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Saturday, March 27, 2021

समंदर हो ज़मीं हो इसको दफ़नाया नहीं जाता।
मियां हरगिज़ कभी भी सच को झुठलाया नहीं जाता।।

अकेले ही पहुंचना है हमें उस आख़री मंज़िल
किसी का चाह कर भी साथ में साया नहीं जाता।

पहेली सा बुना है ज़िन्दगी ने हर हसीं रिश्ता
उलझ जाए सिरा कोई तो सुलझाया नहीं जाता।

हमारे ख़ून में शामिल है हरदम ये रविश "वाहिद"
पनाहों में कोई आए तो ठुकराया नहीं जाता।

(रविश =  गति, रंग-ढंग, बाग़ की क्यारियों के बीच का छोटा मार्ग)

- विकास वाहिद
26/03/21

Wednesday, February 24, 2021

उभरा हर एक बार नया फूल बनके मैं
मिट्टी में जितनी बार मिलाया गया मुझे
इक़बाल अशहर

Sunday, August 11, 2019

अँधेरी रात को ये मोजज़ा दिखायेंगे हम

अँधेरी रात को ये मोजज़ा दिखायेंगे हम
चिराग़ अगर न मिला, अपना दिल जलायेंगे हम

(मोजज़ा =चमत्कार)

हमारी कोहकनी के हैं मुख़्तलिफ़ मेयार
पहाड़ काट के रस्ते नए बनायेंगे हम

(कोहकनी = पहाड़ खोदना, बहुत अधिक परिश्रम का काम), (मुख़्तलिफ़ = अनेक प्रकार का, भिन्न, पृथक, जुदा, कई तरह का)  (मेयार = पैमाना, मापदंड)

जो दिल दुखा है तो ये अज़्म भी मिला है हमें
तमाम उम्र किसी का न दिल दुखायेंगे हम

(अज़्म = संकल्प, दृढ निश्चय, श्रेष्ठता)

बहुत निढाल हैं सुस्ता तो लेंगे पल दो पल
उलझ गया कहीं दामन तो क्या छुड़ायेंगे हम

अगर है मौत में कुछ लुत्फ़ बस तो इतना है
कि इसके बाद ख़ुदा का सुराग़ पायेंगे हम

हमें तो कब्र भी तन्हा न कर सकेगी 'नदीम'
के हर तरफ से ज़मीन को क़रीब पायेंगे हम

-अहमद नदीम कासमी

Thursday, August 1, 2019

ढूंढता है ज़मीन में प्यारे

ढूंढता है ज़मीन में प्यारे
सांप हैं आस्तीन में प्यारे।

मैं न मंदिर में हूँ न मस्ज़िद में
मैं हूँ तेरे यक़ीन में प्यारे।

मैं मुहब्बत के लफ्ज़ में हूँ बस
हूँ वफ़ा में मैं दीन में प्यारे।

(दीन = पंथ, मत, धर्म)

उसकी आदत है मेरे ढूंढेगा
ऐब वो खुर्दबीन में प्यारे।

(खुर्दबीन = Microscope)

उसको मालूम है कि नाटक में
किसको मरना है सीन में प्यारे।

ज़िन्दगी कट रही है रफ़्ता रफ़्ता
वक़्त की इस मशीन में प्यारे।

(रफ़्ता रफ़्ता = धीरे धीरे)

- विकास वाहिद
३१/०७/२०१९


Thursday, June 20, 2019

जब तक था दम में दम न दबे आसमाँ से हम
जब दम निकल गया तो ज़मीं ने दबा लिया
-आबिद जलालपुरी

Saturday, June 15, 2019

आकाश की हसीन फ़ज़ाओं में खो गया

आकाश की हसीन फ़ज़ाओं में खो गया
मैं इस क़दर उड़ा कि ख़लाओं में खो गया

(ख़लाओं = अँतरिक्षों)

कतरा रहे हैं आज के सुक़रात ज़हर से
इंसान मस्लहत की अदाओं में खो गया

(मस्लहत = समझदारी, हित, भलाई)

शायद मिरा ज़मीर किसी रोज़ जाग उठे
ये सोच के मैं अपनी सदाओं में खो गया

(सदाओं = आवाज़ों)

लहरा रहा है साँप सा साया ज़मीन पर
सूरज निकल के दूर घटाओं में खो गया

मोती समेट लाए समुंदर से अहल-ए-दिल
वो शख़्स बे-अमल था दुआओं में खो गया

(अहल-ए-दिल = दिल वाले), (बे-अमल = बिना कर्म के)

ठहरे हुए थे जिस के तले हम शिकस्ता-पा
वो साएबाँ भी तेज़ हवाओं में खो गया

(शिकस्ता-पा = मजबूर, असहाय, लाचार), (साएबाँ = शामियाना, मण्डप)

-कामिल बहज़ादी

Monday, May 20, 2019

सियाह-ख़ाना-ए-दिल पर नज़र भी करता है

सियाह-ख़ाना-ए-दिल पर नज़र भी करता है
मेरी ख़ताओं को वो दरगुज़र भी करता है

(सियाह-ख़ाना-ए-दिल = दिल का अँधेरा कोना), (दरगुज़र = अनदेखा)

परिंद ऊँची उड़ानों की धुन में रहता है
मगर ज़मीं की हदों में बसर भी करता है

तमाम उम्र के दरिया को मोड़ देता है
वो एक हर्फ़ जो दिल पर असर भी करता है

(हर्फ़ = अक्षर)

वो लोग जिन की ज़माना हँसी उड़ाता है
इक उम्र बाद उन्हें मो'तबर भी करता है

(मो'तबर = विश्वसनीय, भरोसेमंद)

जला के दश्त-ए-तलब में उम्मीद की शमएँ
अज़िय्यतों से हमें बे-ख़बर भी करता है

(दश्त-ए-तलब = इच्छाओं के रेगिस्तान), (अज़िय्यतों = यातनाओं, तकलीफ़ों)

-खलील तनवीर

Thursday, May 16, 2019

जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम

जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम
बेदार हो गए किसी ख़्वाब-ए-गिराँ से हम

(बेदार = जागृत, जागना), (ख़्वाब-ए-गिराँ =  बड़ा सपना)

ऐ नौ-बहार-ए-नाज़ तिरी निकहतों की ख़ैर
दामन झटक के निकले तिरे गुल्सिताँ से हम

(ऐ नौ-बहार-ए-नाज़ = नयी बहार के नाज़-नख़रे ), (निकहतों = ख़ुशबुओं)

पिंदार-ए-आशिक़ी की अमानत है आह-ए-सर्द
ये तीर आज छोड़ रहे हैं कमाँ से हम

(पिंदार-ए-आशिक़ी = प्रेम का अभिमान या समझ)

आओ ग़ुबार-ए-राह में ढूँढें शमीम-ए-नाज़
आओ ख़बर बहार की पूछें ख़िज़ाँ से हम

(ग़ुबार-ए-राह = रास्ते की धूल का तूफ़ान), (शमीम-ए-नाज़ = प्यार की खुशबू), (ख़िज़ाँ = पतझड़)

आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ' के साथ
कैसे ज़मीं की बात कहें आसमाँ से हम

-अहमद नदीम क़ासमी

Friday, May 3, 2019

इक रोज़ छीन लेगी हमीं से ज़मीं हमें
छीनेंगे क्या ज़मीं के ख़ज़ाने ज़मीं से हम
-सबा अकबराबादी

Wednesday, February 20, 2019

बदन को ज़ख़्म करें ख़ाक को लबादा करें

बदन को ज़ख़्म करें ख़ाक को लबादा करें
जुनूँ की भूली हुई रस्म का इआदा करें

(इआदा = दोहराना, पुनरावृत्ति)

तमाम अगले ज़मानों को ये इजाज़त है
हमारे अहद-ए-गुज़िश्ता से इस्तिफ़ादा करें

(अहद-ए-गुज़िश्ता = बीती हुई उम्र, भूतकाल), (इस्तिफ़ादा = लाभ उठायें)

उन्हें अगर मिरी वहशत को आज़माना है
ज़मीं को सख़्त करें दश्त को कुशादा करें

(दश्त = जंगल), (कुशादा = खुला हुआ, फैला हुआ)

चलो लहू भी चराग़ों की नज़्र कर देंगे
ये शर्त है कि वो फिर रौशनी ज़ियादा करें

सुना है सच्ची हो नीयत तो राह खुलती है
चलो सफ़र न करें कम से कम इरादा करें

-मंज़ूर हाशमी

Thursday, February 7, 2019

मिरा मिट्टी से चेहरा अट गया तो

मिरा मिट्टी से चेहरा अट गया तो ?
सफ़र मुश्किल था लेकिन, कट गया तो ?

उमड़ आया तो है अश्कों का बादल
बरस जाने से पहले छट गया तो ?

ज़मीं क्या आसमाँ को थाम लेगी ?
अगर मैं दरमियाँ से हट गया तो

भला ग़ैरों में कैसे जी सकूँगा ?
अगर अपनों से ही मैं कट गया तो

मुझे क्यूँ झूठ पर उकसा रहे हो
तुम्हारे ही मुक़ाबिल डट गया तो ?

तो क्या तुम तुन्द तूफ़ाँ रोक लोगे ?
अगर मौजों से साहिल कट गया तो ?

(तुन्द = तीव्र, तेज)

मुझे नफ़रत के सांचों में न ढालो
उन्हीं खानों में घिर के बट गया तो ?

तो फिर ये ज़िन्दगी भी काट लूँगा
अगर ये आज का दिन कट गया तो ?

"शकील आज़ाद" कब लौटोगे घर को ?
ग़ुबार-ए-राह से रास्ता अट गया तो

-शकील आज़ाद

Saturday, December 22, 2018

रात की धड़कन जब तक जारी रहती है

रात की धड़कन जब तक जारी रहती है
सोते नहीं हम ज़िम्मेदारी रहती है

जब से तू ने हल्की हल्की बातें कीं
यार तबीअत भारी भारी रहती है

पाँव कमर तक धँस जाते हैं धरती में
हाथ पसारे जब ख़ुद्दारी रहती है

वो मंज़िल पर अक्सर देर से पहुँचे हैं
जिन लोगों के पास सवारी रहती है

छत से उस की धूप के नेज़े आते हैं
जब आँगन में छाँव हमारी रहती है

(नेज़े = तीर)

घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है

-राहत इंदौरी

Friday, December 21, 2018

कटते ही संग-ए-लफ़्ज़ गिरानी निकल पड़े

कटते ही संग-ए-लफ़्ज़ गिरानी निकल पड़े
शीशा उठा कि जू-ए-मआनी निकल पड़े

(संग-ए-लफ़्ज़ = शब्द का पत्थर), (गिरानी = भारीपन, बोझ), (शीशा = शराब की बोतल), (जू-ए-मआनी = अर्थों/ मतलबों/ Meanings की नदी)

प्यासो रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर
मारो ज़मीं पे पाँव कि पानी निकल पड़े

(दश्त = जंगल), (मुंतज़िर = प्रतीक्षारत)

मुझ को है मौज मौज गिरह बाँधने का शौक़
फिर शहर की तरफ़ न रवानी निकल पड़े

(रवानी  = बहाव, प्रवाह, धार)

होते ही शाम जलने लगा याद का अलाव
आँसू सुनाने दुख की कहानी निकल पड़े

'साजिद' तू फिर से ख़ाना-ए-दिल में तलाश कर
मुमकिन है कोई याद पुरानी निकल पड़े

(ख़ाना-ए-दिल = हृदय रुपी घर)

-इक़बाल साजिद

Tuesday, October 16, 2018

हरा शजर न सही ख़ुश्क घास रहने दे

हरा शजर न सही ख़ुश्क घास रहने दे
ज़मीं के जिस्म पे कोई लिबास रहने दे

(शजर = पेड़, वृक्ष), (ख़ुश्क घास = सूखी घास)

कहीं न राह में सूरज का क़हर टूट पड़े
तू अपनी याद मिरे आस-पास रहने दे

तसव्वुरात के लम्हों की क़द्र कर प्यारे
ज़रा सी देर तो ख़ुद को उदास रहने दे

(तसव्वुर = ख़याल, विचार, याद)

-सुल्तान अख़्तर

Saturday, March 3, 2018

रंग

सब रंग यहीं भोगे, सीखे
सब रंग यहीं देखे जी के
ख़ुश-रंग तबीयत के आगे
सब रंग ज़माने के फीके

कुछ रंग लड़कपन के हिस्से
कुछ रंग बुज़ुर्गों के क़िस्से
कुछ रंग तो कह देंगे सबसे
कुछ रंग कहें जाकर किससे

कुछ रंग अदावत की गांठें
कुछ रंग मुहब्बत की बातें
कुछ रंग सलोनी आशाएँ
कुछ रंग ख़ुशी की सौग़ातें

कुछ रंग निशानी शर्मों की
कुछ रंग कहानी कर्मों की
कुछ रंग नमाज़ें और सजदे
कुछ रंग अलामत धर्मों की

कुछ रंग 'धरा' की तक़दीरें
कुछ रंग 'गगन' की तस्वीरें
कुछ रंग 'हवा' की तासीरें
कुछ रंग 'अगन' की शमशीरें
कुछ रंग हैं 'जल' की जागीरें

सब रंग यहीं भोगे, सीखे
सब रंग यहीं देखे जी के
ख़ुश-रंग तबीयत के आगे
सब रंग ज़माने के फीके

-आलोक श्रीवास्तव

Monday, January 29, 2018

ज़िंदगी की हर कहानी बेअसर हो जाएगी

ज़िंदगी की हर कहानी बेअसर हो जाएगी
हम ना होंगे तो ये दुनिया दर-ब-दर हो जाएगी

पांव पत्थर करके छोड़ेगी अगर रुक जाइये
चलते रहिए तो ज़मीं भी हमसफ़र हो जाएगी

तुमने ख़ुद ही सर चढ़ाई थी सो अब चक्खो मज़ा
मैं न कहता था के दुनिया दर्द-ए-सर हो जाएगी

तल्खियां भी लाज़िमी हैं ज़िन्दगी के वास्ते
इतना मीठा बनकर मत रहिए शकर हो जाएगी

जुगनुओं को साथ लेकर रात रौशन कीजिए
रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जाएगी

(सहर = सुबह)

- राहत इंदौरी

Tuesday, November 8, 2016

हर हंसी को उजाड़ देते हैं

( जौन एलिया के नाम )

हर हंसी को उजाड़ देते हैं
खेल आँसू बिगाड़ देते हैं

रोज़ उठाते हैं खोद कर ख़ुद को
रोज़ फिर ख़ुद में गाड़ देते हैं

जाने हम क्या बनाने वाले हैं
रोज़ कुछ तोड़-ताड़ देते हैं

रोज़ दुनिया की धूल लगती है
रोज़ हम जिसको झाड़ देते हैं

अब तो बच्चे भी घर के बूढ़ों को
आते-जाते लताड़ देते हैं

रोज़ करते हैं ख़ुद से दो-दो हाथ
रोज़ ख़ुद को पछाड़ देते हैं

वो उतरता कहाँ है लफ़्ज़ों में
रोज़ लिखते हैं, फाड़ देते हैं

ख़्वाब अच्छे हैं आसमाँ के, मगर
ये ज़मीं से उखाड़ देते हैं

- राजेश रेड्डी


( Jaun Elia ke naam )

Har hansee ko ujaad detey hain
Khel aansoo bigaad detey hain

Roz uthaatey hain khod kar khud ko
Roz phir khud mein gaad detey hain

Jaaney ham kya banaane waale hain
Roz kuchh tod-taad detey hain

Roz duniyaa ki dhool lagtee hai
Roz ham jisko jhaad detey hain

Ab toh bachche bhi ghar ke boodhon ko
Aatey-jaatey lataad detey hain

Roz karte hain khud se do-do haath
Roz khud ko pachhaad detey hain

Wo utartaa kahaan hai lafzon mein
Roz likhtey hain, phaad detey hain

Khwaab achchhe hain aasmaN ke, magar
Ye zameeN se ukhaad detey hain

- Rajesh Reddy

Sunday, September 25, 2016

ख़ून अपना हो या पराया हो

ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मग़रिब में हो कि मशरिक में
अम्न-ए-आलम का ख़ून है आख़िर

(नस्ल-ए-आदम = इंसान का वंश), (मग़रिब = पश्चिम), (मशरिक = पूर्व),(अम्न-ए-आलम = दुनिया की शांति)

बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूह-ए-तामीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के
ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है

(रूह-ए-तामीर = आत्मा का निर्माण), (ज़ीस्त = जीवन)

टैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
ज़िंदगी मय्यतों पे रोती है

इसलिए ऐ शरीफ इंसानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है।

-साहिर लुधियानवी

हालात के कदमों पे कलंदर नहीं गिरता

हालात के कदमों पे कलंदर नहीं गिरता
टूटे भी जो तारा तो जमीं पर नहीं गिरता

गिरते हैं समंदर में बड़े शौक़ से दरिया
लेकिन किसी दरिया में समंदर नहीं गिरता

समझो वहां फलदार शजर कोई नहीं है
वह सेहन कि जिसमें कोई पत्थर नहीं गिरता

(शजर = पेड़)

इतना तो हुआ फ़ायदा बारिश की कमी का
इस शहर में अब कोई फिसल कर नहीं गिरता

इनआम के लालच में लिखे मद्ह किसी की
इतना तो कभी कोई सुख़नवर नहीं गिरता

(मद्ह = तारीफ़)

हैरां है कई रोज से ठहरा हुआ पानी
तालाब में अब क्यों कोई कंकर नही गिरता

इस बंदा-ए-खुद्दार पे नबियों का है साया
जो भूख में भी लुक्मा-ए-तर पर नहीं गिरता

(लुक्मा-ए-तर = अच्छा भोजन)

करना है जो सर म'अरका-ए-जीस्त तो सुन ले
बे-बाज़ू-ए-हैदर दर-ए-ख़ैबर नहीं गिरता

क़ायम है 'क़तील' अब यह मेरे सर के सुतूँ पर
भूचाल भी आए तो अब मेरा घर नहीं गिरता

(सुतूँ = खम्बा)

-क़तील शिफ़ाई

https://www.youtube.com/watch?v=bwAN7hh2VYY&feature=player_embedded

Saturday, September 24, 2016

सारा ज़माना जब खिलाफ बोलता है

सारा ज़माना जब खिलाफ बोलता है
तो समझ ले के तू साफ़ बोलता है

जो लोग बहुत ख़ामोश रहा करते हैं
ज़माने में उनका औसाफ़ बोलता है

(औसाफ़ = खूबियां)

दफन कर दो इसे तुम चाहे कितना
ज़मीं से निकल के इंसाफ बोलता है

मेरा कोई हुनर शामिल नहीं इसमें
बस लहजे में कोई अस्लाफ बोलता है

(अस्लाफ = पूर्वज)

लाख कोशिश करें हम दूरी मिटाने की
चेहरों से मगर इख़्तिलाफ़ बोलता है

(इख़्तिलाफ़ = मतभेद)

नई है पीढ़ी मुरव्वत से नहीं वाक़िफ़
बेटा अब तो बाप से साफ़ बोलता है

बुरे वक़्त में तूने मदद की हो जिसकी
अक्सर वही तेरे खिलाफ बोलता है

तुम लाख छुपा लो हमसे जुदाई का हाल
हक़ीक़त ये भीगा हुआ गिलाफ बोलता है

(गिलाफ = तकिये का खोल)

-विकास वाहिद