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Monday, May 11, 2020

इल्म में भी सुरूर है लेकिन
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं
-अल्लामा इक़बाल

 (इल्म = ज्ञान), (सुरूर = प्रसन्नता, आनंद)

Monday, October 20, 2014

तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ

तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ

(वादा-ए-बेहिजाबी = बिना परदे में रहने का वादा)

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

(ज़ाहिदों = जितेन्द्रिय या संयमी व्यक्ति)

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ

(अहल-ए-महफ़िल = महफ़िल के लोग), (चिराग़-ए-सहर = सुबह का दीपक)

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ

(बज़्म = महफ़िल)

- अल्लामा इक़बाल

Rahat Fateh Ali Khan/ राहत फ़तेह अली ख़ान 

Dr. Radhika Chopda/ डा राधिका चोपड़ा 

Wednesday, September 4, 2013

ग़ाफ़िल न ही ख़ुदी से, कर अपनी पासबानी
शायद किसी हरम का, तू भी है आस्तानी
- अल्लामा इक़बाल

[(ग़ाफ़िल = बेसुध, बेख़बर), (पासबानी = चौकीदारी), (हरम = काबा, मस्जिद), (आस्तानी = दहलीज़, प्रवेशद्वार)]

ख़ुदी वह बहर है, जिसका कोई किनारा नहीं
तू आबजू उसे समझा अगर, तो चारा नहीं
- अल्लामा इक़बाल

[(बहर = दरिया, समुद्र), (आबजू = नदी,नहर)]

Friday, July 5, 2013

सितारों के आगे जहां और भी हैं

सितारों के आगे जहां और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहां और भी हैं

तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ाएं,
यहां सैकड़ों कारवां और भी हैं

(तही = खाली, रिक्त)

क़ना'अत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर,
चमन और भी, आशियां और भी हैं

[(क़ना'अत = संतोष), (आलम-ए-रंग-ओ-बू = इन्द्रीय संसार)]

अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म,
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां और भी हैं

(मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां = रोने-धोने की जगहें)

तू शाहीं है, परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमां और भी हैं

(शाहीं = गरुड़, उक़ाब, परवाज़ = उड़ान भरना)

इसी रोज़-ओ-शब में उलझकर न रह जा,
के तेरे ज़मीन-ओ-मकां और भी हैं

(रोज़-ओ-शब = सुबह-शाम के चक्कर)

गए दिन, के तन्हा था मैं अंजुमन में
यहां अब मेरे राज़दां और भी हैं

(अंजुमन = सभा)

- अल्लामा इक़बाल

Thursday, June 13, 2013

आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना
वो बाग़ की बहारें वो सब का चह-चहाना

आज़ादियाँ कहाँ वो अब अपने घोंसले की
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना

लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम
शबनम के आँसूओं पर कलियों का मुस्कुराना

वो प्यारी-प्यारी सूरत, वो कामिनी-सी मूरत
आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना
-अल्लामा इक़बाल

Saturday, May 4, 2013

तू मेरा शौक़ देख, मेरा इंतजार देख

गुलज़ारे-हस्ती-बूद न बेगानावार देख,
है देखने की चीज़, इसे बार-बार देख।

(गुलज़ारे-हस्ती-बूद न बेगानावार देख = जीवन के बग़ीचे को उदासीन नज़र से न देख)

आया है तू जहाँ में मिसाले-शरार देख
दम दे न जाए हस्ती-ए-नापायादार देख

[(मिसाले-शरार=चिंगारी की तरह),  (हस्ती-ए-नापायादार=नाशवान/ नश्वर जीवन) 

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं,
तू मेरा शौक़ देख, मेरा इंतजार देख।

(दीद= दर्शन, दीदार)

-अल्लामा इक़बाल

Sunday, April 21, 2013

जहाँ में अहले-ईमाँ, सूरते ख़ुरशीद जीते हैं,
इधर डूबे उधर निकले, उधर डूबे इधर निकले।
-अल्लामा इक़बाल

[(अहले-ईमाँ = ईमान वाले लोग, सच्चे लोग), (सूरते ख़ुरशीद - सूरज की तरह)]

Monday, April 15, 2013

ख़्वाब से बेदार होता है ज़रा महकूम अगर,
फिर सुला देती है उसको हुक्मरां की साहिरी ।
-अल्लामा इक़बाल

[(बेदार = जागृत), (महकूम = आश्रित), (हुक्मरां = प्रशासक), (साहिरी = जादूगरी)]

Thursday, March 21, 2013

हो सदाक़त के लिए जिस दिल में मरने की तड़प,
पहले अपने पैकरे-ख़ाकी में जाँ पैदा करे ।
-इक़बाल

[(सदाक़त = सत्यता), (पैकरे-ख़ाकी = मिट्टी से बना शरीर)]

Thursday, March 14, 2013

मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
तन की दौलत छाँव है, आता है धन जाता है धन
अपने मन में डूबकर पा जा सुराग़-ए-ज़िन्दगी
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन, अपना तो बन
-अल्लामा इक़बाल

Tuesday, October 2, 2012

तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो,
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो

तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है,
अंजाम का हो खतरा आगाज़ बदल डालो

पुर सोज़ दिलों को जो मुस्कान न दे पाए,
सुर ही न मिले जिस मे वो साज़ बदल डालो

दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना,
तुम खेल वही खेलो अंदाज़ बदल डालो

ऐ दोस्त करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है,
अगर चाहते हो मंजिल तो परवाज़ बदल डालो
-अल्लामा इक़बाल

Friday, September 28, 2012

ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

-अल्लामा इक़बाल

(ख़िर्द-मंदों = बुद्धिमानों, अक्लमंदों), (इब्तिदा = प्रारम्भ, आरम्भ, शुरूआत), (इन्तिहा = अंत, आखिरी हद या छोर ), (रज़ा - इच्छा, तमन्ना, ख़्वाहिश)

Thursday, September 27, 2012

मस्जिद तो बना दी शब भर में, ईमाँ की हरारत वालों ने,
मन अपना पुराना पापी है, बरसों में नमाज़ी बन न सका।
-अल्लामा इक़बाल

[(शब = रात), (ईमां की हरारत वालों ने = धर्मावलंबी, जिनको धर्म का बुखार चढ़ा है)]
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं उसकी ये गुलसिताँ हमारा

ग़ुरबत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा

पर्बत वो सब से ऊँचा हमसाया आसमाँ का
वो सन्तरी हमारा वो पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिस के दम से रश्क-ए-जिनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा, वो दिन है याद तुझ को
उतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा

'इक़बाल' कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा 
-अल्लामा इक़बाल

Tuesday, September 25, 2012

नशा पिला के गिराना तो सबको आता है,
मज़ा तो जब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी।


Nasha pila ke giraana to sabko aata hai,
maza to jab hai ki girton ko thaam le saaqi.

To intoxicate somebody and then to see him fall is quite easy
But the beauty lies in giving support to a falling person

जो बाद: कश थे पुराने वो उठते जाते हैं,
कहीं से आबे-बक़ा-ए-दवाम ले साक़ी।

[(बाद: कश = शराबी), (आबे-बक़ा-ए-दवाम = निरंतर शराब (यहाँ तात्पर्य "अमृत" से है))]

कटी है रात तो हंगामा-गुस्तरी में तेरी,
सहर क़रीब है अल्लाह का नाम से साक़ी।

[(हंगामा-गुस्तरी = बिछौने के हंगामे में), (सहर = सुबह)]

-
अल्लामा इक़बाल