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Sunday, July 18, 2021

मज़ा आता अगर गुज़री हुई बातों का अफ़्साना 
कहीं से तुम बयाँ करते कहीं से हम बयाँ करते 
-वहशत रज़ा अली कलकत्वी

Tuesday, July 6, 2021

माना के तिरा फ़ैज़ अभी, आम नहीं है

माना के तिरा फ़ैज़ अभी, आम नहीं है
क्या "क़ैस" की ख़ातिर भी, कोई जाम नहीं है ? 

(फ़ैज़ = लाभ, उपकार, कृपा)

मेरी ये शिकायत के मुझे, टाल रहे हैं 
उनका ये बहाना के अभी, शाम नहीं है

दिन भर तिरी यादें हैं तो, शब भर तिरे सपने
दीवाने को अब और कोई, काम नहीं है

वो दिल ही नहीं जिस में तिरी, याद नहीं है
वो लब ही नहीं जिस पे तिरा, नाम नहीं है

अपनों से शिकायत है ना, ग़ैरों से गिला है
तक़दीर ही ऐसी है कि, आराम नहीं है

ये "क़ैस"-ए-बला-नोश भी, क्या चीज़ है, यारों 
बद-क़ौल है, बद-फ़ेल है, बद-नाम नहीं है

("क़ैस"-ए-बला-नोश = शराबी "क़ैस"), (बद-क़ौल = बुरा बोलने वाला), (बद-फ़ेल = बुरे काम करने वाला)

राजकुमार "क़ैस"

Sunday, May 30, 2021

दीवार-ए-तकल्लुफ़ है तो, मिस्मार करो ना

दीवार-ए-तकल्लुफ़ है तो, मिस्मार करो ना 
गर उस से मोहब्बत है तो, इज़हार करो ना 

(दीवार-ए-तकल्लुफ़ = औपचारिकता की दीवार), (मिस्मार = तोड़ना)

मुमकिन है तुम्हारे लिए, हो जाऊँ मैं आसाँ 
तुम ख़ुद को मिरे वास्ते, दुश्वार करो ना 

(दुश्वार = मुश्किल)

गर याद करोगे तो, चला आऊँगा इक दिन 
तुम दिल की गुज़रगाह को, हमवार करो ना 

(गुज़रगाह = रास्ता, सड़क), (हमवार = समतल)

कहना है अगर कुछ तो, पस-ओ-पेश करो मत 
खुल के कभी जज़्बात का, इज़हार करो ना 

(पस-ओ-पेश = संकोच, हिचकिचाहट)

हर रिश्ता-ए-जाँ तोड़ के, आया हूँ यहाँ तक 
तुम भी मिरी ख़ातिर कोई, ईसार करो ना 

(रिश्ता-ए-जाँ = जीवन का रिश्ता), (ईसार = त्याग करना) 

"एजाज़" तुम्हारे लिए, साहिल पे खड़ा हूँ 
दरिया-ए-वफ़ा मेरे लिए, पार करो ना

(साहिल=किनारा)

-एजाज़ असद

Saturday, January 30, 2021

हाइकू की एक क़िस्म माहिया

बाग़ों में पड़े झूले
तुम भूल गए हम को
हम तुम को नहीं भूले
-चराग़ हसन "हसरत"

पीपल इक आँगन में
ये कौन सुलगता है
तेरे प्यार के सावन में

भरपूर जवानी है
क्यों नींद नहीं आती
ये और कहानी है
-दिलनवाज़ "दिल"

बादल कभी होते हम
गोरी तेरी गलिओं पर
दिल खोलके रोते हम

दरिया से उड़े बगले
अब उसकी मुहब्बत में
वो बात नहीं पगले
-अली मुहम्मद "फ़रशी"

दरियाओं का पानी है
तुझपे फ़िदा कर दूँ
जाँ यूँ भी तो जानी है

खिली रात की रानी है
चले भी आओ सजना
रात बड़ी सुहानी है
-ताहिर

तेरा दर्द छुपा लूँगी
जब याद तू आए गा
मैं माहिया गा लूँगी
-क़तील शिफ़ाई

दिल ले के दग़ा देंगे
यार हैं मतलब के
ये देंगे भी तो क्या देंगे
-साहिर लुधियानवी

इक बार तो मिल साजन
आ कर देख ज़रा
टूटा हुआ दिल साजन
-हिम्मत राय शर्मा

Saturday, January 9, 2021

जीवन चक्र

स्नेह मिला जो आपका, हुआ मैं भाव विभोर,
खुशियाँ  कत्थक  नाचतीं  मेरे चारों ओर ।

स्मृतियों में आबद्ध हैं चित्र वो शेष, विशेष,
एक नजर में घूँम लें, 'पूरन' भारत देश ।

खेलें, खायें प्रेम से मिलजुल सबके संग,
जीवन का परखा हुआ यही है  सुंदर ढंग ।

वक़्त फिसलता ही रहा ज्यों मुट्ठी में रेत,
समय बिता कर आ गए वापस अपने खेत ।

भवसागर  हम  खे  रहे  अपनी अपनी नाव,
ना जाने किस नाव पर लगे भँवर का दाँव ! 

किसको,कितना खेलना सब कुछ विधि के हाथ,
खेल खतम और चल दिये लेकर स्मृतियाँ साथ !

-पूरन भट्ट 




Sunday, November 29, 2020

ऐ मेरे दिल तू बता तुझ को गवारा क्या है

ऐ मेरे दिल तू बता तुझ को गवारा क्या है 
जो तिरा दर्द है सो है बता चारा क्या है 

अपनी बाबत कभी पूछा तो बताएँगे उसे 
डूबने वालों को तिनके का सहारा क्या है 

और भटकेंगे तो कुछ और नया देखेंगे 
हम तो आवारा परिंदे हैं हमारा क्या है 

रोज़ इक शख़्स की यादों का जनाज़ा ढोया 
उम्र के नाम पे हम ने भी गुज़ारा क्या है 

एक दिन हँसते हुए कहने लगी वो मुझ से 
सारे अशआ'र तो मेरे हैं तुम्हारा क्या है 

-तरकश प्रदीप

Thursday, November 19, 2020

इसके ज़्यादा उसके कम

इसके ज़्यादा उसके कम
सबके अपने अपने ग़म।

ज़ख़्म उसी ने बख़्शे हैं
जिसको बख़्शा था मरहम।

जो लिक्खा है वो होगा
पन्ना पहनो या नीलम।

हाय, तबस्सुम चेहरे पर
फूल पे हो जैसे शबनम।

(तबस्सुम =  मुस्कराहट), (शबनम = ओस)

साँसों तक का झगड़ा फिर
कैसी ख़ुशियाँ, क्या मातम।

सुब्ह तलक जो जलना था
रक्खी अपनी लौ मद्धम।

आँखें कितनी पागल हैं
अक्सर बरसीं बे-मौसम।

इक मौसम में बारिश के
यादों के कितने मौसम।

ख़्वाहिश अब तक ज़िंदा है
जिस्म पड़ा है पर बेदम।

- विकास वाहिद

Friday, July 31, 2020

एक बरसात की खुश्बू में कई यादें हैं
जिस तरह सीप के सीने गुहर होता है
जिस तरह रात के रानी की महक होती है
जिस तरह साँझ की वंशी का असर होता है

जिस तरह उठता है आकाश में इक इंद्रधनुष
जैसे पीपल के तले कोई दिया जलता है
जैसे मंदिर में कहीं दूर घंटियाँ बजतीं
जिस तरह भोर के पोखर में कमल खिलता है

जिस तरह खुलता हो सन्दूक पुराना कोई
जिस तरह उसमें से ख़त कोई पुराना निकले
जैसे खुल जाय कोई चैट की खिड़की फिर से
ख़ुद-बख़ुद जैसे कोई मुँह से तराना निकले

जैसे खँडहर में बची रह गयी बुनियादें हैं
एक बरसात की खुश्बू में कई यादें हैं

-अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

Sunday, May 10, 2020

तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहीं
शब-भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया
-नामालूम

Thursday, April 30, 2020

तुमने किया ना याद कभी भूलकर हमें 
हमने तुम्हारी याद में सबकुछ भुला दिया 
-बहादुर शाह ज़फ़र,

Thursday, April 23, 2020

याद में उसकी भीगा कर

याद में उसकी भीगा कर
फूलों जैसा महका कर

भीड़ में ख़ुद को तन्हा कर
ये मंज़र भी देखा कर

बूढ़ों में भी बैठा कर
बच्चों से भी खेला कर

सबको राह दिखा लेकिन
अपनी राह भी देखा कर

किससे भूल नहीं होती
इतना भी मत सोचा कर

तू भी दौलत से भर जा
सबके ग़म को अपनाकर

जन्नत किसने देखी है
जीवन जन्नत जैसा कर

प्यार की अपनी आँखें हैं
देख ही लेगा देखा कर


-हस्तीमल हस्ती
कब महकती है भला रात की रानी दिन में
शहर सोया तो तेरी याद की खुशबु जागी
-परवीन शाकिर 

Thursday, April 16, 2020

कुछ भूलें ऐसी हैं, जिनकी याद सुहानी लगती है

कुछ भूलें ऐसी हैं, जिनकी याद सुहानी लगती है।
कुछ भूलें ऐसी जिनकी चर्चा बेमानी लगती है।

कुछ भू्लों के लिये शर्म भी आई हमको कभी-कभी,
कुछ भूलों की पृष्ठभूमि बिल्कुल शैतानी लगती है।

कुछ भूलों की विभीषिका से जीवन है अब तक संतप्त,
कुछ भूलों की सृष्टि विधाता की मनमानी लगती है।

कुछ भूलें चुपके से आकर चली गईं तब पता चला,
कुछ भूलों की आहट भी जानी पहचानी लगती है।

कुछ भूलों में आकर्षण था, कुछ भूलें कौतूहल थीं,
कुछ भूलों की दुनियाँ तो अब भी रुमानी लगती है।

कुछ भूलों का पछतावा है, कुछ में मेरा दोष नहीं,
कुछ भूलें क्यों हुईं, आज यह अकथ कहानी लगती है।

- अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

Tuesday, January 21, 2020

जो ज़िंदगी की तल्ख़ हक़ीक़त से डर गए

जो ज़िंदगी की तल्ख़ हक़ीक़त से डर गए
वो लोग अपनी मौत से पहले ही मर गए

आई कुछ ऐसी याद तेरी पिछली रात को
दामन पे बे-शुमार सितारे बिखर गए

छोड़ आए ज़िंदगी के लिए नक़्श-ए-जावेदाँ
दीवाने मुस्कुरा कर जिधर से गुज़र गए

(नक़्श-ए-जावेदाँ = ना मिटने वाला चिन्ह)

मेरी निगाह-ए-शौक़ के उठने की देर थी
यूँ मुस्कुराए वोह के मनाज़िर संवर गए

(मनाज़िर = दृष्यों, मंज़र का बहुवचन)

दुनिया में अब ख़ुलूस है बस मस्लहत का नाम
बे-लौस दोस्ती के ज़माने गुज़र गए

(ख़ुलूस = प्रेम, मुहब्बत), (मस्लहत = भला बुरा देख कर काम करना), (बे-लौस = बिना किसी स्वार्थ के)

-आरिफ़ अख़्तर

Wednesday, August 14, 2019

हम आप क़यामत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

हम आप क़यामत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते
जीने की शिकायत है तो मर क्यूँ नहीं जाते

कतराते हैं बल खाते हैं घबराते हैं क्यूँ लोग
सर्दी है तो पानी में उतर क्यूँ नहीं जाते

आँखों में नमक है तो नज़र क्यूँ नहीं आता
पलकों पे गुहर हैं तो बिखर क्यूँ नहीं जाते

(गुहर = मोती)

अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी
अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते

ये बात अभी मुझ को भी मालूम नहीं है
पत्थर इधर आते हैं उधर क्यूँ नहीं जाते

तेरी ही तरह अब ये तिरे हिज्र के दिन भी
जाते नज़र आते हैं मगर क्यूँ नहीं जाते

(हिज्र = जुदाई)

अब याद कभी आए तो आईने से पूछो
'महबूब-ख़िज़ाँ' शाम को घर क्यूँ नहीं जाते

-महबूब ख़िज़ां

Wednesday, June 19, 2019

बस नफ़ा ही नफ़ा है ख़सारा नहीं

बस नफ़ा ही नफ़ा है ख़सारा नहीं
इश्क़ के खेल में कोई हारा नहीं।

(ख़सारा = हानि, घाटा, नुक्सान)

दिल पे क़ायम है तेरी हुकूमत अभी
हमने यादों का परचम उतारा नहीं।

कौन उतरा है उस पार अब तक यहाँ
इश्क़ के इस भंवर में किनारा नहीं।

मुंतज़िर हम रहे कोई आवाज़ दे
हमको लेकिन किसी ने पुकारा नहीं।

 (मुंतज़िर = प्रतीक्षारत)

फूल थे ख़ार समझे गए हम सदा
बागबां ने भी हमको दुलारा नहीं।

कौन रखता यूं आँखों में काजल मेरी
मैं किसी आँख का भी तो तारा नहीं।

फिर भले सर कटे सच की ख़ातिर तो क्या
पर मुकरना तो मुझको गवारा नहीं।

- विकास वाहिद
१८/०६/२०१९

Thursday, May 9, 2019

दूर तक एक स्याही का भँवर आएगा

दूर तक एक स्याही का भँवर आएगा
ख़ुद में उतरोगे तो ऐसा भी सफ़र आएगा

आँख जो देखेगी दिल उस को नहीं मानेगा
दिल जो देखेगा वो आँखों में उभर आएगा

अपने एहसास का मंज़र ही बदल जाएगा
आँख झपकेगी तो कुछ और नज़र आएगा

और चलना है तो बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर निकलो भी
न किसी अब्र का साया न शजर आएगा

(बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर = बिना डरे, निर्भयता के साथ), (अब्र = बादल),  (शजर = पेड़)

ख़त्म हो जाएगी जब जश्न-ए-मुलाक़ात की रात
याद बुझते हुए ख़्वाबों का नगर आएगा

-खलील तनवीर

Wednesday, May 1, 2019

कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है

कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है

आप लिल्लाह न देखा करें आईना कभी
दिल का आ जाना बड़ी बात नहीं होती है

छुप के रोता हूँ तिरी याद में दुनिया भर से
कब मिरी आँख से बरसात नहीं होती है

हाल-ए-दिल पूछने वाले तिरी दुनिया में कभी
दिन तो होता है मगर रात नहीं होती है

जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कि कैसे हो 'शकील'
इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है

-शकील बदायुनी







Friday, February 22, 2019

चंद लम्हों की रिफ़ाक़त ही ग़नीमत है कि फिर
चंद लम्हों में ये शीराज़ा बिखर जाएगा

(रिफ़ाक़त = मेल-जोल, भाई-चारा, साहचर्य, बंधुत्व), (शीराज़ा = पुस्तकों की सिलाई में वो डोरा या फ़ीता जी जिल्द को बांधे रखता है, क्रम, तर्तीब, बिखरी हुई चीज़ों की एकत्रता)

अपनी यादों को समेटेंगे बिछड़ने वाले
किसे मालूम है फिर कौन किधर जाएगा

-मुशफ़िक़ ख़्वाजा

Thursday, February 14, 2019

मेरा रंज-ए-मुस्तक़िल भी जैसे कम सा हो गया
मैं किसी को याद कर के ताज़ा-दम सा हो गया
अब्बास ताबिश

(रंज-ए-मुस्तक़िल = निरंतर/ चिरस्थाई दु: ख)