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Friday, November 18, 2016

अख़लाक़ न बरतेंगे मुदारा न करेंगे

अख़लाक़ न बरतेंगे मुदारा न करेंगे
अब हम किसी शख़्स की परवाह न करेंगे

(अख़लाक़ = इख़लाक़ = शिष्टाचार, सद्वृत्ति), (मुदारा = सम्मानित, आदर देना)

कुछ लोग कई लफ़्ज़ ग़लत बोल रहे हैं
इस्लाह मगर हम भी अब इस्लाह न करेंगे

(इस्लाह = बिगड़ी हुई अवस्था का सुधार, ठीक करना, त्रुटियाँ दूर करना, शुद्धि, संशोधन)

कमगोई के एक वस्फ़-ए-हिमाक़त है बहर तौर
कमगोई को अपनाएँगे चहका न करेंगे

(कमगोई = कम बोलना), (वस्फ़-ए-हिमाक़त = मूर्खतापूर्ण ख़ूबी), (बहर =लिए, वास्ते, प्रति), (तौर = ढंग, पध्यति, शैली)

अब सहल पसंदी को बनाएँगे वतीर:
ता देर किसी बाब में सोचा न करेंगे

(सहल = सहज, आसान), (वतीर:= ढंग, पद्दति , शैली, आचरण, व्यवहार), (बाब = किताब का अध्याय, परिच्छेद)

ग़ुस्सा भी है तहज़ीब-ए-तअल्लुक़ का तलबगार
हम चुप हैं, भरे बैठे हैं, ग़ुस्सा न करेंगे

(तहज़ीब-ए-तअल्लुक़ = संबंधों\ लगाव\ प्रेम-व्यवहार का शिष्टाचार)

कल रात बहुत ग़ौर किया है, सो हम ए 'जॉन'
तय कर के उठे हैं के तमन्ना न करेंगे

-जॉन एलिया

Saturday, November 12, 2016

बेक़रारी सी बेक़रारी है

बेक़रारी सी बेक़रारी है
वस्ल है और फ़िराक तारी है

जो गुज़ारी न जा सकी हमसे
हमने वो ज़िन्दगी गुज़ारी है

उस से कहियो के दिल की गलियों में
रात दिन तेरी इन्तेज़ारी है

एक महक सम्त-ए-जाँ से आई थी
मैं ये समझा तेरी सवारी है

हादसों का हिसाब है अपना
वरना हर आन सबकी बारी है

बिन तुम्हारे कभी नहीं आई
क्या मेरी नींद भी तुम्हारी है

निगेहबाँ क्या हुए के लोगों पर
अपना साया भी अब तो भारी है

ख़ुश रहे तू के ज़िन्दगी अपनी
उम्र भर की उम्मीदवारी है

आप में कैसे आऊँ मैं तुझ बिन
साँस जो चल रही है आरी है

हिज्र हो या विसाल हो, कुछ हो
हम हैं और उसकी यादगारी है

-जॉन एलिया


Tuesday, November 8, 2016

ज़िंदगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में

ऐ ख़ुदा! जो कहीं नहीं मौजूद
क्या लिखा है हमारी क़िस्मत में

-जॉन एलिया
सारे रिश्ते तबाह कर आया
दिल-ए-बर्बाद अपने घर आया

मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से
याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया

-जॉन एलिया
मुझ से बिछड़ कर भी वो लड़की कितनी ख़ुश ख़ुश रहती है
उस लड़की ने मुझ से बिछड़ कर मर जाने की ठानी थी
-जॉन एलिया

तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो

तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो
जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो

तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू
और इतने ही बेमुरव्वत हो

तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं
यानी ऐसा है जैसे फ़ुरक़त हो

(फ़ुरक़त = जुदाई)

है मेरी आरज़ू के मेरे सिवा
तुम्हें सब शायरों से वहशत हो

किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ
तुम मेरी ज़िन्दगी की आदत हो

किसलिए देखते हो आईना
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो

दास्ताँ ख़त्म होने वाली है
तुम मेरी आख़िरी मुहब्बत हो

-जाॅन एलिया

Tuesday, October 18, 2016

धूप उठाता हूँ के अब सर पे कोई बार नहीं

धूप उठाता हूँ के अब सर पे कोई बार नहीं
बीच दीवार है और साया-ए-दीवार नहीं

(बार = बोझ, भार)

शहर की गश्ती में हैं सुबह से सारे मंसूर
अब तो मंसूर वही है जो सर-ए-दार नहीं

(मंसूर = विजेता, विजयी, एक सूफी संत जिन्होंने अनलहक़ (मैं ख़ुदा हूँ) कहा था और इस अपराध में उनकी गरदन काटी गई थी), (सर-ए-दार = सूली फाँसी पर)

 मत सुनो मुझसे जो आज़ार उठाने होंगे
अब के आज़ार ये फैला है के आज़ार नहीं

(आज़ार = दुःख, कष्ट, रोग)

सोचता हूँ के भला उम्र का हासिल क्या था
उम्र भर सांस लिए और कोई अंबार नहीं

जिन दुकानों ने लगाये थे निगह के बाज़ार
उन दुकानों का ये रोना है के बाज़ार नहीं

अब वो हालत है के थक कर मैं ख़ुदा हो जाऊँ
कोई दिलदार नहीं, कोई दिलाज़ार नहीं

(दिलदार = प्यारा, प्रेमपात्र), (दिलाज़ार = सताने वाला, कष्ट देने वाला, दिल दुखाने वाला)

मुझ से तुम काम न लो, काम में लाओ मुझको
कोई तो शहर में ऐसा है के बेकार नहीं

याद आशोब का आलम तो वो आलम है के अब
याद मस्तों को तेरी याद भी दरकार नहीं

(आशोब = उथल-पुथल, हलचल)

वक़्त को सूद पे दे और न रख कोई हिसाब
अब भला कैसा ज़ियाँ, कोई ख़रीदार नहीं

(ज़ियाँ = हानि, क्षति, घाटा)

-जॉन एलिया

Friday, October 7, 2016

सुलझा हुआ सा फर्द समझते हैं मुझ को लोग
उलझा हुआ सा मुझ में कोई दूसरा भी है
-जॉन एलिया

(फर्द = एक व्यक्ति, अकेला)

Wednesday, July 6, 2016

आज का दिन भी ऐश से गुज़रा
सर से पा तक बदन सलामत है
-जॉन एलिया

(पा = पैर)
सारी अक़्ल-ओ-होश की आसाइशें
तुम ने सांचे में जुनूँ के ढाल दीं
कर लिया था मैं ने अहद-ए-तर्क-ए-इश्क़
तुम ने फिर बाँहें गले में डाल दीं
-जॉन एलिया

(आसाइशें = सुख, चैन, आराम, सुविधा, समृद्धि), (अहद-ए-तर्क-ए-इश्क़ = इश्क़ के त्याग का वचन, इश्क़ न करने का वादा)


Friday, July 1, 2016

साल-हा-साल और इक लम्हा
कोई भी तो न इनमें बल आया
ख़ुद ही इक दर पे मैंने दस्तक दी
ख़ुद ही लड़का सा मैं निकल आया
-जॉन एलिया

Wednesday, June 29, 2016

बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या
-जॉन एलिया

Thursday, March 3, 2016

सोचा है के अब कार-ए-मसीहा न करेंगे

सोचा है के अब कार-ए-मसीहा न करेंगे
वो ख़ून भी थूकेगा तो परवा न करेंगे

(कार-ए-मसीहा = मसीहा की तरह काम)

इस बार वो तल्ख़ी है के रूठे भी नहीं हम
अब के वो लड़ाई है के झगड़ा न करेंगे

ऐसा है के सीने में सुलगती हैं ख़राशें
अब साँस भी हम लेंगे तो अच्छा न करेंगे

-जॉन एलिया

Saturday, November 22, 2014

ये मुझे चैन क्यों नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहाँ में क्या
-जॉन एलिया

Thursday, October 16, 2014

मुझको गहराई में उतरना है
पर मैं गहराई सतह पर चाहूँ
-जॉन एलिया

(सतह = हर चीज़ का ऊपरी भाग)

Monday, May 13, 2013

मुझको आदत है रूठ जाने की,
आप मुझे मना लिया कीजे ।
-जॉन एलिया

Wednesday, January 23, 2013

ख़्वाहिशें दिल का साथ छोड़ गईं,
ये अज़ीयत बड़ी अज़ीयत है।
-जॉन एलिया

(अज़ीयत = किसी को पहुंचाई जाने वाली पीड़ा, अत्याचार)

Monday, December 17, 2012

एक ही मुश्दा सुभो लाती है
ज़हन में धूप फैल जाती है

[(मुश्दा = शुभ समाचार), (सुभो = सुबह)]

सोचता हूँ के तेरी याद आखिर
अब किसे रात भर जगाती है

फर्श पर कागज़ो से फिरते है
मेज़ पर गर्द जमती जाती है

मैं भी इज़न-ए-नवागरी चाहूँ
बेदिली भी तो नब्ज़ हिलाती है

आप अपने से हम सुखन रहना
हमनशी सांस फूल जाती है

आज एक बात तो बताओ मुझे
ज़िन्दगी ख्वाब क्यो दिखाती है

क्या सितम है कि अब तेरी सूरत
गौर करने पे याद आती है

कौन इस घर की देख भाल करे
रोज़ एक चीज़ टूट जाती है 

-जॉन एलिया

Wednesday, December 5, 2012

शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी,
नाज़ से काम क्यों नहीं लेतीं।
आप, वो, जी, मगर ये सब क्या है,
तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेतीं।
-जॉन एलिया