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Sunday, September 29, 2019

अभी साज़-ए-दिल में तराने बहुत हैं

अभी साज़-ए-दिल में तराने बहुत हैं
अभी ज़िंदगी के बहाने बहुत हैं

ये दुनिया हक़ीक़त की क़ाइल नहीं है
फ़साने सुनाओ फ़साने बहुत हैं

(क़ाइल = सहमत, राज़ी)

तिरे दर के बाहर भी दुनिया पड़ी है
कहीं जा रहेंगे ठिकाने बहुत हैं

मिरा इक नशेमन जला भी तो क्या है
चमन में अभी आशियाने बहुत हैं

(नशेमन = घोंसला), (चमन = बगीचा)

नए गीत पैदा हुए हैं उन्हीं से
जो पुर-सोज़ नग़्मे पुराने बहुत हैं

(पुर-सोज़ = जलन और तपन से भरा हुआ)

दर-ए-ग़ैर पर भीक माँगो न फ़न की
जब अपने ही घर में ख़ज़ाने बहुत हैं

हैं दिन बद-मज़ाक़ी के 'नौशाद' लेकिन
अभी तेरे फ़न के दिवाने बहुत हैं

-नौशाद लखनवी (संगीतकार जनाब नौशाद साहब)

Thursday, June 13, 2013

न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में ख़ुदा होता
हमीं से यह तमाशा है, न हम होते तो क्या होता

न ऐसी मंजिलें होतीं, न ऐसा रास्ता होता
संभल कर हम ज़रा चलते तो आलम ज़ेरे-पा होता

(आलम ज़ेरे-पा = दुनिया/ संसार पैरों के नीचे)

घटा छाती, बहार आती, तुम्हारा तज़किरा होता
फिर उसके बाद गुल खिलते कि ज़ख़्मे-दिल हरा होता

(तज़किरा = चर्चा, ज़िक्र)

बुलाकर तुमने महफ़िल में हमको गैरों से उठवाया
हमीं खुद उठ गए होते, इशारा कर दिया होता

तेरे अहबाब तुझसे मिल के भी मायूस लौट गए
तुझे 'नौशाद' कैसी चुप लगी थी, कुछ कहा होता

-नौशाद लखनवी