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Thursday, April 30, 2020

वो नहीं मेरा मगर उस से मोहब्बत है तो है

वो नहीं मेरा मगर उस से मोहब्बत है तो है
ये अगर रस्मों रिवाजों से बग़ावत है तो है

सच को मैं ने सच कहा जब कह दिया तो कह दिया
अब ज़माने की नज़र में ये हिमाक़त है तो है

कब कहा मैं ने कि वो मिल जाए मुझ को मैं उसे
ग़ैर ना हो जाए वो बस इतनी हसरत है तो है

जल गया परवाना गर तो क्या ख़ता है शम्अ' की
रात भर जलना जलाना उस की क़िस्मत है तो है

दोस्त बिन कर दुश्मनों सा वो सताता है मुझे
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है

दूर थे और दूर हैं हर दम ज़मीन-ओ-आसमाँ
दूरियों के बा'द भी दोनों में क़ुर्बत है तो है

(क़ुर्बत = नज़दीकी)

-दीप्ति मिश्रा

Thursday, April 16, 2020

अपना ही अक्स नज़र आती है अक्सर मुझको
वो हर इक चीज जो मिट्टी की बनी होती है

इतने अरमानो की गठरी लिये फिरते हो ’अमित’
उम्र इंसान की आख़िर कितनी होती है

- अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

Saturday, December 7, 2019

पलकों पे बरसात सम्हाले बैठे हैं

पलकों पे बरसात सम्हाले बैठे हैं
हम अपने जज़्बात सम्हाले बैठे हैं।

ख़्वाबों में तेरे आने की ख़्वाहिश में
मुद्दत से इक रात सम्हाले बैठे हैं।

और हमें क्या काम बचा है फ़ुरक़त में
क़ुर्बत के लम्हात सम्हाले बैठे हैं।

(फ़ुरक़त = विरह), (क़ुर्बत = नज़दीकी)

हमको डर है बस तेरी रुसवाई का
इस ख़ातिर हर बात सम्हाले बैठे हैं।

(रुसवाई = बदनामी)

शहरों में ले आया हमको रिज़्क़ मगर
भीतर हम देहात सम्हाले बैठे हैं।

(रिज़्क़ = आजीविका)

बच्चों के उजले मुस्तक़बिल की ख़ातिर
हम मुश्किल हालात सम्हाले बैठे हैं।

(मुस्तक़बिल = भविष्य)

हमने तो बस एक ख़ुशी ही मांगी थी
अब ग़म की इफ़रात सम्हाले बैठे हैं।

(इफ़रात = अधिकता, प्रचुरता)

वादे, धोखे, आंसू,आहें और जफ़ा
तेरी सब सौग़ात सम्हाले बैठे हैं।

(जफ़ा =अत्याचार, अन्याय)

 - विकास वाहिद २/१२/२०१९

Friday, October 11, 2019

कीमती सब पैरहन भी देखिए

कीमती सब पैरहन भी देखिए
और फिर अपना क़फ़न भी देखिए।

(पैरहन = वस्त्र, कपड़े)

देख कर इस जिस्म को जी भर के फिर
हो सके तो अब ये मन भी देखिए।

डूबता सूरज भी है दिलकश मगर
भोर की पहली किरन भी देखिए।

पूछिये रिश्ता मेरा फिर नींद से
पहले बिस्तर की शिकन भी देखिए।

(शिकन = सलवटें)

देखिये लब पे हंसी लेकिन कभी
जिस्म में पसरी थकन भी देखिए।

उस तरफ़ ख़्वाहिश हज़ारों मुंतज़िर
इस तरफ़ दारो रसन भी देखिए।

(मुंतज़िर = प्रतीक्षारत), (दारो रसन = फांसी का फंदा)

- विकास "वाहिद"
०९/१०/२०१९

Friday, August 23, 2019

छोड़ा न मुझे दिल ने, मिरी जान कहीं का

छोड़ा न मुझे दिल ने, मिरी जान कहीं का
दिल है कि नहीं मानता, नादान कहीं का

जाएँ तो कहाँ जाएँ, इसी सोच में गुम हैं
ख़्वाहिश है कहीं की तो, है अरमान कहीं का

हम हिज्र के मारों को कहीं, चैन कहाँ है
मौसम नहीं जचता हमें, इक आन कहीं का

(हिज्र = जुदाई)

इस शोख़ी-ए-गुफ़्तार पर, आता है बहुत प्यार
जब प्यार से कहते हैं वो, शैतान कहीं का

(शोख़ी-ए-गुफ़्तार = सुख़द बातचीत)

ये वस्ल की रुत है कि, जुदाई का है मौसम
ये गुलशन-ए-दिल है कि, बयाबान कहीं का

कर दे न इसे ग़र्क़ कोई, नद्दी कहीं की
ख़ुद को जो समझ बैठा है, भगवान कहीं का

इक हर्फ़ भी तहरीफ़-ज़दा, हो तो दिखाए
ले आए उठा कर कोई, क़ुरआन कहीं का

(हर्फ़ = अक्षर), (तहरीफ़-ज़दा = बदला हुआ, तब्दील)

महबूब नगर हो कि, ग़ज़ल गाँव हो "राग़िब"
दस्तूर-ए-मोहब्बत नहीं, आसान कहीं का

-इफ़्तिख़ार राग़िब

Monday, August 19, 2019

दाने तक जब पहुँची चिड़िया
जाल में थी
ज़िन्दा रहने की ख़्वाहिश ने मार दिया
-परवीन शाकिर

Monday, August 12, 2019

ग़म का कारोबार न छूटा

ग़म का कारोबार न छूटा
जीवन भर संसार न छूटा

हम भी गौतम हो सकते थे
पर हमसे घर-बार न छूटा

कौन है ऐसा जिसका जहाँ में
कोई कहीं उस पार न छूटा

अम्न की ख़्वाहिश थी सीने में
हाथ से पर हथियार न छूटा

छूट गया सब काम का लेकिन
जो कुछ था बेकार न छूटा

जो इक बार हुआ दरबारी
उससे फिर दरबार न छूटा

छोड़ दिया बाज़ार ने हमको
पर हमसे बाज़ार न छूटा

-राजेश रेड्डी

Thursday, July 25, 2019

कभी ज़बाँ पे न आया कि आरज़ू क्या है
ग़रीब दिल पे अजब हसरतों का साया है
-अख़्तर सईद ख़ान

Wednesday, June 26, 2019

मुसलसल चोट खा कर देख ली है

मुसलसल चोट खा कर देख ली है
ये दुनिया आज़मा कर देख ली है।

(मुसलसल = लगातार)

कोई मुश्किल न कम होती है मय से
ये शै मुंह से लगा कर देख ली है।

(शै = वस्तु, पदार्थ, चीज़)

मिला किसको इलाज-ए-इश्क़ अब तक
यहाँ सब ने दवा कर देख ली है।

यक़ीं अपनों पे तुम करने चले हो
यूं हमने ये ख़ता कर देख ली है।

अधूरी सी अड़ी है ज़िद पे अब तक
तमन्ना बरगला कर देख ली है।

(बरगलाना = बहकाना, भटकाना, दिग्भ्रमित करना, गुमराह करना, फुसलाना)

दुआओं से तो घर चलता नहीं है
दुआ हमने कमा कर देख ली है।

- विकास "वाहिद"
२५ जून २०१९

Saturday, May 25, 2019

तन्हाई की बीन बजाता जाएगा

तन्हाई की बीन बजाता जाएगा
जोगी अपनी धुन में गाता जाएगा

रात सियाही कंबल ओढ़े बैठी है
दिन सारे अरमान थकाता जाएगा

(सियाही = काली)

मंदिर-मस्जिद गिरजाघर या गुरुद्वारा
कहाँ कहाँ हमको भटकाता जाएगा

मौत कहाँ आसान डगर है हमअसरों
धीरे-धीरे सब कुछ जाता जाएगा

(हमअसरों = दोस्तों)

ये 'मलंग' अपना अपना सरमाया है
कोई खोता कोई पाता जाएगा

(सरमाया = संपत्ति, धन-दौलत, पूँजी)

- सुधीर बल्लेवार 'मलंग'



Monday, May 20, 2019

सियाह-ख़ाना-ए-दिल पर नज़र भी करता है

सियाह-ख़ाना-ए-दिल पर नज़र भी करता है
मेरी ख़ताओं को वो दरगुज़र भी करता है

(सियाह-ख़ाना-ए-दिल = दिल का अँधेरा कोना), (दरगुज़र = अनदेखा)

परिंद ऊँची उड़ानों की धुन में रहता है
मगर ज़मीं की हदों में बसर भी करता है

तमाम उम्र के दरिया को मोड़ देता है
वो एक हर्फ़ जो दिल पर असर भी करता है

(हर्फ़ = अक्षर)

वो लोग जिन की ज़माना हँसी उड़ाता है
इक उम्र बाद उन्हें मो'तबर भी करता है

(मो'तबर = विश्वसनीय, भरोसेमंद)

जला के दश्त-ए-तलब में उम्मीद की शमएँ
अज़िय्यतों से हमें बे-ख़बर भी करता है

(दश्त-ए-तलब = इच्छाओं के रेगिस्तान), (अज़िय्यतों = यातनाओं, तकलीफ़ों)

-खलील तनवीर

Saturday, May 4, 2019

लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो

लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो
होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो

(लफ़्ज़ ओ मंज़र = शब्द और दृश्य), (मआनी = अर्थ, मतलब, माने)

वो नहीं है न सही तर्क-ए-तमन्ना न करो
दिल अकेला है इसे और अकेला न करो

(तर्क-ए-तमन्ना = इच्छाओं/ चाहतों का त्याग)

बंद आँखों में हैं नादीदा ज़माने पैदा
खुली आँखों ही से हर चीज़ को देखा न करो

(नादीदा = अदृष्ट, अप्रत्यक्ष, अगोचर, Unseen)

दिन तो हंगामा-ए-हस्ती में गुज़र जाएगा
सुब्ह तक शाम को अफ़्साना-दर-अफ़्साना करो

(हंगामा-ए-हस्ती = जीवन की उथल-पुथल/ अस्तव्यस्तता)

-महमूद अयाज़

Thursday, May 2, 2019

आंखों में तूफ़ान उठाए फ़िरते हैं

आंखों में तूफ़ान उठाए फ़िरते हैं
हम दिल में अरमान उठाए फ़िरते हैं।

जिसके पंछी को इक दिन उड़ जाना है
सब ऐसा ज़िंदान उठाए फ़िरते हैं।

(ज़िंदान = पिंजरा/जेल)

किसको फ़ुर्सत उनके दिल में झांके जो
होठों पे मुस्कान उठाए फ़िरते हैं।

दौलत वालों को ये शिकवा है कि हम
क्यूं अपना ईमान उठाए फ़िरते हैं।

हमसे पूछो दुनिया वालों हम कितने
रिश्तों के एहसान उठाए फ़िरते हैं।

दुनिया में हम जैसे हैं सौदाई जो
उल्फ़त में नुक़सान उठाए फ़िरते हैं।

(सौदाई = दीवाने/प्रेमी)

आहें,आंसू,चाहत, वादे और वफ़ा
क्या क्या हम इंसान उठाए फ़िरते हैं।

- विकास"वाहिद"
०१ मई २०१९

Saturday, April 27, 2019

आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अंजाम बस इतना है
जब दिल में तमन्ना थी अब दिल ही तमन्ना है
-जिगर मुरादाबादी

Wednesday, February 27, 2019

तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर
सरफ़रोशी की तमन्ना है तो सर पैदा कर
-अमीर मीनाई

Sunday, February 24, 2019

हम को इक उम्र न जीने का सलीक़ा आया
हम ने इक उम्र तमन्नाओं के धोखे खाए
-मुशफ़िक़ ख़्वाजा

Thursday, February 21, 2019

तुम मुझको कब तक रोकोगे

मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं
दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं, कुछ कर जाएं
सूरज-सा तेज नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे
अपनी हद रौशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोकोगे

मैं उस माटी का वृक्ष नहीं, जिसको नदियों ने सींचा है
बंजर माटी में पलकर मैंने, मृत्यु से जीवन खींचा है
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ, शीशे से कब तक तोड़ोगे
मिटने वाला मैं नाम नहीं, तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे

इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है
तानों  के भी शोर में रहकर सच कहने की आदत है
मैं सागर से भी गहरा हूँ, तुम कितने कंकड़ फेंकोगे
चुन-चुन कर आगे बढूँगा मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे

झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शौक नहीं
अपने ही हाथों रचा स्वयं, तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं
तुम हालातों की भट्टी में, जब-जब भी मुझको झोंकोगे
तब तपकर सोना बनूंगा मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे

-नामालूम






Friday, February 15, 2019

इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

संतान हँसे तो कैसे हँसे
इस वक़्त है माता ख़तरे में
संसार के पर्बत का राजा
है अपना हिमाला ख़तरे में
है सामना कितने ख़तरों का
है देश की सीमा ख़तरे में
ऐ दोस्त वतन से घात न कर
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

मेहंदी हुई पीली कितनों की
सिंदूर लुटे हैं कितनों के
हैं चूड़ियाँ ठंडी कितनों की
अरमान जले हैं कितनों के
इस चीन के ज़ालिम हाथों से
संसार फुंके हैं कितनों के
मुस्कान की तू बरसात न कर
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

मत काट कपट कर माता से
देना है जो कुछ ईमान से दे
ये प्रश्न वतन की लाज का है
जी खोल के दे जी जान से दे
गौरव की हिफ़ाज़त कर अपने
दे धन भी तो प्यारे आन से दे
तू दान न दे ख़ैरात न कर
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

जिस घर में बरसता था जीवन
छाई है वहाँ पर वीरानी
बेवा हुईं कितनी सुंदरियाँ
मारे गए कितने सेनानी
क्यूँ जोश नहीं आता तुझ को
है ख़ून रगों में या पानी
आज़ादी के दिन को रात न कर
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

सुनते हैं मुसीबत आएगी
आएगी तो देखा जाएगा
जिस ने हमें कायर समझा है
उस देश से समझा जाएगा
हर शोख़ अदा से खेल चुके
अब ख़ून से खेला जाएगा
ऐसे में हमें बे-हात न कर
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

अब बैंड पे गाया जाएगा
ये साज़ न छेड़े जाएँगे
ले रख दे ठिकाने से ये ग़ज़ल
मरने से बचे तो गाएँगे
है साथ हमारे सच्चाई
हम पा के विजय मुस्काएँगे
जीती हुई बाज़ी मात न कर
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर

-नज़ीर बनारसी

Wednesday, January 30, 2019

आख़िरी ख़्वाहिश जो पूछी वक़्त ने
पहली ख़्वाहिश मुस्कुरा कर रह गई
-राजेश रेड्डी

Sunday, January 27, 2019

यूँ ख़ाक में मिला के न अरमान जाइए
ग़ुस्से को थूक दीजिए और मान जाइए
-नामालूम