तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू न हुई, वो सई-ए-करम फरमा भी गए,
इस सई-ए-करम को क्या कहिये, बहला भी गए तड़पा भी गए ।
[(तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू = दुखी/ व्यथित दिल को आराम) , (सई = प्रयत्न, कोशिश) , (करम = कृपा, अनुग्रह)]
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके, कुछ कह न सके कुछ सुन न सके,
यां हम ने ज़बाँ ही खोली थी, वां आँख झुकी शर्मा भी गए ।
[अर्ज़-ए-वफ़ा = वादा पूरा करने का निवेदन]
अशुफ्तगी-ए-वहशत की कसम, हैरत की कसम, हसरत की कसम,
अब आप कहे कुछ या न कहे हम राज़-ए-तबस्सुम पा भी गए ।
[अशुफ्तगी-ए-वहशत = दीवानगी की घबराहट, राज़-ए-तबस्सुम = मुस्कराहट का रहस्य]
रुदाद-ए-गम-ए-उल्फत उन से, हम क्या कहते क्यूँकर कहते,
एक हर्फ़ न निकला होटों से और आँख में आंसूं आ भी गए ।
[(रुदाद-ए-गम-ए-उल्फत = प्यार के दर्द का विवरण/ कहानी), (हर्फ़ = शब्द)]
अरबाब-ए-जुनूँ पे फुरकत में, अब क्या कहिये क्या क्या गुजरा,
आये थे सवाद-ए-उल्फत में, कुछ खो भी गए कुछ पा भी गए ।
[(अरबाब-ए-जुनूँ = उन्माद की अवस्था में), (फुरकत = वियोग/ जुदाई), (सवाद-ए-उल्फत = प्यार की गली)]
ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है, क्या फिक्र है तुझ को ऐ साकी,
महफ़िल तो तेरी सूनी न हुई, कुछ उठ भी गए कुछ आ भी गए ।
इस महफ़िल-ए-कैफ-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफानी में,
सब ज़ाम-ब-क़फ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए ।
[(महफ़िल-ए-कैफ-ओ-मस्ती = ख़ुशी और आनंद की महफ़िल), (अंजुमन-ए-इरफानी = ज्ञान की सभा), (ज़ाम-ब-क़फ = जाम हाथ में लेकर बैठना) ]
-मजाज़ लखनवी