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Friday, January 18, 2019

ज़बान चलने लगी, लब-कुशाई करने लगे
नसीब बिगड़ा तो, गूंगे बुराई करने लगे

हमारे क़द के बराबर न आ सके जो लोग
हमारे पाँव के नीचे खुदाई करने लगे

-विजय तिवारी

(लब-कुशाई = होंठ खुलना)

Tuesday, February 13, 2018

खेल-खिलोने ले जा बाबू, मुन्ना दिल बहला लेगा
तेरा मुन्ना खेलेगा तो, मेरा मुन्ना खा लेगा
-विजय तिवारी
इल्म-ओ-अदब के सारे ख़ज़ाने गुज़र गए
क्या ख़ूब थे वो लोग पुराने, गुज़र गए

बाक़ी है ज़मीं पे फ़क़त आदमी की भीड़
इंसाँ मरे हुए तो ज़माने गुज़र गए

-विजय तिवारी

(इल्म-ओ-अदब = ज्ञान और साहित्य)