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Saturday, January 9, 2021

जीवन चक्र

स्नेह मिला जो आपका, हुआ मैं भाव विभोर,
खुशियाँ  कत्थक  नाचतीं  मेरे चारों ओर ।

स्मृतियों में आबद्ध हैं चित्र वो शेष, विशेष,
एक नजर में घूँम लें, 'पूरन' भारत देश ।

खेलें, खायें प्रेम से मिलजुल सबके संग,
जीवन का परखा हुआ यही है  सुंदर ढंग ।

वक़्त फिसलता ही रहा ज्यों मुट्ठी में रेत,
समय बिता कर आ गए वापस अपने खेत ।

भवसागर  हम  खे  रहे  अपनी अपनी नाव,
ना जाने किस नाव पर लगे भँवर का दाँव ! 

किसको,कितना खेलना सब कुछ विधि के हाथ,
खेल खतम और चल दिये लेकर स्मृतियाँ साथ !

-पूरन भट्ट 




Wednesday, December 9, 2020

"फ़िराक़" ने तुझे पूजा नहीं, के वक़्त ना था

"फ़िराक़" ने तुझे पूजा नहीं, के वक़्त ना था
"यगाना" ने भी सराहा नहीं, के वक़्त ना था

"मजाज़" ने तिरे आँचल को, कर दिया परचम
तुझे गले से लगाया नहीं, के वक़्त ना था

(परचम = झंडा)

हज़ार दुःख थे ज़माने के, "फ़ैज़" के आगे
सो तेरे हुस्न पे लिक्खा नहीं, के वक़्त ना था

ब-राह-ए-क़ाफ़िला, चलते चले गए "मजरूह"
तुझे पलट के भी देखा नहीं, के वक़्त ना था

(ब-राह-ए-क़ाफ़िला = क़ाफ़िले के साथ)

ये कौन शोला बदन है, बताओ तो जानी ?
जनाब-ए-"जॉन" ने पूछा नहीं, के वक़्त ना था

वो शाम थी के, सितारे सफ़र के देखते थे
"फ़राज़" ने तुझे चाहा नहीं, के वक़्त ना था

कमाल-ए-इश्क़ था, मेरी निगाह में "आसिम"
ज़वाल-ए-उम्र को सोचा नहीं, के वक़्त ना था

(ज़वाल-ए-उम्र = घटती उम्र)

- लिआक़त अली "आसिम"

Thursday, April 16, 2020

ब-ज़ाहिर खूब सोना चाहता हूँ

ब-ज़ाहिर खूब सोना चाहता हूँ
हक़ीक़त है कि रोना चाहता हूँ

(ब-ज़ाहिर = प्रत्यक्ष स्पष्ट रूप से)

अश्क़ आँखों को नम करते नहीं अब
ज़ख़्म यादों से धोना चाहता हूँ

वक़्त बिखरा गया जिन मोतियों को
उन्हे फिर से पिरोना चाहता हूँ

कभी अपने ही दिल की रहगुज़र में
कोई खाली सा कोना चाहता हूँ

नई शुरूआत करने के लिये फिर
कुछ नये बीज बोना चाहता हूँ।

गये जो आत्मविस्मृति की डगर पर
उन्ही में एक होना चाहता हूँ।

भेद प्रायः सभी के खुल चुके हैं
मैं जिन रिश्तों को ढोना चाहता हूँ

नये हों रास्ते मंज़िल नई हो
मैं इक सपना सलोना चाहता हूँ।

'अमित' अभिव्यक्ति की प्यासी जड़ो को
निज अनुभव से भिगोना चाहता हूँ।

- अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

Wednesday, March 25, 2020

रफ़्तार करो कम, के बचेंगे तो मिलेंगे।

रफ़्तार करो कम, के बचेंगे तो मिलेंगे
गुलशन ना रहेगा तो, कहाँ फूल खिलेंगे।

वीरानगी में रह के, ख़ुद से भी मिलेंगे
रह जायें सलामत तो, गुल ख़ुशियों के खिलेंगे।

अब वक़्त आ गया है, कायनात का सोचो
ये रूठ गयी गर, तो ये मौके न मिलेंगे।

जो हो रहा है समझो, क्यों हो रहा है ये
क़ुदरत के बदन को, और कितना ही छीलेंगे।

मौका है अभी देख लो, फिर देर न हो जाए
जो कुदरत को दिए ज़ख़्म, वो हम कैसे सिलेंगे।

है कोई तो जिसने, जहाँ हिला के रख दिया
लगता था कि हमारे बिन, पत्ते न हिलेंगे।

झांको दिलों के अंदर, क्या करना है सोचो
ख़ाक़ में वरना हम, सभी जाके मिलेंगे।

-नामालूम

https://www.youtube.com/watch?v=mmoBj2Fc1tM


Monday, November 25, 2019

समय ने जब भी अंधेरो से दोस्ती की है

समय ने जब भी अंधेरो से दोस्ती की है
जला के अपना ही घर हमने रोशनी की है

सबूत है मेरे घर में धुएं के ये धब्बे
कभी यहाँ पे उजालों ने ख़ुदकुशी की है

ना लड़खडायाँ कभी और कभी ना बहका हूँ 
मुझे पिलाने में  फिर तुमने क्यूँ कमी की है

कभी भी वक़्त ने उनको नहीं मुआफ़ किया
जिन्होंने दुखियों के अश्कों से दिल्लगी की है

(अश्कों = आँसुओं)

किसी के ज़ख़्म को मरहम दिया है गर तूने
समझ ले तूने ख़ुदा की ही बंदगी की है

-गोपालदास नीरज

Friday, October 18, 2019

काम सभी हम ही निबटाएँ ,यूँ थोड़े ही होता है
आप तो बैठे हुक़म चलाएँ,यूँ थोड़े ही होता है

अपने हुनर की शेखी मारे, वक़्त नाच का आए तो
आँगन को टेढ़ा बतलाएँ यूँ थोड़े ही होता है

कभी कभी तो आप भी हमसे, मिलने की तकलीफ़ करें
हरदम हम ही आएँ - जाएँ यूँ थोड़े ही होता है

-हस्तीमल हस्ती

Saturday, August 31, 2019

रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुए

रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुए
हक़ बात लब पे आई तो हम बे-हुनर हुए

कल तक जहाँ में जिन को कोई पूछता न था
इस शहर-ए-बे-चराग़ में वो मो'तबर हुए

(मो'तबर =विश्वसनीय, भरोसेमंद)

बढ़ने लगी हैं और ज़मानों की दूरियाँ
यूँ फ़ासले तो आज बहुत मुख़्तसर हुए

(मुख़्तसर = थोड़ा, कम, संक्षिप्त)

दिल के मकाँ से ख़ौफ़ के साए न छट सके
रस्ते तो दूर दूर तलक बे-ख़तर हुए

(बे-ख़तर = बिना ख़तरे के, सुरक्षित)

अब के सफ़र में दर्द के पहलू अजीब हैं
जो लोग हम-ख़याल न थे हम-सफ़र हुए

बदला जो रंग वक़्त ने मंज़र बदल गए
आहन-मिसाल लोग भी ज़ेर-ओ-ज़बर हुए

(आहन-मिसाल = लोहे की तरह), (ज़ेर-ओ-ज़बर = ज़माने का उलट-फेर, संसार की ऊँच-नीच)

-खलील तनवीर

Tuesday, August 27, 2019

मुमकिन ही नहीं कि किनारा भी करेगा
आशिक़ है तो फिर इश्क़ दोबारा भी करेगा

जब वक़्त पड़ा था तो जो कुछ हम ने किया था
समझे थे वही यार हमारा भी करेगा

-हिलाल फ़रीद

Friday, August 9, 2019

जिस शख्स को ग़म अपने भुलाने नहीं आते

जिस शख्स को ग़म अपने भुलाने नहीं आते
उसके लिए ख़ुशियों के ज़माने नहीं आते

कतरा के न चलिए कभी पथरीली डगर से
आसान सी राहों में खज़ाने नहीं आते

मुश्किल में फ़कत ग़ैर ही दुश्मन नहीं बनते
अपने भी तो अपनों को बचाने नहीं आते

आ जाए अगर वक़्त तो है जान भी हाज़िर
हम उनमें से हैं जिनको बहाने नहीं आते

मैं इसलिए हर शख्स की नज़रों में बुरा हूँ
बस मुझको मेरे ऐब छुपाने नहीं आते

- हस्तीमल हस्ती

Thursday, August 1, 2019

ढूंढता है ज़मीन में प्यारे

ढूंढता है ज़मीन में प्यारे
सांप हैं आस्तीन में प्यारे।

मैं न मंदिर में हूँ न मस्ज़िद में
मैं हूँ तेरे यक़ीन में प्यारे।

मैं मुहब्बत के लफ्ज़ में हूँ बस
हूँ वफ़ा में मैं दीन में प्यारे।

(दीन = पंथ, मत, धर्म)

उसकी आदत है मेरे ढूंढेगा
ऐब वो खुर्दबीन में प्यारे।

(खुर्दबीन = Microscope)

उसको मालूम है कि नाटक में
किसको मरना है सीन में प्यारे।

ज़िन्दगी कट रही है रफ़्ता रफ़्ता
वक़्त की इस मशीन में प्यारे।

(रफ़्ता रफ़्ता = धीरे धीरे)

- विकास वाहिद
३१/०७/२०१९


Friday, June 28, 2019

ऐसे लम्हे भी तो आते हैं के काटे न कटें
और कभी साल भी पल भर में गुज़र जाते हैं

हम मरेंगे तो किसी बात की ख़ातिर, वरना
लोग मरने को तो बिन बात ही मर जाते हैं

-राजकुमार "क़ैस"

Tuesday, June 11, 2019

ज़ालिम से मुस्तफ़ा का अमल चाहते हैं लोग

ज़ालिम से मुस्तफ़ा का अमल चाहते हैं लोग
सूखे हुए दरख़्त से फल चाहते हैं लोग

(मुस्तफ़ा = पवित्र, निर्मल), (अमल = काम), (दरख़्त = पेड़ वृक्ष)

काफ़ी है जिन के वास्ते छोटा सा इक मकाँ
पूछे कोई तो शीश-महल चाहते हैं लोग

साए की माँगते हैं रिदा आफ़्ताब से
पत्थर से आइने का बदल चाहते हैं लोग

(रिदा = ओढ़ने की चादर), (आफ़्ताब = सूरज)

कब तक किसी की ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ का तज़्किरा
कुछ अपनी उलझनों का भी हल चाहते हैं लोग

(ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ = बिखरी हुई ज़ुल्फें), (तज़्किरा = संवाद, बात-चीत)

बार-ए-ग़म-ए-हयात से शाने हुए हैं शल
उकता के ज़िंदगी से अजल चाहते हैं लोग

(बार-ए-ग़म-ए-हयात = ज़िन्दगी के दुखों का बोझ , (शाने = कंधे), (शल = सुन्न,  बेसुध, संवेदनाशून्य), (अजल  = मृत्यु)

रखते नहीं निगाह तक़ाज़ों पे वक़्त के
तालाब के बग़ैर कँवल चाहते हैं लोग

जिस को भी देखिए है वही दुश्मन-ए-सुकूँ
क्या दौर है कि जंग-ओ-जदल चाहते हैं लोग

(जंग-ओ-जदल = लड़ाई-झगड़ा)

दरकार है नजात ग़म-ए-रोज़गार से
मिर्रीख़ चाहते हैं न ज़ुहल चाहते हैं लोग

(नजात = छुटकारा), (मिर्रीख़ = मंगल ग्रह), (ज़ुहल = शनि ग्रह)

'एजाज़' अपने अहद का मैं तर्जुमान हूँ
मैं जानता हूँ जैसी ग़ज़ल चाहते हैं लोग

(अहद = समय, वक़्त, युग), (तर्जुमान  = दुभाषिया, व्याख्याता, व्याख्याकार)

-एजाज़ रहमानी

Wednesday, June 5, 2019

हर एक मरहला-ए-दर्द से गुज़र भी गया

हर एक मरहला-ए-दर्द से गुज़र भी गया
फ़िशार-ए-जाँ का समुंदर वो पार कर भी गया

(मरहला-ए-दर्द = दर्द का पड़ाव/ ठिकाना/ मंज़िल), (फ़िशार-ए-जाँ = जीवन की चिंता)

ख़जिल बहुत हूँ कि आवारगी भी ढब से न की
मैं दर-ब-दर तो गया लेकिन अपने घर भी गया

(ख़जिल = असमंजस में, शर्मिंदा)

ये ज़ख़्म-ए-इश्क़ है कोशिश करो हरा ही रहे
कसक तो जा न सकेगी अगर ये भर भी गया

गुज़रते वक़्त की सूरत हुआ न बेगाना
अगर किसी ने पुकारा तो मैं ठहर भी गया

-साबिर ज़फ़र

Tuesday, April 16, 2019

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया
ऐसे लगा कि एक ज़माना गुज़र गया

सब के लिए बुलंद रहे हाथ उम्र भर
अपने लिए दुआओं का लम्हा गुज़र गया

कोई हुजूम-ए-दहर में करता रहा तलाश
कोई रह-ए-हयात से तन्हा गुज़र गया

(हुजूम-ए-दहर = दुनिया की भीड़), (रह-ए-हयात = ज़िन्दगी की राह)

मिलना तो ख़ैर उस को नसीबों की बात है
देखे हुए भी उस को ज़माना गुज़र गया

दिल यूँ कटा हुआ है किसी की जुदाई में
जैसे किसी ज़मीन से दरिया गुज़र गया

इस बात का मलाल बहुत है मुझे 'अदीम'
वो मेरे सामने से अकेला गुज़र गया

हम देखने का ढंग समझते रहे 'अदीम'
इतने में ज़िंदगी का तमाशा गुज़र गया

बाक़ी बस एक नाम-ए-ख़ुदा रह गया 'अदीम'
सब कुछ बहा के वक़्त का दरिया गुज़र गया

-अदीम हाशमी

Monday, April 15, 2019

एक दरवेश की दुआ हूँ मैं
आज़मा ले मुझे वफ़ा हूँ मैं।

(दरवेश = फ़क़ीर/ साधू)

अपनी धड़कन में सुन ज़रा मुझको
मुद्दतों से तेरी सदा हूँ मैं।

(सदा = आवाज़)

वक़्त की धूप का शजर हूँ पर
देख ले के अभी हरा हूँ मैं।

(शजर = पेड़)

ठोकरों में रहा हूँ सदियों से
तेरी मंज़िल का रास्ता हूँ मैं।

चाह कर भी भुला न पाएगा
उसकी तक़दीर में लिखा हूँ मैं।

जो भी चाहे ख़रीद ले मुझको
सिर्फ़ मुस्कान में बिका हूँ मैं।

- विकास वाहिद १५/०४/१९

Wednesday, April 3, 2019

वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो
हौसले मुश्किलों में पलते हैं
-महफूजुर्रहमान आदिल

Wednesday, January 30, 2019

आख़िरी ख़्वाहिश जो पूछी वक़्त ने
पहली ख़्वाहिश मुस्कुरा कर रह गई
-राजेश रेड्डी

Thursday, January 3, 2019

दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए

दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए
जब तक न साँस टूटे जिए जाना चाहिए

यूँ तो क़दम क़दम पे है दीवार सामने
कोई न हो तो ख़ुद से उलझ जाना चाहिए

झुकती हुई नज़र हो कि सिमटा हुआ बदन
हर रस-भरी घटा को बरस जाना चाहिए

चौराहे बाग़ बिल्डिंगें सब शहर तो नहीं
कुछ ऐसे वैसे लोगों से याराना चाहिए

अपनी तलाश अपनी नज़र अपना तजरबा
रस्ता हो चाहे साफ़ भटक जाना चाहिए

चुप चुप मकान रास्ते गुम-सुम निढाल वक़्त
इस शहर के लिए कोई दीवाना चाहिए

बिजली का क़ुमक़ुमा न हो काला धुआँ तो हो
ये भी अगर नहीं हो तो बुझ जाना चाहिए

-निदा फ़ाज़ली

Wednesday, December 26, 2018

यक़ीन चाँद पे सूरज में ए'तिबार भी रख

यक़ीन चाँद पे सूरज में ए'तिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख

ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख

ये ही लहू है शहादत ये ही लहू पानी
ख़िज़ाँ नसीब सही ज़ेहन में बहार भी रख

(ख़िज़ाँ = पतझड़),

घरों के ताक़ों में गुल-दस्ते यूँ नहीं सजते
जहाँ हैं फूल वहीं आस-पास ख़ार भी रख

पहाड़ गूँजें नदी गाए ये ज़रूरी है
सफ़र कहीं का हो दिल में किसी का प्यार भी रख

-निदा फ़ाज़ली

Saturday, December 22, 2018

मुमकिन है सफ़र हो आसाँ अब साथ भी चल कर देखें
कुछ तुम भी बदल कर देखो कुछ हम भी बदल कर देखें

आँखों में कोई चेहरा हो, हर गाम पे इक पहरा हो
जंगल से चले बस्ती में दुनिया को सँभलकर देखें

(गाम = कदम, पग)

सूरज की तपिश भी देखी, शोलों की कशिश भी देखी
अबके जो घटाएँ छाएँ बरसात में जलकर देखें

दो चार कदम हर रस्ता पहले की तरह लगता है
शायद कोई मंज़र बदले कुछ दूर तो चलकर देखें

अब वक़्त बचा है कितना जो और लड़ें दुनिया से
दुनिया की नसीहत पर भी थोड़ा-सा अमल कर देखें

-निदा फ़ाज़ली