वो आँख जिसके बनाव पे ख़ालिक इतराये
ज़बाने-शे’र को तारीफ़ करते शर्म आये
(ख़ालिक = सृष्टा)
वो होंठ, फ़ैज़ से जिनके, बहारे-लालःफरोश
बहिश्त-ओ-कौसर-ओ-तसनीम-ओ-सलसबील ब-दोश
(फ़ैज़ = दानशीलता), (बहारे-लालःफरोश = लाल फूल बेचने वाली बहारें), (बहिश्त-ओ-कौसर-ओ-तसनीम-ओ-सलसबील = जन्नत और उसकी नहरें), (ब-दोश = कंधे पर लिए हुए)
गुदाज़-जिस्म, क़बा जिस पे सज के नाज़ करे
दराज़ क़द जिसे सर्वे-सही नमाज़ करे
(गुदाज़ = मृदुल, मांसल), (क़बा = एक प्रकार का लम्बा ढीला पहनावा), (दराज़ = लंबा), (सर्वे-सही = सर्व के सीधे पेड़)
ग़रज़ वो हुस्न जो मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम नहीं
वो हुस्न जिसका तस्सवुर बशर का काम नहीं
(मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम = परिचय या नाम का मुहताज), (तस्सवुर = कल्पना, ख़याल), (बशर = मनुष्य, इंसान)
किसी ज़माने में इस रहगुज़र से गुज़रा था
ब-सद-ग़ुरूरो-तजम्मुल इधर से गुज़रा था
(ब-सद-ग़ुरूरो-तजम्मुल = सैकड़ों अभिमान और सौंदर्य/ हुस्न लेकर)
और अब ये राहगुज़र भी है दिलफ़रेब-ओ-हसीं
है इसकी ख़ाक मे कैफ़-ए-शराब-ओ-शे’र मकीं
(कैफ़-ए-शराब-ओ-शे’र = मदिरा और कविता की मादकता), (मकीं = बसा हुआ)
हवा मे शोख़ी-ए-रफ़्तार की अदाएँ हैं
फ़ज़ा मे नर्मी-ए-गुफ़्तार की सदाएँ हैं
(शोख़ी-ए-रफ़्तार = चाल की चंचलता), (नर्मी-ए-गुफ़्तार = वाणी की कोमलता), (सदाएँ = आवाज़ें)
गरज़ वो हुस्न अब इस राह का ज़ुज़्वे-मंज़र है
नियाज़-ए-इश्क़ को इक सज्दागाह मयस्सर है
(ज़ुज़्वे-मंज़र = दृश्य का अंश), (नियाज़-ए-इश्क़ = प्रेम की कामना)
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आबिदा परवीन/ Abida Parveen
Sunday, July 14, 2013
नक़्श फ़रियादी है, किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का
काग़ज़ी है पैरहन, हर पैकर-ए-तस्वीर का
[(नक़्श = चित्र, निशान), (शोख़ी-ए-तहरीर = शरारत भरी लिखावट, तहरीर की सुन्दरता और बाँकपन), (पैरहन = लिबास, वस्त्र), (पैकर-ए-तस्वीर = चित्र का आकार)]
प्राचीन ईरान में रिवाज़ था कि फ़रियाद करनेवाले काग़ज़ के कपड़े पहनकर आते थे।
काव-काव-ए सख़्तजानीहा-ए-तन्हाई, न पूछ
सुबह करना शाम का, लाना है जू-ए-शीर का
(काव-काव = खुदाई करना, कड़ी मेहनत), (सख़्तजानी = ऐसी हालत जिसमे प्राण मुश्किल से निकले), (हा = बहुवचन), (तन्हाई = एकांत, अकेलापन), (काव-काव-ए सख़्तजानीहा-ए-तन्हाई = तन्हाई की मुसीबतें, विरह के दुःख), (जू-ए-शीर = दूध की नहर)
शीरीं-फ़रहाद की कहानी में फ़रहाद पहाड़ से दूध की नहर काटने गया था और वहीं पर मर गया। इसलिए जू-ए-शीर लाना मतलब कठिन काम करना या कठिन काम में मर जाना) प्रेमिका से जुदाई और अकेलेपन की मुसीबतें। शाम और रात का काटना उतना ही कठिन है जितनी कठिनाई फरहाद को दूध की नहर लाने में हुई थी।
जज़्ब:-ए-बेइख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिये
सीन:-ए-शमशीर से बाहर है, दम शमशीर का
(जज़्ब: = तीव्र उमंग, आवेश), (बेइख़्तियार = जिस पर काबू न हो), (शौक़ = इच्छा, अभिलाषा) (जज़्ब:-ए-बेइख़्तियार-ए-शौक़ = इंतिहाई शौक की हालत, प्रेम का अतिशय भाव), (देखा चाहिये = देखना चाहिये) (शमशीर = तलवार), (सीन:-ए-शमशीर = तलवार की छाती), (दम = धार, साँस, प्राण)
आगही, दाम-ए-शनीदन, जिस क़दर चाहे बिछाए
मुद्दआ़ 'अ़न्क़ा है, अपने 'आ़लम-ए-तक़रीर का
(आगही = समझ-बूझ, अक़्ल), (दाम = जाल), (शनीदन = सुनना), (दाम-ए-शनीदन = बात को समझने की कोशिश) (मुद्दआ़ = उद्देश्य, मक़सद), (अ़न्क़ा = दुर्लभ), (आ़लम-ए-तक़रीर = बातों की दुनिया)
बसकि हूँ, ग़ालिब, असीरी में भी आतिश-ज़ेर-ए-पा
मू-ए-आतिश-दीद़: है हल्क़: मिरी ज़ंजीर का
(असीरी = क़ैद), (आतिश-ज़ेर-ए-पा = पाँव के नीचे की आग, व्याकुल, बेताब) (मू-ए-आतिश-दीद़: = आग में झुलसा हुआ बाल), (हल्क़: = ज़ंजीर की कड़ी)
-मिर्ज़ा ग़ालिब
Wednesday, May 15, 2013
तस्वीर मैंने मांगी थी शोख़ी तो देखिये,
इक फूल उसने भेज दिया है गुलाब का।
-अन्दलीब शादानी