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Monday, March 4, 2019

किसी को बे-सबब शोहरत नहीं मिलती है ऐ 'वाहिद'
उन्हीं के नाम हैं दुनिया में जिन के काम अच्छे हैं
-वाहिद प्रेमी

Saturday, April 9, 2016

न शोहरत मिली हमें

न शोहरत मिली हमें
न दौलत मिली हमें

पर इतना तो हुआ
के इज़्ज़त मिली हमें

सच मुंह पे कह देते हैं
बुरी आदत मिली हमें

पुरखों की दुआएं थी
एक छत मिली हमें

हुनर तो न था कोई
बस कुव्वत मिली हमें

(कुव्वत = शक्ति)

उम्मीद प्यार की थी जहाँ
वहीँ नफरत मिली हमें

हश्र बदी का जब देखा
कुछ हिम्मत मिली हमें

खाली थे कब ग़म से
कब फुर्सत मिली हमें

झोली भरी हैं दुआओं से
ये बरकत मिली हमें

दफ्न हैं तेरे पहलू में
क्या सुहबत मिली हमें

- विकास वाहिद

Saturday, May 30, 2015

एक आज़ार हुई जाती है शोहरत हम को

एक आज़ार हुई जाती है शोहरत हम को
ख़ुद से मिलने की भी मिलती नहीं फ़ुर्सत हम को

(आज़ार = दुःख, कष्ट, रोग)

रौशनी का ये मुसाफ़िर है रह-ए-जाँ का नहीं
अपने साए से भी होने लगी वहशत हम को

(रह-ए-जाँ = ज़िन्दगी की राह)

आँख अब किस से तहय्युर का तमाशा माँगे
अपने होने पे भी होती नहीं हैरत हम को

(तहय्युर = अचम्भा, विस्मय, हैरत)

अब के उम्मीद के शोले से भी आँखें न जलीं
जाने किस मोड़ पे ले आई मोहब्बत हम को

कौन सी रुत है ज़माने हमें क्या मालूम
अपने दामन में लिए फिरती है हसरत हम को

ज़ख़्म ये वस्ल के मरहम से भी शायद न भरे
हिज्र में ऐसी मिली अब के मसाफ़त हम को

(वस्ल = मिलन), (हिज्र = जुदाई), (मसाफ़त = फ़ासला, दूरी)

दाग़-ए-इसयाँ तो किसी तौर न छुपते 'अमजद'
ढाँप लेती न अगर चादर-ए-रहमत हम को

(दाग़-ए-इसयाँ = पाप के दाग़), (चादर-ए-रहमत = कृपा की चादर)

-अमजद इस्लाम अमजद

Wednesday, January 14, 2015

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिये
कुछ हुनर चाहिए बाज़ार में रहने के लिये

(चश्म-ए-ख़रीदार = खरीदने वाले की नज़र)

अब तो बदनामी का शोहरत से वो रिश्ता है, के लोग
नंगे हो जाते है अख़बार में रहने के लिये

-शकील आज़मी

Saturday, May 18, 2013

हम तालिबे शोहरत हैं हमें नंग से क्या काम,
बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा ।
-नवाब मुहम्मद मुस्तफ़ा खां शेफ़्ता

[(तालिबे शोहरत = प्रसिद्धि/ ख्याति ढूँढने वाला), (नंग = प्रतिष्ठा, सम्मान)]

Thursday, September 27, 2012

ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है
दुनिया उन्हीं फूलों को पैरों से मसलती है

लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे
यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है

आ जाता है ख़ुद खींच कर दिल सीने से पटरी पर
जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है

आँसू कभी पलकों पर ता देर नहीं रुकते
उड़ जाते हैं ये पंछी जब शाख़ लचकती है

ख़ुशरंग परिंदों के लौट आने के दिन आये
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है

यूँ प्यार नहीं छिपता पलकों के झुकाने से 
आँखों के लिफ़ाफ़ों में तहरीर चमकती है

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
-बशीर बद्र

Tuesday, September 25, 2012

न पाने की ख़ुशी है कुछ, न खोने का ही कुछ ग़म है 
ये दौलत और शोहरत सिर्फ़ कुछ ज़ख्मो का मरहम है 
अजब सी कश्म-कश है रोज़ जीने रोज़ मरने में 
मुकम्मल ज़िन्दगी तो है मगर पूरी से कुछ कम है

-डॉ. कुमार विश्वास
नादान लहर नन्ही सी, जब भी कहीं उभरती है
नासमझी में समंदर के, लहजे में बात करती है
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस नदी से निकली है, वो सूख भी सकती है
-बशीर बद्र