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Wednesday, September 23, 2020

नज़र जमी है तारों पर

नज़र जमी है तारों पर
चलना है अंगारों पर

ज़ख़्म दिए सब फूलों ने
तोहमत आई ख़ारों पर

(तोहमत=इल्ज़ाम), (ख़ार=काँटा)

घर, घरवालों ने लूटा
शक है पहरेदारों पर

गुम-सुम पँछी बैठे हैं
सब बिजली के तारों पर

सुर्ख़ लहू के फूल खिले
ज़ंग लगी तलवारों पर

"शाहिद" जितना ख़ून बहा
रंग चढ़ा अख़बारों पर

- शाहिद मीर


Thursday, November 10, 2016

ख़ुश-रंग पैरहन से बदन तो चमक उठे
लेकिन सवाल रूह की ताबानियों का है

(पैरहन = लिबास), (ताबानी = प्रकाश, आभा, ज्योति, रौशनी)

होती हैं दस्तयाब बड़ी मुश्किलों के बाद
'शाहिद' हयात नाम जिन आसानियों का है

(दस्तयाब = प्राप्त, उपलब्ध, हासिल), (हयात = जीवन)

-शाहिद मीर

Friday, October 12, 2012

पहले तो सब्ज़ बाग़ दिखाया गया मुझे
फिर खुश्क रास्तों पे चलाया गया मुझे

रक्खे थे उसने सारे स्विच अपने हाथ में
बे वक़्त ही जलाया, बुझाया गया मुझे

पहले तो छीन ली मेरी आँखों की रौशनी
फिर आईने के सामने लाया गया मुझे

इक लम्हा मुस्कुराने की क़ीमत न पूछिये
बे इख़्तियार पहले रुलाया गया मुझे

-डॉ शाहिद मीर
तेरा मेरा नाम लिखा था जिन पर तूने बचपन में
उन पेड़ों से आज भी तेरे हाथ की खुशबू आती है
जिस मिटटी पर मेरी माँ ने पैर धरे थे ऐ 'शाहिद'
उस मिटटी से जन्नत के बागात की खुशबू आती है
-डॉ शाहिद मीर
पढ़ लिख गए तो हम भी कमाने निकल गए
घर लौटने में फिर तो ज़माने निकल गए

सूखे गुलाब, सरसों के मुरझा गए हैं फूल
उनसे मिलने के सारे बहाने निकल गए

किन साहिलों पे नींद की परियाँ उतर गईं
किन जंगलों में ख़्वाब सुहाने निकल गए

'शाहिद' हमारी आँखों का आया उसे ख़याल
जब सारे मोतियों के खज़ाने निकल गए
-डॉ शाहिद मीर
ख़्वाबों की अन्जुमन में हर एक शै हसीन थी
जागे तो अपने पांव के नीचे ज़मीन थी
-डा. शाहिद मीर


उजले मोती हमने मांगे थे किसी से थाल भर
और उसने दे दिए आंसू हमें रूमाल भर
-डॉ शाहिद मीर