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Monday, March 30, 2020

ध्यान में आ कर बैठ गए हो तुम भी नाँ

ध्यान में आ कर बैठ गए हो तुम भी नाँ
मुझे मुसलसल देख रहे हो तुम भी नाँ

(मुसलसल = लगातार)

दे जाते हो मुझ को कितने रंग नए
जैसे पहली बार मिले हो तुम भी नाँ

हर मंज़र में अब हम दोनों होते हैं
मुझ में ऐसे आन बसे हो तुम भी नाँ

(मंज़र = दृश्य)

इश्क़ ने यूँ दोनों को आमेज़ किया
अब तो तुम भी कह देते हो तुम भी नाँ

(आमेज़ = मिलने वाला, मिलाने वाला)

ख़ुद ही कहो अब कैसे सँवर सकती हूँ मैं
आईने में तुम होते हो तुम भी नाँ

बन के हँसी होंटों पर भी रहते हो
अश्कों में भी तुम बहते हो तुम भी नाँ

मेरी बंद आँखें तुम पढ़ लेते हो
मुझ को इतना जान चुके हो तुम भी नाँ

माँग रहे हो रुख़्सत और ख़ुद ही
हाथ में हाथ लिए बैठे हो तुम भी नाँ

-अंबरीन हसीब अंबर






Wednesday, August 14, 2019

हम आप क़यामत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

हम आप क़यामत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते
जीने की शिकायत है तो मर क्यूँ नहीं जाते

कतराते हैं बल खाते हैं घबराते हैं क्यूँ लोग
सर्दी है तो पानी में उतर क्यूँ नहीं जाते

आँखों में नमक है तो नज़र क्यूँ नहीं आता
पलकों पे गुहर हैं तो बिखर क्यूँ नहीं जाते

(गुहर = मोती)

अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी
अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते

ये बात अभी मुझ को भी मालूम नहीं है
पत्थर इधर आते हैं उधर क्यूँ नहीं जाते

तेरी ही तरह अब ये तिरे हिज्र के दिन भी
जाते नज़र आते हैं मगर क्यूँ नहीं जाते

(हिज्र = जुदाई)

अब याद कभी आए तो आईने से पूछो
'महबूब-ख़िज़ाँ' शाम को घर क्यूँ नहीं जाते

-महबूब ख़िज़ां

Saturday, August 10, 2019

टकराए जैसे आईना पत्थर से बार -बार
यूँ लड़ रहा हूँ अपने मुक़द्दर से बार -बार

या रब। हमें ये पाँव भी तूने अता किए
तू ही संभाल, निकलें जो चादर से बार-बार

-हस्तीमल 'हस्ती'

Tuesday, July 30, 2019

अपना लगता है पर नहीं होता

अपना लगता है पर नहीं होता
घर किराये का घर नहीं होता

मुल्के हिन्दोस्तान है, वरना
तेरी गर्दन पे सर नहीं होता

ज़िन्दगी से घटा के देख लिया
ग़म किसी का सिफ़र नहीं होता

(सिफ़र = शून्य)

प्यार की इक यही ख़राबी है
हो इधर तो उधर नहीं होता

एक चेहरे के रूठ जाने से
आइना तरबतर नहीं होता

मेरी मुश्किल मलंग इतनी हैं
मेरा मुझ पे असर नहीं होता

-सुधीर बल्लेवार 'मलंग'

Saturday, July 6, 2019

मुझ को ये फ़िक्र कब है कि, साया कहाँ गया

मुझ को ये फ़िक्र कब है कि, साया कहाँ गया
सूरज को रो रहा हूँ, ख़ुदाया कहाँ गया

फिर आइने में ख़ून, दिखाई दिया मुझे
आँखों में आ गया तो, छुपाया कहाँ गया

आवाज़ दे रहा था कोई मुझ को ख़्वाब में
लेकिन ख़बर नहीं कि, बुलाया कहाँ गया

कितने चराग़ घर में, जलाए गए न पूछ
घर आप जल गया है, जलाया कहाँ गया

ये भी ख़बर नहीं है कि, हमराह कौन है
पूछा कहाँ गया है, बताया कहाँ गया

वो भी बदल गया है, मुझे छोड़ने के बाद
मुझ से भी अपने आप में, आया कहाँ गया

तुझ को गँवा दिया है, मगर अपने आप को
बर्बाद कर दिया है, गँवाया कहाँ गया

-फ़ैसल अजमी

Tuesday, June 11, 2019

ज़ालिम से मुस्तफ़ा का अमल चाहते हैं लोग

ज़ालिम से मुस्तफ़ा का अमल चाहते हैं लोग
सूखे हुए दरख़्त से फल चाहते हैं लोग

(मुस्तफ़ा = पवित्र, निर्मल), (अमल = काम), (दरख़्त = पेड़ वृक्ष)

काफ़ी है जिन के वास्ते छोटा सा इक मकाँ
पूछे कोई तो शीश-महल चाहते हैं लोग

साए की माँगते हैं रिदा आफ़्ताब से
पत्थर से आइने का बदल चाहते हैं लोग

(रिदा = ओढ़ने की चादर), (आफ़्ताब = सूरज)

कब तक किसी की ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ का तज़्किरा
कुछ अपनी उलझनों का भी हल चाहते हैं लोग

(ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ = बिखरी हुई ज़ुल्फें), (तज़्किरा = संवाद, बात-चीत)

बार-ए-ग़म-ए-हयात से शाने हुए हैं शल
उकता के ज़िंदगी से अजल चाहते हैं लोग

(बार-ए-ग़म-ए-हयात = ज़िन्दगी के दुखों का बोझ , (शाने = कंधे), (शल = सुन्न,  बेसुध, संवेदनाशून्य), (अजल  = मृत्यु)

रखते नहीं निगाह तक़ाज़ों पे वक़्त के
तालाब के बग़ैर कँवल चाहते हैं लोग

जिस को भी देखिए है वही दुश्मन-ए-सुकूँ
क्या दौर है कि जंग-ओ-जदल चाहते हैं लोग

(जंग-ओ-जदल = लड़ाई-झगड़ा)

दरकार है नजात ग़म-ए-रोज़गार से
मिर्रीख़ चाहते हैं न ज़ुहल चाहते हैं लोग

(नजात = छुटकारा), (मिर्रीख़ = मंगल ग्रह), (ज़ुहल = शनि ग्रह)

'एजाज़' अपने अहद का मैं तर्जुमान हूँ
मैं जानता हूँ जैसी ग़ज़ल चाहते हैं लोग

(अहद = समय, वक़्त, युग), (तर्जुमान  = दुभाषिया, व्याख्याता, व्याख्याकार)

-एजाज़ रहमानी

Monday, June 3, 2019

बुझ गया दिल तो ख़बर कुछ भी नहीं

बुझ गया दिल तो ख़बर कुछ भी नहीं
अक्स-ए-आईने नज़र कुछ भी नहीं

(अक्स-ए-आईने = आईने का प्रतिबिम्ब)

शब की दीवार गिरी तो देखा
नोक-ए-नश्तर है सहर कुछ भी नहीं

(शब = रात), (सहर = सुबह), (नश्तर= शल्य क्रिया/ चीर-फाड़ करने वाला छोटा चाकू), (नोक-ए-नश्तर = चाकू की नोक)

जब भी एहसास का सूरज डूबे
ख़ाक का ढेर बशर कुछ भी नहीं

(बशर = इंसान)

एक पल ऐसा कि दुनिया बदले
यूँ तो सदियों का सफ़र कुछ भी नहीं

हर्फ़ को बर्ग-ए-नवा देता हूँ
यूँ मिरे पास हुनर कुछ भी नहीं

(हर्फ़ = अक्षर), (नवा = गीत, आवाज़, शब्द), (बर्ग = पत्ती), (बर्ग-ए-नवा = आवाज़ की पत्ती, Leaf of voice)

-खलील तनवीर

Wednesday, May 1, 2019

कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है

कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है

आप लिल्लाह न देखा करें आईना कभी
दिल का आ जाना बड़ी बात नहीं होती है

छुप के रोता हूँ तिरी याद में दुनिया भर से
कब मिरी आँख से बरसात नहीं होती है

हाल-ए-दिल पूछने वाले तिरी दुनिया में कभी
दिन तो होता है मगर रात नहीं होती है

जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कि कैसे हो 'शकील'
इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है

-शकील बदायुनी







Saturday, April 20, 2019

अंदाज़ अपना देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
-निज़ाम रामपुरी

Friday, February 22, 2019

कोई ख़ंजर ना किसी तलवार से

कोई ख़ंजर ना किसी तलवार से
हल हुईं हैं मुश्किलें बस प्यार से

क्या बताएं हम इलाजे इश्क़ अब
पूछते हैं वो दवा बीमार से

वो मज़े के दिन वो बचपन अब कहाँ
दिन गुज़रते थे किसी त्यौहार से

ढूंढते दैरो हरम में जो ख़ुदा
अब तलक महरूम हैं दीदार से

(दैरो हरम = मंदिर मस्जिद), (महरूम = वंचित)

क्या मरासिम हैं मेरे तन्हाई से
पूछ लो मेरे दरो दीवार से

(मरासिम = मेल-जोल, प्रेम-व्यवहार, संबंध)

पोछते कब अश्क़ अपनी आँख के
कब मिली फ़ुर्सत हमें घर बार से

है अगर तेरी दुआ में कुछ कमी
फिर सदा आती नहीं उस पार से

(सदा = आवाज़)

किसको फ़ुर्सत कौन पूछे हाल अब
लड़ रहे हैं सब यहाँ किरदार से

मशवरा है आईना मत देखना
कर लिया सौदा अगर दस्तार से

(दस्तार = पगड़ी)

- विकास वाहिद // ०४ -०२ -२०१९

Monday, January 28, 2019

ख़ुद-ब-ख़ुद हमवार हर इक रास्ता हो जाएगा

ख़ुद-ब-ख़ुद हमवार हर इक रास्ता हो जाएगा
मुश्किलों के रूबरू जब हौसला हो जाएगा

वो किसी के आसरे की आस क्यों रक्खे भला
जिसका रिश्ता है जड़ों से खुद हरा हो जाएगा

प्यार की दुनिया से नाता जोड़कर देखो कभी
जिसको छू दोगे वो पत्थर आईना हो जाएगा

सीख ले ऐ दोस्त अपने आप से यारी का फ़न
वरना तेरा ज़िन्दगी से फ़ासला हो जाएगा

ऊंचे-ऊंचे सर भी उस दिन शर्म से झुक जाएंगे
जब भी उनका आईने से सामना हो जाएगा

बख़्श दे यारब मुझे भी कोई मीठी सी कसक
मेरे जीने का भी कोई आसरा हो जाएगा

तुम हवाएं ले के आओ मैं जलाता हूं चिराग़
किसमें कितना दम यारों फ़ैसला हो जाएगा

-हस्तीमल 'हस्ती'



Wednesday, January 23, 2019

बिखरे हैं सारे ख़्वाब और अरमान इधर-उधर

बिखरे हैं सारे ख़्वाब और अरमान इधर-उधर
ये कौन कर गया मेरा सामान इधर-उधर

खु़द में कहीं- कहीं ही नज़र आ रहा हूँ मैं
ह़ालात कर गए मिरी पहचान इधर-उधर

मिलता नहीं कहीं भी कोई हमनवा मुझे
दिल में छुपाए फिरता हूँ तूफ़ान इधर-उधर

ना-पैद होके रह गया दुनिया में अब सुकून
हर कोई फिर रहा है परेशान इधर-उधर

(ना-पैद = विनष्ट, अप्राप्य, जो अब पैदा न होता हो। जो इतना अप्राप्य या दुर्लभ हो कि मानों कहीं पैदा ही न होता हो)

सज्दागुज़ार हूँ मगर इस दिल का क्या करूँ
भटकाए जा रहा है मिरा ध्यान इधर-उधर

हम आईना नहीं थे सो बस में न रह सके
देखा उन्हें तो हो गया ईमान इधर-उधर

आँसू मिरे समेट के रक्खे न जा सके
होता चला गया मिरा दीवान इधर-उधर

- राजेश रेड्डी

Thursday, June 7, 2018

फिर न मन में कभी मलाल आया

फिर न मन में कभी मलाल आया
नेकियाँ जब कुएँ में डाल आया।

होड़ सी लग रही थी जाने क्यूँ
मैं तो सिक्का वहाँ उछाल आया।

आज हम भी जवाब दे बैठे
बज़्म में फिर बड़ा उबाल आया।

फ़न की बारीकियाँ समझने का
उम्र के बाद ये कमाल आया।

फेर लीं आपने निगाहें जब
आज दिल में बड़ा मलाल आया।

इक ज़माने से ख़ुद परेशाँ थे
आज तबियत में कुछ उछाल आया।

'आरसी' झूठ जब नहीं बोला
आइने में कहाँ से बाल आया।

-आर. सी. शर्मा “आरसी”

Tuesday, December 6, 2016

उसका ख़याल दिल में उतरता चला गया

उसका ख़याल दिल में उतरता चला गया
मेरे सुख़न में रंग वो भरता चला गया

इक एतिबार था कि जो टूटा नहीं कभी
इक इन्तिज़ार था जो मैं करता चला गया

ठहरा रहा विदाअ़ का लम्ह़ा तमाम उम्र
और वक़्त अपनी रौ में गुज़रता चला गया

जितना छुपाता जाता था मैं अपने आपको
उतना ही आइने में उभरता चला गया

मुझको कहाँ नसीब थी मौत एक बार की
आता रहा वो याद मैं मरता चला गया

यकजा कभी न हो सका मैं अपनी ज़ात में
खुद को समेटने में बिखरता चला गया

- राजेश रेड्डी

Tuesday, November 8, 2016

तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो

तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो
जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो

तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू
और इतने ही बेमुरव्वत हो

तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं
यानी ऐसा है जैसे फ़ुरक़त हो

(फ़ुरक़त = जुदाई)

है मेरी आरज़ू के मेरे सिवा
तुम्हें सब शायरों से वहशत हो

किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ
तुम मेरी ज़िन्दगी की आदत हो

किसलिए देखते हो आईना
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो

दास्ताँ ख़त्म होने वाली है
तुम मेरी आख़िरी मुहब्बत हो

-जाॅन एलिया

Thursday, November 3, 2016

दो-चार गाम

दो चार गाम राह को हमवार देखना
फिर हर क़दम पे इक नई दीवार देखना

(गाम = कदम, पग) , (हमवार = सामान, बराबर)

आँखों की रौशनी से है हर संग आईना
हर आइने में ख़ुद को गुनहगार देखना

हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना

मैदाँ की हार जीत तो क़िस्मत की बात है
टूटी है किस के हाथ में तलवार देखना

दरिया के इस किनारे सितारे भी फूल भी
दरिया चढ़ा हुआ हो तो उस पार देखना

अच्छी नहीं है शहर के रस्तों से दोस्ती
आँगन में फैल जाए न बाज़ार देखना

-निदा फ़ाज़ली

Chandan Das/ चंदन दास 



Do chaar gaam raah ko hamvaar dekhna
Phir har qadam pe ik nai deevar dekhna

Ankhon ki raushni se hai har sang aaina
Har aaine mein ḳhud ko gunahgaar dekhna

Har aadmi mein hote hain dus bees aadmi
Jis ko bhi dekhna ho kaa baar dekhna

Maidan ki haar jeet to qismat ki baat hai
Tooti hai kis ke haath mein talvaar dekhna

Dariya ke is kinaare sitaare bha phool bhi
Dariya chadha hua ho to us paar dekhna

Achchhi nahin hai shahar ke raston se dosti
Aangan mein phail jaaye na bazaar dekhna

-Nida Fazli

Friday, October 14, 2016

वक़्त बंजारा-सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना

वक़्त बंजारा-सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना
किस को मालूम यहाँ कौन है कितना अपना

(बंजारा-सिफ़त = बंजारों के समान, एक जगह ना टिकने वाला), (लम्हा ब लम्हा = क्षण-प्रतिक्षण)

जो भी चाहे वो बना ले उसे अपने जैसा
किसी आईने का होता नहीं चेहरा अपना

ख़ुद से मिलने का चलन आम नहीं है वरना
अपने अंदर ही छुपा होता है रस्ता अपना

यूँ भी होता है वो ख़ूबी जो है हम से मंसूब
उस के होने में नहीं होता इरादा अपना

(मंसूब = संबंधित)

ख़त के आख़िर में सभी यूँ ही रक़म करते हैं
उस ने रस्मन ही लिखा होगा तुम्हारा अपना

(रक़म = लिखना), (रस्मन = रीति/ परंपरा के अनुसार)

-निदा फ़ाज़ली

Sunday, September 25, 2016

दिन इक के बाद एक गुज़रते हुए भी देख

दिन इक के बाद एक गुज़रते हुए भी देख
इक दिन तू अपने आप को मरते हुए भी देख

हर वक़्त खिलते फूल की जानिब तका न कर
मुरझा के पत्तियों को बिखरते हुए भी देख

हाँ देख बर्फ़ गिरती हुई बाल बाल पर
तपते हुए ख़याल ठिठुरते हुए भी देख

अपनों में रह के किस लिए सहमा हुआ है तू
आ मुझ को दुश्मनों से न डरते हुए भी देख

पैवंद बादलों के लगे देख जा-ब-जा
बगलों को आसमान कतरते हुए भी देख

हैरान मत हो तैरती मछली को देख कर
पानी में रौशनी को उतरते हुए भी देख

उस को ख़बर नहीं है अभी अपने हुस्न की
आईना दे के बनते सँवरते हुए भी देख

देखा न होगा तू ने मगर इंतिज़ार में
चलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख

तारीफ़ सुन के दोस्त से 'अल्वी' तू ख़ुश न हो
उस को तेरी बुराइयाँ करते हुए भी देख

-मोहम्मद अल्वी 

Wednesday, August 17, 2016

बारहा ख़ुद को आज़माते हैं

बारहा ख़ुद को आज़माते हैं
तब कहीं जा के जगमगाते हैं

(बारहा = कई बार, अक्सर)

शक़्ल हमने जिन्हें अता की है
वे हमें आईना दिखाते हैं

(अता = दान)

बोझ जब मैं उतार देता हूँ
तब मेरे पाँव लड़खड़ाते हैं

सुख परेशां है ये सुना जब से
हम तो दुख को भी गुनगुनाते हैं

तीरगी तो रहेगी ही ऐ दोस्त
वे कहाँ मेरे घर पे आते हैं

(तीरगी = अन्धकार)

-हस्तीमल 'हस्ती'

Saturday, January 23, 2016

कोई ये कह दे गुलशन गुलशन

कोई ये कह दे गुलशन गुलशन
लाख बलाएँ एक नशेमन

(गुलशन = बग़ीचा), (नशेमन = घोंसला)

कामिल रहबर क़ातिल रहज़न
दिल सा दोस्त न दिल सा दुश्मन

(कामिल = योग्य, दक्ष), (रहबर = रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक), (रहज़न = डाकू, लुटेरा)

फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन

उम्रें बीतीं सदियाँ गुज़रीं
है वही अब तक इश्क़ का बचपन

इश्क़ है प्यारे खेल नहीं है
इश्क़ है कार-ए-शीशा-ओ-आहन

(कार-ए-शीशा-ओ-आहन = लोहे और काँच का काम)

खै़र मिज़ाज-ए-हुस्न की या-रब
तेज़ बहुत है दिल की धड़कन

आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की रात और इतनी रोशन

(हिज्र = बिछोह, जुदाई)

आ कि न जाने तुझ बिन कल से
रूह है लाशा जिस्म है मदफ़न

(मदफ़न = कब्रिस्तान)

तुझ सा हसीं और ख़ून-ए-मोहब्बत
वहम है शायद सुर्ख़ी-ए-दामन

बर्क-ए-हवादिस अल्लाह अल्लाह
झूम रही है शाख़-ए-नशेमन

(बर्क-ए-हवादिस = हादसों की आसमानी बिजली)

तू ने सुलझ कर गेसू-ए-जानाँ
और बढ़ा दी शौक़ की उलझन

(गेसू-ए-जानाँ = प्रेमिका की ज़ुल्फ़ें)

रहमत होगी तालिब-ए-इस्याँ
रश्क करेगी पाकि-ए-दामन

(रहमत = कृपा, अनुकम्पा), (तालिब-ए-इस्याँ =  गुनाह ढूँढने वाले), (रश्क = जलन), (पाकि-ए-दामन = चरित्र की पवित्रता)

दिल कि मुजस्सम आईना-सामाँ
और वो ज़ालिम आईना-दुश्मन

(मुजस्सम = साकार), (आईना-सामाँ = आईने की तरह)

बैठे हम हर बज़्म में लेकिन
झाड के उट्ठे अपना दामन

(बज़्म = महफ़िल)

हस्ती-ए-शायर अल्लाह अल्लाह
हुस्न की मंज़िल इश्क़ का मस्कन

(हस्ती-ए-शायर = शायर का जीवन), (मस्कन = रहने की जगह, घर)

रंगीं फितरत सादा तबीअत
फ़र्श-नशीं और अर्श-नशेमन

(फ़र्श-नशीं = ज़मीन पर बैठने वाला), (अर्श-नशेमन = ऊँचा घोंसला)

काम अधूरा और आज़ादी
नाम बड़े और थोड़े दर्शन

शमअ है लेकिन धुंधली धुंधली
साया है लेकिन रोशन रोशन

काँटों का भी हक़ है कुछ  आखि़र
कौन छुड़ाए अपना दामन

चलती फिरती छाँव है प्यारे
किस का सहरा कैसा गुलशन

(सहरा = रेगिस्तान), (गुलशन = बग़ीचा)

-जिगर मुरादाबादी