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Thursday, May 7, 2020

यही जुनून, यही एक ख़्वाब मेरा है
वहाँ चराग़ जला दूँ जहाँ अँधेरा है
तेरी रज़ा भी तो शामिल थी मेरे बुझने में
मैं जल उठा हूँ तो ये भी कमाल तेरा है
-इक़बाल अशहर 

Sunday, September 1, 2019

एक दिल को हज़ार दाग़ लगा

एक दिल को हज़ार दाग़ लगा
अन्दरूने में जैसे बाग़ लगा

उससे यूँ गुल ने रंग पकड़ा है
शमा से जैसे लें चिराग़ लगा

ख़ूबी यक पेचाँ बंद ख़ूबाँ की
ख़ूब बाँधूँगा गर दिमाग़ लगा

(ख़ूबी = हुस्न, योग्यता, प्रतिभा,गुण,), (पेचाँ = घुमावदार, पेचीला, लिपटा हुआ, उलझा हुआ), (बंद = फंदा, पाश, गाँठ ), (ख़ूबाँ = सुन्दर स्त्रियां, माशूक़ लोग, प्रियतमाएँ)

पाँव दामन में खेंच लेंगे हम
हाथ ग़र गोशा-ए-फ़राग़ लगा

(फ़राग़ = अवकाश, छुट्टी, निश्चिंतता, बेफ़िक्री, छुटकारा, मुक्ति, संतोष, चैन), (गोशा = कोना, एकान्त स्थान)

'मीर' उस बे-निशाँ को पाया जान
कुछ हमारा अगर सुराग़ लगा

(बे-निशाँ = गुमनाम, आस्तित्वहीन, जिसका कोई अता-पता न हो)

-मीर तक़ी मीर

Saturday, August 31, 2019

रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुए

रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुए
हक़ बात लब पे आई तो हम बे-हुनर हुए

कल तक जहाँ में जिन को कोई पूछता न था
इस शहर-ए-बे-चराग़ में वो मो'तबर हुए

(मो'तबर =विश्वसनीय, भरोसेमंद)

बढ़ने लगी हैं और ज़मानों की दूरियाँ
यूँ फ़ासले तो आज बहुत मुख़्तसर हुए

(मुख़्तसर = थोड़ा, कम, संक्षिप्त)

दिल के मकाँ से ख़ौफ़ के साए न छट सके
रस्ते तो दूर दूर तलक बे-ख़तर हुए

(बे-ख़तर = बिना ख़तरे के, सुरक्षित)

अब के सफ़र में दर्द के पहलू अजीब हैं
जो लोग हम-ख़याल न थे हम-सफ़र हुए

बदला जो रंग वक़्त ने मंज़र बदल गए
आहन-मिसाल लोग भी ज़ेर-ओ-ज़बर हुए

(आहन-मिसाल = लोहे की तरह), (ज़ेर-ओ-ज़बर = ज़माने का उलट-फेर, संसार की ऊँच-नीच)

-खलील तनवीर

Sunday, August 11, 2019

अँधेरी रात को ये मोजज़ा दिखायेंगे हम

अँधेरी रात को ये मोजज़ा दिखायेंगे हम
चिराग़ अगर न मिला, अपना दिल जलायेंगे हम

(मोजज़ा =चमत्कार)

हमारी कोहकनी के हैं मुख़्तलिफ़ मेयार
पहाड़ काट के रस्ते नए बनायेंगे हम

(कोहकनी = पहाड़ खोदना, बहुत अधिक परिश्रम का काम), (मुख़्तलिफ़ = अनेक प्रकार का, भिन्न, पृथक, जुदा, कई तरह का)  (मेयार = पैमाना, मापदंड)

जो दिल दुखा है तो ये अज़्म भी मिला है हमें
तमाम उम्र किसी का न दिल दुखायेंगे हम

(अज़्म = संकल्प, दृढ निश्चय, श्रेष्ठता)

बहुत निढाल हैं सुस्ता तो लेंगे पल दो पल
उलझ गया कहीं दामन तो क्या छुड़ायेंगे हम

अगर है मौत में कुछ लुत्फ़ बस तो इतना है
कि इसके बाद ख़ुदा का सुराग़ पायेंगे हम

हमें तो कब्र भी तन्हा न कर सकेगी 'नदीम'
के हर तरफ से ज़मीन को क़रीब पायेंगे हम

-अहमद नदीम कासमी

Saturday, July 6, 2019

मुझ को ये फ़िक्र कब है कि, साया कहाँ गया

मुझ को ये फ़िक्र कब है कि, साया कहाँ गया
सूरज को रो रहा हूँ, ख़ुदाया कहाँ गया

फिर आइने में ख़ून, दिखाई दिया मुझे
आँखों में आ गया तो, छुपाया कहाँ गया

आवाज़ दे रहा था कोई मुझ को ख़्वाब में
लेकिन ख़बर नहीं कि, बुलाया कहाँ गया

कितने चराग़ घर में, जलाए गए न पूछ
घर आप जल गया है, जलाया कहाँ गया

ये भी ख़बर नहीं है कि, हमराह कौन है
पूछा कहाँ गया है, बताया कहाँ गया

वो भी बदल गया है, मुझे छोड़ने के बाद
मुझ से भी अपने आप में, आया कहाँ गया

तुझ को गँवा दिया है, मगर अपने आप को
बर्बाद कर दिया है, गँवाया कहाँ गया

-फ़ैसल अजमी

Friday, June 7, 2019

चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सही
जला के अपना दिया रौशनी मकान में ला

(ताबनाक = प्रकाशमान, चमकदार, चमकीला)

है वो तो हद्द-ए-गिरफ़्त-ए-ख़याल से भी परे
ये सोच कर ही ख़याल उस का अपने ध्यान में ला

(हद्द-ए-गिरफ़्त-ए-ख़याल = विचारों की सीमा से परे)

-अकबर हैदराबादी


Thursday, May 16, 2019

ये कह के हमें छोड़ गई रौशनी इक रात
तुम अपने चराग़ों की हिफ़ाज़त नहीं करते
-साक़ी फ़ारुक़ी

Tuesday, May 7, 2019

ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम

ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम
किसी के दिल में उतर जाना चाहते हैं हम

(ब-रंग-ए-नग़मा = राग/ लय/ तराने के रंग की तरह)

ज़माना और अभी ठोकरें लगाए हमें
अभी कुछ और सँवर जाना चाहते हैं हम

उसी तरफ़ हमें जाने से रोकता है कोई
वो एक सम्त जिधर जाना चाहते हैं हम

(सम्त = तरफ़, दिशा की ओर)

वहाँ हमारा कोई मुंतज़िर नहीं फिर भी
हमें न रोक कि घर जाना चाहते हैं हम

 (मुंतज़िर = प्रतीक्षारत)

नदी के पार खड़ा है कोई चराग़ लिए
नदी के पार उतर जाना चाहते हैं हम

उन्हें भी जीने के कुछ तजरबे हुए होंगे
जो कह रहे हैं कि मर जाना चाहते हैं हम

कुछ इस अदा से कि कोई चराग़ भी न बुझे
हवा की तरह गुज़र जाना चाहते हैं हम

ज़ियादा उम्र तो होती नहीं गुलों की मगर
गुलों की तरह निखर जाना चाहते हैं हम

-वाली आसी

Sunday, May 5, 2019

औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे

औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे
हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे

वो लोग जो सूरज के उजाले में चले थे
किस राह में गुम हो गए कुछ उन की ख़बर दे

इक उम्र से जलते हुए सहराओं में गुम हूँ
कुछ देर ठहर जाऊँगा दामान-ए-शजर दे

(सहराओं = रेगिस्तानों), (दामान-ए-शजर = पेड़ का दामन)

इक ख़ौफ़ सा तारी है घरों से नहीं निकले
तरसी हुई आँखों को सराबों का सफ़र दे

(तारी = आ घेरना, छाना), (सराबों = मृगतृष्णाओं)

सब अपने चराग़ों को बुझाए हुए चुप हैं
इक आग सी सीने में लगा दे वो शरर दे

(शरर = चिंगारी)

-खलील तनवीर

Saturday, April 13, 2019

मैं रोशनी था मुझे फैलते ही जाना था
वो बुझ गए जो समझते रहे चिराग़ मुझे
- राजेश रेड्डी

Thursday, March 21, 2019

यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है

उम्मीद ओ यास की रुत आती जाती रहती है
मगर यक़ीन का मौसम नहीं बदलता है

-मंज़ूर हाशमी

(यास = नाउम्मीदी, निराशा)

Thursday, March 14, 2019

जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िर
ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की
-जमील मज़हरी

Wednesday, February 20, 2019

बदन को ज़ख़्म करें ख़ाक को लबादा करें

बदन को ज़ख़्म करें ख़ाक को लबादा करें
जुनूँ की भूली हुई रस्म का इआदा करें

(इआदा = दोहराना, पुनरावृत्ति)

तमाम अगले ज़मानों को ये इजाज़त है
हमारे अहद-ए-गुज़िश्ता से इस्तिफ़ादा करें

(अहद-ए-गुज़िश्ता = बीती हुई उम्र, भूतकाल), (इस्तिफ़ादा = लाभ उठायें)

उन्हें अगर मिरी वहशत को आज़माना है
ज़मीं को सख़्त करें दश्त को कुशादा करें

(दश्त = जंगल), (कुशादा = खुला हुआ, फैला हुआ)

चलो लहू भी चराग़ों की नज़्र कर देंगे
ये शर्त है कि वो फिर रौशनी ज़ियादा करें

सुना है सच्ची हो नीयत तो राह खुलती है
चलो सफ़र न करें कम से कम इरादा करें

-मंज़ूर हाशमी

Tuesday, February 19, 2019

तीर कोई हो कमाँ कोई हो
चाहते हैं कि हदफ़ हो जाऊँ

(हदफ़  = लक्ष्य, निशाना, वह गोलाई जिस पर निशाना सीखने के लिए गोलियाँ मारते हैं)

इक ज़माना है हवाओं की तरफ़
मैं चराग़ों की तरफ़ हो जाऊँ

-मंज़ूर हाशमी

Friday, February 15, 2019

वतन को फूँक रहे हैं बहुत से अहल-ए-वतन
चराग़ घर के हैं सरगर्म घर जलाने में
-महताब आलम

(अहल-ए-वतन = देश के लोग, देशवासी)

Friday, February 1, 2019

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे

कोई फूल सा हाथ काँधे पे था
मेरे पाँव शोलों पे चलते रहे

मेरे रास्ते में उजाला रहा
दिये उस की आँखों के जलते रहे

वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे

मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुख़ी
किराये के घर थे बदलते रहे

सुना है उन्हें भी हवा लग गई
हवाओं के जो रुख़ बदलते रहे

लिपट के चराग़ों से वो सो गये
जो फूलों पे करवट बदलते रहे

-बशीर बद्र


Tuesday, January 29, 2019

पूछा जो मैं ने यार से अंजाम-ए-सोज़-ए-इश्क़
शोख़ी से इक चराग़ को उस ने बुझा दिया
-नामालूम

(अंजाम-ए-सोज़-ए-इश्क़ = प्यार में जलने का परिणाम)

Monday, January 28, 2019

ख़ुद-ब-ख़ुद हमवार हर इक रास्ता हो जाएगा

ख़ुद-ब-ख़ुद हमवार हर इक रास्ता हो जाएगा
मुश्किलों के रूबरू जब हौसला हो जाएगा

वो किसी के आसरे की आस क्यों रक्खे भला
जिसका रिश्ता है जड़ों से खुद हरा हो जाएगा

प्यार की दुनिया से नाता जोड़कर देखो कभी
जिसको छू दोगे वो पत्थर आईना हो जाएगा

सीख ले ऐ दोस्त अपने आप से यारी का फ़न
वरना तेरा ज़िन्दगी से फ़ासला हो जाएगा

ऊंचे-ऊंचे सर भी उस दिन शर्म से झुक जाएंगे
जब भी उनका आईने से सामना हो जाएगा

बख़्श दे यारब मुझे भी कोई मीठी सी कसक
मेरे जीने का भी कोई आसरा हो जाएगा

तुम हवाएं ले के आओ मैं जलाता हूं चिराग़
किसमें कितना दम यारों फ़ैसला हो जाएगा

-हस्तीमल 'हस्ती'



Sunday, December 23, 2018

रिश्तों का ए'तिबार वफ़ाओं का इंतिज़ार
हम भी चराग़ ले के हवाओं में आए हैं
-निदा फ़ाज़ली

Wednesday, November 30, 2016

जो थके थके से थे हौसले वो शबाब बन के मचल गए

जो ग़म-ए-हबीब से दूर थे वो ख़ुद अपनी आग में जल गए
जो ग़म-ए-हबीब को पा गए वो ग़मों से हँस के निकल गए

(ग़म-ए-हबीब = दोस्त/ प्रियतम का दुःख)

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जो थके थके से थे हौसले वो शबाब बन के मचल गए
वो नज़र नज़र से गले मिले तो बुझे चराग़ भी जल गए

ये शिकस्त-ए-दीद की करवटें भी बड़ी लतीफ़-ओ-जमील थीं
मैं नज़र झुका के तड़प गया वो नज़र बचा के निकल गए

(शिकस्त-ए-दीद = आँखों से दूर होना, दृष्टिलोप, नज़र की हार), (लतीफ़-ओ-जमील = सुखद/ शुद्ध/ आनंददायक और ख़ूबसूरत/ आकर्षक)

न ख़िज़ाँ में है कोई तीरगी न बहार में कोई रौशनी
ये नज़र नज़र के चराग़ हैं कहीं बुझ गए कहीं जल गए

(ख़िज़ाँ = पतझड़), (तीरगी = अन्धकार, अँधेरा)

जो सँभल सँभल के बहक गए वो फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-राह थे
वो मक़ाम-ए-इश्क़ को पा गए जो बहक बहक के सँभल गए

(फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-राह = रास्ते के छोटे छोटे धोखे)

जो खिले हुए हैं रविश रविश वो हज़ार हुस्न-ए-चमन सही
मगर उन गुलों का जवाब क्या जो क़दम क़दम पे कुचल गए

(रविश = बाग़ की क्यारियों के बीच का छोटा मार्ग)

न है 'शाइर' अब ग़म-ए-नौ-ब-नौ न वो दाग़-ए-दिल न वो आरज़ू
जिन्हें ए'तिमाद-ए-बहार है वही फूल रंग बदल गए

(ग़म-ए-नौ-ब-नौ = दुःख के बाद नया दुःख), (ए'तिमाद-ए-बहार = बहार पर भरोसा/ विश्वास)

-शायर लखनवी