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Thursday, November 12, 2020

हर ख़ौफ़, हर ख़तर से, गुज़रना भी सीखिए

हर ख़ौफ़, हर ख़तर से, गुज़रना भी सीखिए 
जीना है गर अज़ीज़ तो, मरना भी सीखिए 

ये क्या कि डूब कर ही मिले, साहिल-ए-नजात 
सैलाब-ए-ख़ूँ से पार, उतरना भी सीखिए 

(साहिल-ए-नजात = मुक्ति का किनारा), (सैलाब-ए-ख़ूँ = ख़ून की बाढ़)

ऐसा न हो कि ख़्वाब ही, रह जाए ज़िंदगी 
जो दिल में ठानिए उसे, करना भी सीखिए 

होता है पस्तियों के, मुक़द्दर में भी उरूज 
इक मौज-ए-तह-नशीं का, उभरना भी सीखिए 

(पस्तियों = निम्न-स्तर), (उरूज = बुलंदी, तरक्की, उत्कर्ष, उन्नति, ऊँचाई, उत्थान), (मौज-ए-तह-नशीं = तह के नीचे की लहर)

औरों की सर्द-मेहरी का, शिकवा बजा "सहर" 
ख़ुद अपने दिल को प्यार से, भरना भी सीखिए 

(सर्द-मेहरी = निर्दयता), (बजा = ठीक)

- अबु मोहम्मद "सहर"