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Tuesday, March 19, 2019

इन अंधेरों से परे इस शब-ए-ग़म से आगे
इक नई सुब्ह भी है शाम-ए-अलम से आगे
-इशरत क़ादरी

(शब-ए-ग़म = दुःख की रात), (शाम-ए-अलम = दुःख की शाम)

Tuesday, February 12, 2019

यूँ ज़िंदगी गुज़र रही है मेरी
जो उन की है वही ख़ुशी है मेरी
-इशरत क़ादरी