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Thursday, January 23, 2020

सब मिला इस राह में

सब मिला इस राह में
कुछ फूल भी कुछ शूल भी,
तृप्त मन में अब नहीं है शेष कोई कामना।।

चाह तारों की कहाँ
जब गगन ही आँचल बँधा हो,
सूर्य ही जब पथ दिखाए
पथिक को फिर क्या द्विधा हो,
स्वप्न सारे ही फलित हैं,
कुछ नहीं आसक्ति नूतन,
हृदय में सागर समाया, हर लहर जीवन सुधा हो

धूप में चमके मगर
है एक पल का बुलबुला,
अब नहीं उस काँच के चकचौंध की भी वासना ।।

जल रही मद्धम कहीं अब भी
पुरानी ज्योत स्मृति की,
ढल रही है दोपहर पर
गंध सोंधी सी प्रकृति की,
थी कड़ी जब धूप उस क्षण
कई तरुवर बन तने थे,
एक दिशा विहीन सरिता रुक गयी निर्बाध गति की।

मन कहीं भागे नहीं
फिर से किसी हिरणी सदृश,
बन्ध सारे तज सकूँ मैं बस यही है प्रार्थना ।।

काल के कुछ अनबुझे प्रश्नों के
उत्तर खोजता,
मन बवंडर में पड़ा दिन रात
अब क्या सोचता,
दूसरों के कर्म के पीछे छुपे मंतव्य को,
समझ पाने के प्रयासों को
भला क्यों कोसता,

शांत हो चित धीर स्थिर मन,
हृदय में जागे क्षमा,
ध्येय अंतिम पा सकूँ बस यह अकेली कामना ।।

-मानोशी

Saturday, May 4, 2019

लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो

लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो
होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो

(लफ़्ज़ ओ मंज़र = शब्द और दृश्य), (मआनी = अर्थ, मतलब, माने)

वो नहीं है न सही तर्क-ए-तमन्ना न करो
दिल अकेला है इसे और अकेला न करो

(तर्क-ए-तमन्ना = इच्छाओं/ चाहतों का त्याग)

बंद आँखों में हैं नादीदा ज़माने पैदा
खुली आँखों ही से हर चीज़ को देखा न करो

(नादीदा = अदृष्ट, अप्रत्यक्ष, अगोचर, Unseen)

दिन तो हंगामा-ए-हस्ती में गुज़र जाएगा
सुब्ह तक शाम को अफ़्साना-दर-अफ़्साना करो

(हंगामा-ए-हस्ती = जीवन की उथल-पुथल/ अस्तव्यस्तता)

-महमूद अयाज़

Wednesday, July 6, 2016

सारी अक़्ल-ओ-होश की आसाइशें
तुम ने सांचे में जुनूँ के ढाल दीं
कर लिया था मैं ने अहद-ए-तर्क-ए-इश्क़
तुम ने फिर बाँहें गले में डाल दीं
-जॉन एलिया

(आसाइशें = सुख, चैन, आराम, सुविधा, समृद्धि), (अहद-ए-तर्क-ए-इश्क़ = इश्क़ के त्याग का वचन, इश्क़ न करने का वादा)


Saturday, May 7, 2016

मैं होश में था तो फिर उसपे मर गया कैसे

मैं होश में था तो फिर उसपे मर गया कैसे
ये ज़हर मेरे लहू में उतर गया कैसे

कुछ उसके दिल में लगावट ज़रूर थी वरना
वो मेरा हाथ दबाकर गुज़र गया कैसे

ज़रूर उसकी  तवज्जो की रहबरी होगी
नशे में था तो मैं अपने ही घर गया कैसे

जिसे भुलाये कई साल हो गये 'कलीम'
मैं आज उसकी गली से गुज़र गया कैसे

-कलीम चाँदपुरी



Mehdi Hassan/ मेहदी हसन 






Mehdi Hassan/ मेहदी हसन (Private Mehfil)


Saturday, January 23, 2016

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूठी क़सम से आपका ईमान तो गया

दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उल्टी शिक़ायतें रहीं एहसान तो गया

डरता हूँ देख कर दिल-ए-बेआरज़ू को मैं
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया

(दिल-ए-बेआरज़ू = बिना इच्छाओं का दिल)

क्या आई राहत आई जो कुंज-ए-मज़ार में
वो वलवला वो शौक़ वो अरमान तो गया

(कुंज-ए-मज़ार = कब्र का कोना, कब्र का एकांत स्थान), (वलवला = उत्साह, उमंग, जोश)

देखा है बुतकदे में जो ऐ शेख कुछ न पूछ
ईमान की तो ये है कि ईमान तो गया

(बुतकदा = मंदिर)

इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो ज़िल्लतें हुईं
लेकिन उसे जता तो दिया जान तो गया

(इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ = प्रेम के रहस्य को प्रकट या ज़ाहिर करना), (ज़िल्लतें = तिरस्कार, अपमान, अनादर)

गो नामाबर से कुछ न हुआ पर हज़ार शुक्र
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया

(नामाबर = पत्रवाहक, संदेशवाहक)

बज़्म-ए-अदू में सूरत-ए-परवाना मेरा दिल
गो रश्क़ से जला तिरे क़ुर्बान तो गया

(बज़्म-ए-अदू = दुश्मन की महफ़िल), (रश्क़ = ईर्ष्या, जलन)

होश-ओ-हवास-ओ-ताब-ओ-तवाँ 'दाग़' जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया

(ताब-ओ-तवाँ = तेज और बल)

-दाग़ देहलवी



Tuesday, January 6, 2015

हम ही में थी न कोई बात, याद न तुम को आ सके

हम ही में थी न कोई बात, याद न तुम को आ सके
तुमने हमें भुला दिया, हम न तुम्हें भुला सके

तुम ही न सुन सके अगर, क़िस्सा-ए-ग़म सुनेगा कौन
किस की ज़ुबाँ खुलेगी फिर, हम न अगर सुना सके

होश में आ चुके थे हम, जोश में आ चुके थे हम
बज़्म का रंग देख कर सर न मगर उठा सके

(बज़्म =महफ़िल)

शौक़-ए-विसाल है यहाँ, लब पे सवाल है यहाँ
किस की मजाल है यहाँ, हम से नज़र मिला सके

(शौक़-ए-विसाल = मिलन की चाहत)

रौनक़-ए-बज़्म बन गए लब पे हिकायतें रहीं
दिल में शिकायतें रहीं लब न मगर हिला सके

(रौनक़-ए-बज़्म = महफ़िल की रौनक), (हिकायतें = कहानियाँ, किस्से)

ऐसा भी कोई नामाबर बात पे कान धर सके
सुन कर यक़ीन कर सके जा के उन्हें सुना सके

 (नामाबर = संदेशवाहक, डाकिया)

अहल-ए-ज़बाँ तो हैं बहुत कोई नहीं है अहल-ए-दिल
कौन तेरी तरह 'हफ़ीज़' दर्द के गीत गा सके

(अहल-ए-ज़बाँ = बोलने वाले, कहने वाले), (अहल-ए-दिल = दिल वाले)

-हफ़ीज़ जालंधरी

                                                       मेहदी हसन/ Mehdi Hassan

जगजीत सिंह/ Jagjit Singh 

Sunday, December 1, 2013

कभी शेर-ओ-नग़मा बनके कभी आँसूओ में ढल के
वो मुझे मिले तो लेकिन, मिले सूरतें बदल के

कि वफ़ा की सख़्त राहें, कि तुम्हारे पाँव नाज़ुक
न लो इंतकाम मुझसे मेरे साथ-साथ चल के

न तो होश से ताल्लुक न जूनूँ से आशनाई
ये कहाँ पहुँच गये हम तेरी बज़्म से निकल के
-ख़ुमार बाराबंकवी

Friday, July 5, 2013

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम
उस निगाह-ए-आशना को क्या समझ बैठे थे हम

(निगाह-ए-आशना = परिचित दृष्टि)

रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गये
वाह री ग़फ़्लत तुझे अपना समझ बैठे थे हम

(ग़फ़्लत = असावधानी, बेपरवाही)

होश की तौफ़ीक़ भी कब अहल-ए-दिल को हो सकी
इश्क़ में अपने को दीवाना समझ बैठे थे हम

(तौफ़ीक़ = सामर्थ्य, शक्ति)

बेनियाज़ी को तेरी पाया सरासर सोज़-ओ-दर्द
तुझ को इक दुनिया से बेगाना समझ बैठे थे हम

(बेनियाज़ी = स्वछंदता)

भूल बैठी वो निगाह-ए-नाज़ अहद-ए-दोस्ती
उस को भी अपनी तबीयत का समझ बैठे थे हम

(निगाह-ए-नाज़ = चंचल दृष्टि, हाव-भाव भरी)

हुस्न को इक हुस्न की समझे नहीं और ऐ 'फ़िराक़'
मेहरबाँ नामेहरबाँ क्या क्या समझ बैठे थे हम
-फ़िराक़ गोरखपुरी

उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे

उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे
राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे

उसने पोंछे ही नहीं अश्क़ मेरी आँखों से
मैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसे

बस उसी दिन से ख़फ़ा है वो मेरा इक चेहरा
धूप में आईना इक रोज दिखाया था जिसे

छू के होंठों को मेरे वो भी कहीं दूर गई
इक ग़ज़ल शौक़ से मैंने कभी गाया था जिसे

दे गया घाव वो ऐसे कि जो भरते ही नहीं
अपने सीने से कभी मैंने लगाया था जिसे

होश आया तो हुआ यह कि मेरा इक दुश्मन
याद फिर आने लगा मैंने भुलाया था जिसे

वो बड़ा क्या हुआ सर पर ही चढ़ा जाता है
मैंने काँधे पे `कुँअर' हँस के बिठाया था जिसे

-कुँअर बेचैन

Monday, May 13, 2013

सोज़े-ग़म देके उसने ये इरशाद किया

सोज़े-ग़म देके उसने ये इरशाद किया
जा तुझे कश्मकश-ए-दहर से आज़ाद किया

(सोज़े-ग़म दुःख की जलन), (इरशाद = आदेश, हुक्म),  (दहर = ज़माना, समय, युग)

वो करें भी तो किन अल्फ़ाज में तिरा शिकवा
जिनको तिरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया

इसका रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बरबाद
इसका ग़म है कि बहुत देर में बरबाद किया

इतना मासूम हूँ फितरत से, कली जब चटकी
झुक के मैंने कहा, मुझसे कुछ इरशाद किया

(इरशाद = आदेश, हुक्म)

मेरी हर साँस है इस बात की शाहिद-ए-मौत
मैंने ने हर लुत्फ़ के मौक़े पे तुझे याद किया

(शाहिद-ए-मौत = मौत की गवाह)

मुझको तो होश नहीं तुमको खबर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बर्बाद किया

वो तुझे याद करे जिसने भुलाया हो कभी
हमने तुझ को न भुलाया न कभी याद किया

कुछ नहीं इस के सिवा 'जोश' हरीफ़ों का कलाम
वस्ल ने शाद किया, हिज्र ने नाशाद किया

(वस्ल = मिलन), (हरीफ़ = प्रतिद्वंदी), (शाद = खुश), (हिज्र = जुदाई), (नाशाद =  नाखुश)

-जोश मलीहाबादी

                                                       Ghulam Ali/ ग़ुलाम अली 



Wednesday, May 8, 2013

ख़ुदी गुम कर चूका हूँ, अब ख़ुशी-ओ-ग़म से क्या मतलब,
तअल्लुक़ होश से छोड़ा तो फिर आलम से क्या मतलब ।
-अकबर इलाहाबादी

Sunday, November 4, 2012

काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में,
उतरा है रामराज विधायक निवास में।

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत,
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में।

आजादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह,
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में।

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें,
संसद बदल गयी है यहां की नख़ास में।

जनता के पास एक ही चारा है बगावत,
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में।
-अदम गोंडवी

Sunday, October 14, 2012

हाले दिल सुना नहीं सकता
लफ़्ज़ मानी को पा नहीं सकता

इश्क़ नाज़ुक मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता

होशे-आरिफ़ की है यही पहचान
कि ख़ुदी में समा नहीं सकता

पोंछ सकता है हमनशीं आँसू
दाग़े-दिल को मिटा नहीं सकता

मुझको हैरत है इस कदर उस पर
इल्म उसका घटा नहीं सकता
-अकबर इलाहाबादी

Friday, October 12, 2012

आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है

भूल जाता हूँ मैं सितम उस के
वो कुछ इस सादगी से मिलता है

आज क्या बात है के फूलों का
रंग तेरी हँसी से मिलता है

मिल के भी जो कभी नहीं मिलता
टूट कर दिल उसी से मिलता है

कार-ओ-बार-ए-जहाँ सँवरते हैं
होश जब बेख़ुदी से मिलता है

-जिगर मुरादाबादी

Thursday, September 27, 2012

इश्क करता है तो फिर इश्क की तौहीन न कर,
या तो बेहोश न हो, हो तो ना फिर होश में आ
-शायर: नामालूम