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Wednesday, August 7, 2019

अश्क आँखों में अब हैं आए से
बात छुपती नहीं छुपाए से
अपनी बातें कहें तो किस से कहें
सब यहाँ लोग हैं पराए से
-हबीब जालिब

Sunday, March 22, 2015

न डगमगाए हम कभी वफ़ा के रस्ते में

न डगमगाए हम कभी वफ़ा के रस्ते में
चराग़ हमने जलाए वफ़ा के रस्ते में

किसे लगाए गले और कहाँ कहाँ ठहरे
हज़ार गुंचा-ओ-गुल हैं सबा के रस्ते में

(गुंचा-ओ-गुल = कली और फूल), (सबा = बयार, हवा)

ख़ुदा का नाम कोई ले तो चौंक उठते हैं
मिले हैं हमको वो रहबर ख़ुदा के रस्ते में

(रहबर = रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक)

कहीं सलासिल-ए-तस्बीह और कहीं जुन्नार
बिछे हैं दाम बहुत मुद्दआ के रस्ते में

(सलासिल-ए-तस्बीह = जपमाला की ज़ंजीर), (जुन्नार = यज्ञोपवीत, जनेऊ), (दाम = जाल), (मुद्दआ़ = उद्देश्य, मक़सद)

अभी वो मंज़िल-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र नहीं आई
है आदमी अभी जुर्म-ओ-सज़ा के रस्ते में

(मंज़िल-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र = चिंतन और परख की मंज़िल)

हैं आज भी वही दार-ओ-रसन वही ज़िन्दाँ
हर एक निगाह-ए-रुमूज़ आश्ना के रस्ते में

(दार-ओ-रसन = फाँसी का फंदा और रस्सी), (ज़िन्दाँ = जेल, कारागार), (निगाह-ए-रुमूज़ = रहस्यपूर्ण नज़रें), (आश्ना = मित्र/ दोस्त, प्रेमी/ प्रेमिका, परिचित)

ये नफ़रतों की फ़सीलें, जहालतों के हिसार
न रह सकेंगे हमारी सदा के रस्ते में

(फ़सीलें = परकोटे, चारदीवारी), (जहालतों के हिसार = अज्ञान के किले), (सदा = आवाज़)

मिटा सके न कोई सैल-ए-इंक़लाब जिन्हें
वो नक़्श छोड़े हैं हमने वफ़ा के रस्ते में

(सैल-ए-इंक़लाब = क्रांति का प्रवाह), (नक़्श = निशान)

ज़माना एक सा 'जालिब' सदा नहीं रहता
चलेंगे हम भी कभी सर उठा के रस्ते में

-हबीब जालिब

Wednesday, June 12, 2013

नज्रे साहिर (साहिर लुधियानवी को समर्पित)

यूँ वो जुल्मत से रहा दस्तो-गरेबाँ यारो
उस से लरजाँ थे बहुत शब के निगहबाँ यारो

[(जुल्मत = अंधकार), (दस्तो-गरेबाँ = संघर्ष करता हुआ), (लरजाँ=कंपित /थरथराते हुए), (निगहबाँ=रक्षक)]

उस से हर गाम दिया हौसले -ताज़ा हमें
वो न इक पल भी रहा हमसे गुरेजाँ यारो

[(गाम = डग, कदम, पग), (हौसले -ताज़ा= नया हौसला), (गुरेजाँ =भागा हुआ, बचकर निकलने वाला)]

उसने मानी न कभी तीरगी-ए-शब से शिकस्त
दिल अँधेरों में रहा उसका फ़रोज़ाँ यारो

[(तीरगी-ए-शब= रात का अँधेरा), (फ़रोज़ाँ= प्रकाशमान, रौशन)]

उसको हर हाल में जीने की अदा आती थी
वो न हालात से होता था परीशाँ यारो

उसने बातिल से न ता-जीस्त किया समझौता
दहर में उस सा कहाँ साहिबो-ईमाँ यारो

[(बातिल = असत्य), (ता-जीस्त = जीवन भर), (साहिबो-ईमाँ = ईमान वाला)]

उसको थी कश्मकशे-दैरो-हरम से नफ़रत
उस सा हिन्दू न कोई उस सा मुसलमाँ यारो

(कश्मकशे-दैरो-हरम = मंदिर मस्जिद के झगड़े)

उसने सुल्तानी-ए-जम्हूर के नग्मे लिखे
रूह शाहों की रही उससे परीशाँ यारो

(सुल्तानी-ए-जम्हूर = आम जनता की बादशाहत)

अपने अशआर की शमाओं से उजाला करके
कर गया शब का सफ़र कितना वो आसाँ यारो

उसके गीतों से ज़माने को सँवारे, आओ
रुहे-साहिर को अगर करना है शादाँ यारो

(शादाँ =प्रसन्न)

-हबीब जालिब 

Sunday, June 9, 2013

इस शहर-ए-खराबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे

इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे

ये हँसता हुआ चाँद ये पुरनूर सितारे
ताबिंदा-ओ-पाइन्दा हैं ज़र्रों के सहारे

[(पुरनूर = ज्योतिर्मय, प्रकाशमान), (ताबिंदा = प्रकाशमान, रोशन), (पाइन्दा = हमेशा रहने वाला, नित्य, अनश्वर, स्थाई, अचल), (ताबिंदा-ओ-पाइन्दा = हमेशा चमकने वाला)]

हसरत है कोई गुंचा हमें प्यार से देखे
अरमां है कोई फूल हमें दिल से पुकारे

(गुंचा = कली)

हर सुबह मेरी सुबह पे रोती रही शबनम
हर रात मेरी रात पे हँसते रहे तारे

(शबनम = ओस)

कुछ और भी हैं काम हमें ए ग़म-ए-जानाँ
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे

-हबीब जालिब

Friday, May 31, 2013

दिल की बात लबों पर लाकर

दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं

बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आँसू बहते हैं

एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं

जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिये बदनाम हुए
आज वही हम से बेगाने-बेगाने से रहते हैं

वो जो अभी रहगुज़र से, चाक-ए-गरेबाँ गुज़रा था
उस आवारा दीवाने को 'ज़ालिब'-'ज़ालिब' कहते हैं

(चाक-ए-गरेबाँ =फटा हुआ गरिबान/ कंठी)

-हबीब जालिब

मेहदी हसन/ Mehdi Hassan

ग़ुलाम अली/ Ghulam Ali