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Saturday, November 1, 2014

फिर वही रहगुज़र है क्या कहिये
ज़िंदगी राह पर है क्या कहिये
- मजाज़ लखनवी

(रहगुज़र = रास्ता)

Saturday, May 4, 2013

अभी तो कायनात औहाम का इक कारख़ाना है,
अभी धोखा हक़ीक़त है, हक़ीक़त इक फ़साना है।

[(कायनात = ब्रम्हांड, संसार, दुनिया), (औहाम = भ्रांतियां)]

अभी तो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी करके दिखाना है,
अभी तो फ़ाक़ाक़श इंसान से आँखें मिलाना है ।
-मजाज़

Friday, May 3, 2013

कहते हैं लोग मौत से बदतर है इंतज़ार,
मेरी तमाम उम्र कटी इंतज़ार में ।
-मजाज़

Sunday, March 24, 2013

दिले-मजरूह को मजरूहतर करने से क्या हासिल,
तू आँसू पोंछकर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था ।

(दिले-मजरूह = घायल दिल), (मजरूह = घायल)

तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन,
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था ।

(परचम = झंडे का कपड़ा)

-मजाज़

 
जलाले-आतिशो-बर्क़-ओ-सहाब पैदा कर,
अजल भी कांप उठे, वो शबाब पैदा कर ।

[(जलाले-आतिशो-बर्क़-ओ-सहाब = आग/ बिजली बादल का रौद्र), (अजल = मृत्यु), (शबाब = जवानी)]

तू इन्क़लाब की आमद का इंतज़ार ना कर,
जो हो सके, तो अभी इन्क़लाब पैदा कर ।

[(आमद = आगमन)]

-मजाज़


 

Sunday, September 30, 2012

तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू न हुई, वो सई-ए-करम फरमा भी गए

तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू न हुई, वो सई-ए-करम फरमा भी गए,
इस सई-ए-करम को क्या कहिये, बहला भी गए तड़पा भी गए ।

[(तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू = दुखी/ व्यथित दिल को आराम) , (सई = प्रयत्न, कोशिश) , (करम = कृपा, अनुग्रह)]

हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके, कुछ कह न सके कुछ सुन न सके,
यां हम ने ज़बाँ ही खोली थी, वां आँख झुकी शर्मा भी गए ।

[अर्ज़-ए-वफ़ा = वादा पूरा करने का निवेदन]

अशुफ्तगी-ए-वहशत की कसम, हैरत की कसम, हसरत की कसम,
अब आप कहे कुछ या न कहे हम राज़-ए-तबस्सुम पा भी गए ।

[अशुफ्तगी-ए-वहशत = दीवानगी की घबराहट, राज़-ए-तबस्सुम = मुस्कराहट का रहस्य]

रुदाद-ए-गम-ए-उल्फत उन से, हम क्या कहते क्यूँकर कहते,
एक हर्फ़ न निकला होटों से और आँख में आंसूं आ भी गए ।

[(रुदाद-ए-गम-ए-उल्फत = प्यार के दर्द का विवरण/ कहानी), (हर्फ़ = शब्द)]

अरबाब-ए-जुनूँ पे फुरकत में, अब क्या कहिये क्या क्या गुजरा,
आये थे सवाद-ए-उल्फत में, कुछ खो भी गए कुछ पा भी गए ।

[(अरबाब-ए-जुनूँ = उन्माद की अवस्था में), (फुरकत = वियोग/ जुदाई), (सवाद-ए-उल्फत = प्यार की गली)]

ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है, क्या फिक्र है तुझ को ऐ साकी,
महफ़िल तो तेरी सूनी न हुई, कुछ उठ भी गए कुछ आ भी गए ।

इस महफ़िल-ए-कैफ-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफानी में,
सब ज़ाम-ब-क़फ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए ।

[(महफ़िल-ए-कैफ-ओ-मस्ती = ख़ुशी और आनंद की महफ़िल), (अंजुमन-ए-इरफानी = ज्ञान की सभा), (ज़ाम-ब-क़फ = जाम हाथ में लेकर बैठना) ]

-मजाज़ लखनवी


Saturday, September 29, 2012

इज़्न-ए-ख़िराम लेते हुये आसमां से हम,
हटकर चले हैं रहगुज़र-ए-कारवां से हम।

[(इज़्न-ए-खिराम = आगे बढ़ने की इजाज़त), (रहगुज़र-ए-कारवां = कारवां की राह)]

क्योंकर हुआ है फ़ाश ज़माने पे क्या कहें,
वो राज़-ए-दिल जो कह न सके राज़दां से हम।

हमदम यही है रहगुज़र-ए-यार-ए-खुश-ख़िराम,
गुज़रे हैं लाख बार इसी कहकशां से हम।

(कहकशां = आकाशगंगा)

क्या क्या हुआ है हम से जुनूं में न पूछिये,
उलझे कभी ज़मीं से कभी आसमां से हम।

ठुकरा दिये हैं अक़्ल-ओ-ख़िरद के सनमकदे,
घबरा चुके हैं कशमकश-ए-इम्तेहां से हम।

(अक़्ल-ओ-ख़िरद = बुद्धि और चतुराई)

बख्शी हैं हम को इश्क़ ने वो जुर्रतें ’मजाज़’,
डरते नहीं सियासत-ए-अहले-जहां से हम।

(सियासत-ए-अहले-जहां = दुनियावालों की राजनीतिक चाल)

-मजाज़ लखनवी
तेरे जलवों में घिर गया आखिर
ज़र्रे को आफ़ताब होना था
कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी
कुछ मुझे भी खराब होना था
-
मजाज़ लखनवी

Tuesday, September 25, 2012

फिर मेरी आँख हो गई नमनाक
फिर किसी ने मिज़ाज पूछा है
-मजाज़