ और नया देखेंगे 
हम तो आवारा परिंदे हैं हमारा क्या है 

रोज़ इक शख़्स की यादों का जनाज़ा ढोया 
उम्र के नाम पे हम ने भी गुज़ारा क्या है 

एक दिन हँसते हुए कहने लगी वो मुझ से 
सारे अशआ'र तो मेरे हैं तुम्हारा क्या है 

-तरकश प्रदीप

Friday, July 31, 2020

कुछ मरासिम तो निभाया कीजिए

कुछ मरासिम तो निभाया कीजिए
कम से कम ख़्वाबों में आया कीजिए।

(मरासिम = मेल-जोल, प्रेम-व्यवहार, संबंध)

चाहिए सबको यहां खुशरंग शै
कर्ब चेहरे पे न लाया कीजिए।

(कर्ब = पीड़ा, दर्द, दुःख, बेचैनी)

जिसके दर से चल रहा है ये जहां
उसके दर पे सर झुकाया कीजिए।

ज़िन्दगी है चार दिन का इक सफ़र
इसको नफ़रत में न ज़ाया कीजिए।

(ज़ाया = बर्बाद,नष्ट)

उम्र भर को घर बना लेती है फिर
बात दिल से मत लगाया कीजिए।

उसके दर पे रोज़ जा के बैठिए
रोज़ क़िस्मत आज़माया कीजिए।

दिन की सारी फ़िक्र बाहर छोड़ कर
हंसता चेहरा घर पे लाया कीजिए।

- विकास वाहिद
25/7/20

Thursday, April 16, 2020

अपना ही अक्स नज़र आती है अक्सर मुझको
वो हर इक चीज जो मिट्टी की बनी होती है

इतने अरमानो की गठरी लिये फिरते हो ’अमित’
उम्र इंसान की आख़िर कितनी होती है

- अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

Wednesday, April 1, 2020

सुब्ह होती है शाम होती है
उम्र यूँही तमाम होती है
-मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम

Monday, November 25, 2019

तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा

तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा
सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा

वो जिस्म ही था जो भटका किया ज़माने में
हृदय तो मेरा हमेशा तेरी डगर में रहा

तू ढूँढ़ता था जिसे जा के बृज के गोकुल में
वो श्याम तो किसी मीरा की चश्म-ए-तर में रहा

(चश्म-ए-तर = भीगी आँखें)

वो और ही थे जिन्हें थी ख़बर सितारों की
मेरा ये देश तो रोटी की ही ख़बर में रहा

हज़ारों रत्न थे उस जौहरी की झोली में
उसे कुछ भी न मिला जो अगर-मगर में रहा

-गोपालदास नीरज

Friday, August 30, 2019

एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बाना
और फिर उम्र गुज़र जाती है यकजाई में
-अहमद मुश्ताक़

(यकजाई = मिलन, एकता, संयोजन)

Tuesday, August 27, 2019

कर मुहब्बत के इसमें बुरा कुछ नहीं

कर मुहब्बत के इसमें बुरा कुछ नहीं
जुर्म कर ले है इसकी सज़ा कुछ नहीं।

उम्र भर की वो बैठा है फ़िक्रें लिए
कल का जिस आदमी को पता कुछ नहीं।

क़द्र अश्क़ों की कीजे के मोती हैं ये
इनसे बढ़ कर जहां में गरां कुछ नहीं।

(गरां = महंगा / कीमती)

सानिहा अब ये है देख कर ज़ुल्म भी
इन रगों में मगर खौलता कुछ नहीं।

(सानिहा = दुर्भाग्य/ विडम्बना)

बोलते हो अगर सच तो ये सोच लो
आज के दौर में है जज़ा कुछ नहीं।

(जज़ा = ईनाम / reward)

ज़िन्दगी जैसे बोझिल हैं अख़बार भी
रोज़ पढ़ते हैं लेकिन नया कुछ नहीं।

मैं सज़ा में बराबर का हक़दार हूँ
ज़ुल्म देखा है लेकिन कहा कुछ नहीं।

जानते सब हैं सब छूटना है यहीं
जीते जी तो मगर छूटता कुछ नहीं।

ज़िन्दगी उस मकां पे है "वाहिद' के अब
हसरतें कुछ नहीं मुद्दआ कुछ नहीं।

(मुद्दआ = matter / issue)

- विकास "वाहिद" २३ अगस्त २०१९

Sunday, August 25, 2019

तेरे आने का इंतिज़ार रहा
उम्र भर मौसम-ए-बहार रहा

तुझ से मिलने को बे-क़रार था दिल
तुझ से मिल कर भी बे-क़रार रहा

-रसा चुग़ताई

Saturday, August 24, 2019

इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
दो रोज़ की महफ़िल है इक उम्र की तन्हाई
-सूफ़ी तबस्सुम

(आलम-ए-वीराँ = सुनसान/ वीरान दुनिया, सूनेपन की अवस्था/ दशा/ हालत), (अंजुमन आराई  = महफ़िल सजाना, सभा की शोभा बढ़ाना)

Sunday, August 11, 2019

अँधेरी रात को ये मोजज़ा दिखायेंगे हम

अँधेरी रात को ये मोजज़ा दिखायेंगे हम
चिराग़ अगर न मिला, अपना दिल जलायेंगे हम

(मोजज़ा =चमत्कार)

हमारी कोहकनी के हैं मुख़्तलिफ़ मेयार
पहाड़ काट के रस्ते नए बनायेंगे हम

(कोहकनी = पहाड़ खोदना, बहुत अधिक परिश्रम का काम), (मुख़्तलिफ़ = अनेक प्रकार का, भिन्न, पृथक, जुदा, कई तरह का)  (मेयार = पैमाना, मापदंड)

जो दिल दुखा है तो ये अज़्म भी मिला है हमें
तमाम उम्र किसी का न दिल दुखायेंगे हम

(अज़्म = संकल्प, दृढ निश्चय, श्रेष्ठता)

बहुत निढाल हैं सुस्ता तो लेंगे पल दो पल
उलझ गया कहीं दामन तो क्या छुड़ायेंगे हम

अगर है मौत में कुछ लुत्फ़ बस तो इतना है
कि इसके बाद ख़ुदा का सुराग़ पायेंगे हम

हमें तो कब्र भी तन्हा न कर सकेगी 'नदीम'
के हर तरफ से ज़मीन को क़रीब पायेंगे हम

-अहमद नदीम कासमी

Monday, June 17, 2019

बने-बनाए से रस्तों का सिलसिला निकला

बने-बनाए से रस्तों का सिलसिला निकला
नया सफ़र भी बहुत ही गुरेज़-पा निकला

(गुरेज़-पा = छलने वाला, कपटपूर्ण, गोलमाल)

न जाने किस की हमें उम्र भर तलाश रही
जिसे क़रीब से देखा वो दूसरा निकला

हमें तो रास न आई किसी की महफ़िल भी
कोई ख़ुदा कोई हम-साया-ए-ख़ुदा निकला

हज़ार तरह की मय पी हज़ार तरह के ज़हर
न प्यास ही बुझी अपनी न हौसला निकला

हमारे पास से गुज़री थी एक परछाईं
पुकारा हम ने तो सदियों का फ़ासला निकला

अब अपने-आप को ढूँडें कहाँ कहाँ जा कर
अदम से ता-ब-अदम अपना नक़्श-ए-पा निकला

(अदम = परलोक, शून्य, अस्तित्व हीनता),  (ता-ब-अदम = अनंत काल), (नक़्श-ए-पा = पैरों के निशान, पदचिन्ह)

-ख़लील-उर-रहमान आज़मी

Thursday, May 30, 2019

हसद की आग थी और दाग़ दाग़ सीना था

हसद की आग थी और दाग़ दाग़ सीना था
दिलों से धुल न सका वो ग़ुबार-ए-कीना था

(हसद = ईर्ष्या, जलन), (ग़ुबार-ए-कीना = )

ज़रा सी ठेस लगी थी कि चूर चूर हुआ
तिरे ख़याल का पैकर भी आबगीना था

(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख),  (आबगीना = पतले काँच की बड़े पेट की बोतल, जो शराब या गुलाब जल रखने के काम आती थी)

रवाँ थी कोई तलब सी लहू के दरिया में
कि मौज मौज भँवर उम्र का सफ़ीना था

(रवाँ  = बहता हुआ, प्रवाहमान), (सफ़ीना = नाव, किश्ती)

वो जानता था मगर फिर भी बे-ख़बर ही रहा
अजीब तौर था उस का अजब क़रीना था

(क़रीना = सलीका, ढंग, तमीज़)

बहुत क़रीब से गुज़रे मगर ख़बर न हुई
कि उजड़े शहर की दीवार में दफ़ीना था

(दफ़ीना = ज़मीन में गड़ा हुआ धन)

-खलील तनवीर

Monday, May 20, 2019

सियाह-ख़ाना-ए-दिल पर नज़र भी करता है

सियाह-ख़ाना-ए-दिल पर नज़र भी करता है
मेरी ख़ताओं को वो दरगुज़र भी करता है

(सियाह-ख़ाना-ए-दिल = दिल का अँधेरा कोना), (दरगुज़र = अनदेखा)

परिंद ऊँची उड़ानों की धुन में रहता है
मगर ज़मीं की हदों में बसर भी करता है

तमाम उम्र के दरिया को मोड़ देता है
वो एक हर्फ़ जो दिल पर असर भी करता है

(हर्फ़ = अक्षर)

वो लोग जिन की ज़माना हँसी उड़ाता है
इक उम्र बाद उन्हें मो'तबर भी करता है

(मो'तबर = विश्वसनीय, भरोसेमंद)

जला के दश्त-ए-तलब में उम्मीद की शमएँ
अज़िय्यतों से हमें बे-ख़बर भी करता है

(दश्त-ए-तलब = इच्छाओं के रेगिस्तान), (अज़िय्यतों = यातनाओं, तकलीफ़ों)

-खलील तनवीर

Wednesday, May 8, 2019

आंख छलकाना, सरेआम दिखावा करना!
हमको आता ही नहीं खुदसे छलावा करना!!

रफ्ता रफ्ता ही सही हम भी बिछड़ जाएंगे!
उम्रभर साथ निभाने का न दावा करना!!

-सुधीर बल्लेवार 'मलंग' 

Tuesday, May 7, 2019

ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम

ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम
किसी के दिल में उतर जाना चाहते हैं हम

(ब-रंग-ए-नग़मा = राग/ लय/ तराने के रंग की तरह)

ज़माना और अभी ठोकरें लगाए हमें
अभी कुछ और सँवर जाना चाहते हैं हम

उसी तरफ़ हमें जाने से रोकता है कोई
वो एक सम्त जिधर जाना चाहते हैं हम

(सम्त = तरफ़, दिशा की ओर)

वहाँ हमारा कोई मुंतज़िर नहीं फिर भी
हमें न रोक कि घर जाना चाहते हैं हम

 (मुंतज़िर = प्रतीक्षारत)

नदी के पार खड़ा है कोई चराग़ लिए
नदी के पार उतर जाना चाहते हैं हम

उन्हें भी जीने के कुछ तजरबे हुए होंगे
जो कह रहे हैं कि मर जाना चाहते हैं हम

कुछ इस अदा से कि कोई चराग़ भी न बुझे
हवा की तरह गुज़र जाना चाहते हैं हम

ज़ियादा उम्र तो होती नहीं गुलों की मगर
गुलों की तरह निखर जाना चाहते हैं हम

-वाली आसी

Sunday, May 5, 2019

औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे

औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे
हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे

वो लोग जो सूरज के उजाले में चले थे
किस राह में गुम हो गए कुछ उन की ख़बर दे

इक उम्र से जलते हुए सहराओं में गुम हूँ
कुछ देर ठहर जाऊँगा दामान-ए-शजर दे

(सहराओं = रेगिस्तानों), (दामान-ए-शजर = पेड़ का दामन)

इक ख़ौफ़ सा तारी है घरों से नहीं निकले
तरसी हुई आँखों को सराबों का सफ़र दे

(तारी = आ घेरना, छाना), (सराबों = मृगतृष्णाओं)

सब अपने चराग़ों को बुझाए हुए चुप हैं
इक आग सी सीने में लगा दे वो शरर दे

(शरर = चिंगारी)

-खलील तनवीर

Tuesday, April 16, 2019

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया
ऐसे लगा कि एक ज़माना गुज़र गया

सब के लिए बुलंद रहे हाथ उम्र भर
अपने लिए दुआओं का लम्हा गुज़र गया

कोई हुजूम-ए-दहर में करता रहा तलाश
कोई रह-ए-हयात से तन्हा गुज़र गया

(हुजूम-ए-दहर = दुनिया की भीड़), (रह-ए-हयात = ज़िन्दगी की राह)

मिलना तो ख़ैर उस को नसीबों की बात है
देखे हुए भी उस को ज़माना गुज़र गया

दिल यूँ कटा हुआ है किसी की जुदाई में
जैसे किसी ज़मीन से दरिया गुज़र गया

इस बात का मलाल बहुत है मुझे 'अदीम'
वो मेरे सामने से अकेला गुज़र गया

हम देखने का ढंग समझते रहे 'अदीम'
इतने में ज़िंदगी का तमाशा गुज़र गया

बाक़ी बस एक नाम-ए-ख़ुदा रह गया 'अदीम'
सब कुछ बहा के वक़्त का दरिया गुज़र गया

-अदीम हाशमी

Sunday, April 14, 2019

उसी को अनसुना करने में उम्र गुज़री है
सुनाई देता रहा है जो साफ़-साफ़ मुझे
- राजेश रेड्डी

Wednesday, April 10, 2019

उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है

उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है
अजीब दिल है गिरूँ तो सँभाल लेता है

ये कैसा शख़्स है कितनी ही अच्छी बात कहो
कोई बुराई का पहलू निकाल लेता है

ढले तो होती है कुछ और एहतियात की उम्र
कि बहते बहते ये दरिया उछाल लेता है

बड़े-बड़ों की तरह-दारियाँ नहीं चलतीं
उरूज तेरी ख़बर जब ज़वाल लेता है

(उरूज = बुलंदी, ऊँचाई), (ज़वाल = हृास, पतन)

जब उस के जाम में इक बूँद तक नहीं होती
वो मेरी प्यास को फिर भी सँभाल लेता है

-वसीम बरेलवी