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Wednesday, December 29, 2021

सोते सोते चौंक पड़े हम ख़्वाब में हम ने क्या देखा

सोते सोते चौंक पड़े हम ख़्वाब में हम ने क्या देखा 
जो ख़ुद हम को ढूँढ रहा हो ऐसा इक रस्ता देखा 

दूर से इक परछाईं देखी अपने से मिलती-जुलती 
पास से अपने चेहरे में भी और कोई चेहरा देखा 

सोना लेने जब निकले तो हर हर ढेर में मिट्टी थी 
जब मिट्टी की खोज में निकले सोना ही सोना देखा 

सूखी धरती सुन लेती है पानी की आवाज़ों को 
प्यासी आँखें बोल उठती हैं हम ने इक दरिया देखा 

आज हमें ख़ुद अपने अश्कों की क़ीमत मालूम हुई 
अपनी चिता में अपने-आप को जब हम ने जलता देखा 

चाँदी के से जिन के बदन थे सूरज के से मुखड़े थे 
कुछ अंधी गलियों में हम ने उन का भी साया देखा 

रात वही फिर बात हुई ना हम को नींद नहीं आई 
अपनी रूह के सन्नाटे से शोर सा इक उठता देखा 

-ख़लील-उर-रहमान आज़मी

Saturday, December 18, 2021

शबनम भीगी घास पे चलना कितना अच्छा लगता है

शबनम भीगी घास पे चलना कितना अच्छा लगता है 
पाँव तले जो मोती बिखरें झिलमिल रस्ता लगता है 

जाड़े की इस धूप ने देखो कैसा जादू फेर दिया 
बेहद सब्ज़ दरख़्तों का भी रंग सुनहरा लगता है 

(सब्ज़ = हरा)

भेड़ें उजली झाग के जैसी सब्ज़ा एक समुंदर सा 
दूर खड़ा वो पर्बत नीला ख़्वाब में खोया लगता है 

जिस ने सब की मैल कसाफ़त धोई अपने हाथों से 
दरिया कितना उजला है वो शीशे जैसा लगता है 

(कसाफ़त = गंदगी, प्रदूषण)

अंदर बाहर एक ख़मोशी एक जलन बेचैनी से 
किस को हम बतलाएँ आख़िर ये सब कैसा लगता है 

शाम लहकते जज़्बों वाली 'फ़िक्री' कब की राख हुई 
चाँद-रू पहली किरनों वाला दर्द का मारा लगता है 

-प्रकाश फ़िक्री

Sunday, May 30, 2021

दीवार-ए-तकल्लुफ़ है तो, मिस्मार करो ना

दीवार-ए-तकल्लुफ़ है तो, मिस्मार करो ना 
गर उस से मोहब्बत है तो, इज़हार करो ना 

(दीवार-ए-तकल्लुफ़ = औपचारिकता की दीवार), (मिस्मार = तोड़ना)

मुमकिन है तुम्हारे लिए, हो जाऊँ मैं आसाँ 
तुम ख़ुद को मिरे वास्ते, दुश्वार करो ना 

(दुश्वार = मुश्किल)

गर याद करोगे तो, चला आऊँगा इक दिन 
तुम दिल की गुज़रगाह को, हमवार करो ना 

(गुज़रगाह = रास्ता, सड़क), (हमवार = समतल)

कहना है अगर कुछ तो, पस-ओ-पेश करो मत 
खुल के कभी जज़्बात का, इज़हार करो ना 

(पस-ओ-पेश = संकोच, हिचकिचाहट)

हर रिश्ता-ए-जाँ तोड़ के, आया हूँ यहाँ तक 
तुम भी मिरी ख़ातिर कोई, ईसार करो ना 

(रिश्ता-ए-जाँ = जीवन का रिश्ता), (ईसार = त्याग करना) 

"एजाज़" तुम्हारे लिए, साहिल पे खड़ा हूँ 
दरिया-ए-वफ़ा मेरे लिए, पार करो ना

(साहिल=किनारा)

-एजाज़ असद

Saturday, January 30, 2021

हाइकू की एक क़िस्म माहिया

बाग़ों में पड़े झूले
तुम भूल गए हम को
हम तुम को नहीं भूले
-चराग़ हसन "हसरत"

पीपल इक आँगन में
ये कौन सुलगता है
तेरे प्यार के सावन में

भरपूर जवानी है
क्यों नींद नहीं आती
ये और कहानी है
-दिलनवाज़ "दिल"

बादल कभी होते हम
गोरी तेरी गलिओं पर
दिल खोलके रोते हम

दरिया से उड़े बगले
अब उसकी मुहब्बत में
वो बात नहीं पगले
-अली मुहम्मद "फ़रशी"

दरियाओं का पानी है
तुझपे फ़िदा कर दूँ
जाँ यूँ भी तो जानी है

खिली रात की रानी है
चले भी आओ सजना
रात बड़ी सुहानी है
-ताहिर

तेरा दर्द छुपा लूँगी
जब याद तू आए गा
मैं माहिया गा लूँगी
-क़तील शिफ़ाई

दिल ले के दग़ा देंगे
यार हैं मतलब के
ये देंगे भी तो क्या देंगे
-साहिर लुधियानवी

इक बार तो मिल साजन
आ कर देख ज़रा
टूटा हुआ दिल साजन
-हिम्मत राय शर्मा

Saturday, September 28, 2019

हिज्र की धूप में छाँव जैसी बातें करते हैं

हिज्र की धूप में छाँव जैसी बातें करते हैं
आँसू भी तो माओं जैसी बातें करते हैं

(हिज्र = बिछोह, जुदाई)

रस्ता देखने वाली आँखों के अनहोने-ख़्वाब
प्यास में भी दरियाओं जैसी बातें करते हैं

ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं

एक ज़रा सी जोत के बल पर अँधियारों से बैर
पागल दिए हवाओं जैसी बातें करते हैं

-इफ़्तिख़ार आरिफ़

Thursday, September 12, 2019

दोश देते रहे बे-कार ही तुग़्यानी को

दोश देते रहे बेकार ही तुग़्यानी को
हम ने समझा नहीं दरिया की परेशानी को

(तुग़्यानी = बाढ़, सैलाब)

ये नहीं देखते कितनी है रियाज़त किस की
लोग आसान समझ लेते हैं आसानी को

(रियाज़त = परिश्रम, उद्यम, प्रयास, मेहनत, व्यायाम, तपस्या, जप-तप, इबादत, अभ्यास)

-अज़हर फ़राग़

Monday, July 1, 2019

करता हूँ इस लिए मैं तेरे ग़म की जुस्तजू
काँटों के ख़रीदार सारे नहीं होते

साहिल के तलब-गार ये पहले से जान लें
दरिया-ए-मुहब्बत में किनारे नहीं होते

-"फ़ना" निज़ामी कानपुरी

(जुस्तजू = तलाश, खोज), (साहिल = किनारा)

Friday, June 21, 2019

बहते दरिया को सलीका ए रवानी न बता

बहते दरिया को सलीका ए रवानी न बता
मैं समंदर हूँ मुझे झील का पानी न बता

(सलीका = तरीका, ढंग, तमीज़), (रवानी = बहाव, प्रवाह)

सिलसिलेवार खुली मुझ पे हक़ीक़त तेरी
ये अलग बात है तुझको थी छुपानी, न बता

मेरी आँखों मे कई ख़्वाब जगे हैं अब तक
इस घड़ी तू मुझे परियों की कहानी न बता

ये नही शै जो किताबों से समझ में आए
इश्क़ महसूस तो कर सिर्फ मआनी न बता

(शै = वस्तु, पदार्थ, चीज़), (मआनी = अर्थ, मतलब, माने)

सबको मालूम है अंजामे मुहब्बत क्या है
तू 'मलंग' अपना कभी हाले-जवानी न बता

-सुधीर बल्लेवार 'मलंग'

Thursday, June 13, 2019

शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को
मैं देखता रहा दरिया तिरी रवानी को

(शदीद = कठिन, मुश्किल, कठोर, घोर, प्रचंड, तीव्र, तेज़, अत्याधिक), (रवानी = बहाव, प्रवाह)

जो चाहता है कि इक़बाल हो सिवा तेरा
तो सब में बाँट बराबर से शादमानी को

(इक़बाल = प्रताप, तेज, जलाल, सौभाग्य, खुशकिस्मती, समृद्धि), (शादमानी = खुशी)

-शहरयार

Thursday, May 30, 2019

हसद की आग थी और दाग़ दाग़ सीना था

हसद की आग थी और दाग़ दाग़ सीना था
दिलों से धुल न सका वो ग़ुबार-ए-कीना था

(हसद = ईर्ष्या, जलन), (ग़ुबार-ए-कीना = )

ज़रा सी ठेस लगी थी कि चूर चूर हुआ
तिरे ख़याल का पैकर भी आबगीना था

(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख),  (आबगीना = पतले काँच की बड़े पेट की बोतल, जो शराब या गुलाब जल रखने के काम आती थी)

रवाँ थी कोई तलब सी लहू के दरिया में
कि मौज मौज भँवर उम्र का सफ़ीना था

(रवाँ  = बहता हुआ, प्रवाहमान), (सफ़ीना = नाव, किश्ती)

वो जानता था मगर फिर भी बे-ख़बर ही रहा
अजीब तौर था उस का अजब क़रीना था

(क़रीना = सलीका, ढंग, तमीज़)

बहुत क़रीब से गुज़रे मगर ख़बर न हुई
कि उजड़े शहर की दीवार में दफ़ीना था

(दफ़ीना = ज़मीन में गड़ा हुआ धन)

-खलील तनवीर

Monday, May 20, 2019

सियाह-ख़ाना-ए-दिल पर नज़र भी करता है

सियाह-ख़ाना-ए-दिल पर नज़र भी करता है
मेरी ख़ताओं को वो दरगुज़र भी करता है

(सियाह-ख़ाना-ए-दिल = दिल का अँधेरा कोना), (दरगुज़र = अनदेखा)

परिंद ऊँची उड़ानों की धुन में रहता है
मगर ज़मीं की हदों में बसर भी करता है

तमाम उम्र के दरिया को मोड़ देता है
वो एक हर्फ़ जो दिल पर असर भी करता है

(हर्फ़ = अक्षर)

वो लोग जिन की ज़माना हँसी उड़ाता है
इक उम्र बाद उन्हें मो'तबर भी करता है

(मो'तबर = विश्वसनीय, भरोसेमंद)

जला के दश्त-ए-तलब में उम्मीद की शमएँ
अज़िय्यतों से हमें बे-ख़बर भी करता है

(दश्त-ए-तलब = इच्छाओं के रेगिस्तान), (अज़िय्यतों = यातनाओं, तकलीफ़ों)

-खलील तनवीर

Wednesday, April 10, 2019

उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है

उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है
अजीब दिल है गिरूँ तो सँभाल लेता है

ये कैसा शख़्स है कितनी ही अच्छी बात कहो
कोई बुराई का पहलू निकाल लेता है

ढले तो होती है कुछ और एहतियात की उम्र
कि बहते बहते ये दरिया उछाल लेता है

बड़े-बड़ों की तरह-दारियाँ नहीं चलतीं
उरूज तेरी ख़बर जब ज़वाल लेता है

(उरूज = बुलंदी, ऊँचाई), (ज़वाल = हृास, पतन)

जब उस के जाम में इक बूँद तक नहीं होती
वो मेरी प्यास को फिर भी सँभाल लेता है

-वसीम बरेलवी

Monday, March 4, 2019

नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर

नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर
जो हाथ में नहीं है वो पत्थर तलाश कर

सूरज के इर्द-गिर्द भटकने से फ़ाएदा
दरिया हुआ है गुम तो समुंदर तलाश कर

तारीख़ में महल भी है हाकिम भी तख़्त भी
गुमनाम जो हुए हैं वो लश्कर तलाश कर

रहता नहीं है कुछ भी यहाँ एक सा सदा
दरवाज़ा घर का खोल के फिर घर तलाश कर

कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन
फिर इस के बा'द थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर

-निदा फ़ाज़ली

Friday, February 15, 2019

वो टूटते हुए रिश्तों का हुस्न-ए-आख़िर था
कि चुप सी लग गई दोनों को बात करते हुए

अजब नज़ारा था बस्ती का उस किनारे पर
सभी बिछड़ गए दरिया से पार उतरते हुए

-राजेन्द्र मनचंदा बानी

(हुस्न-ए-आख़िर = परम सौंदर्य)

Thursday, January 24, 2019

रदीफ़ "और बस" पर चंद मुख़्तलिफ़ शोअरा के अशआर मुलाहिज़ा फ़रमाएँ


मैं ने उसी से हाथ मिलाया था और बस 
वो शख़्स जो अज़ल से पराया था और बस

(अज़ल = सृष्टि के आरम्भ, अनादिकाल)

लम्बा सफ़र था आबला-पाई थी धूप थी
मैं था तुम्हारी याद का साया था और बस

(आबला-पाई = छाले भरे पैर)

-अरशद महमूद "अरशद"

मिलना न मिलना एक बहाना है और बस
तुम सच हो बाक़ी जो है फ़साना है और बस

सोए हुए तो जाग ही जाएँगे एक दिन
जो जागते हैं उन को जगाना है और बस

-सलीम "कौसर"

इतनी सी इस जहाँ की हक़ीक़त है और बस 
गुफ़्तार ज़ेर-ए-लब है समाअत है और बस

(गुफ़्तार = बातचीत), (ज़ेर-ए-लब = होंठों ही होंठों में), (समाअत = सुनना, सुनवाई)

इतने से जुर्म पर तो न मुझ को तबाह रख
थोड़ी सी मुझ में तेरी शबाहत है और बस

(शबाहत = एकरूपता, समता)

-हुसैन "सहर"

अब के ये बात ज़ेहन में ठानी है और बस 
हम ने तो अपनी जान बचानी है और बस

नुक़सान तो हमारा है कच्चे गिरेंगे हम
तुम ने तो एक शाख़ हिलानी है और बस

-अज़्बर "सफ़ीर"

बारिश थी और अब्र था दरिया था और बस 
जागी तो मेरे सामने सहरा था और बस

(अब्र =बादल), (सहरा = रेगिस्तान)

आया ही था ख़याल कि फिर धूप ढल गई
बादल तुम्हारी याद का बरसा था और बस

-सीमा "ग़ज़ल"

उम्र भर उस को रही इक सरगिरानी और बस 
वो तो कहिए थी हमारी सख़्त-जानी और बस

(सरगिरानी=चिंताओं और परेशानियों का बंडल)

-'अंजुम' उसमान


Courtesy Balvinder Singh Chhinna ji 

Thursday, January 3, 2019

दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए

दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए
जब तक न साँस टूटे जिए जाना चाहिए

यूँ तो क़दम क़दम पे है दीवार सामने
कोई न हो तो ख़ुद से उलझ जाना चाहिए

झुकती हुई नज़र हो कि सिमटा हुआ बदन
हर रस-भरी घटा को बरस जाना चाहिए

चौराहे बाग़ बिल्डिंगें सब शहर तो नहीं
कुछ ऐसे वैसे लोगों से याराना चाहिए

अपनी तलाश अपनी नज़र अपना तजरबा
रस्ता हो चाहे साफ़ भटक जाना चाहिए

चुप चुप मकान रास्ते गुम-सुम निढाल वक़्त
इस शहर के लिए कोई दीवाना चाहिए

बिजली का क़ुमक़ुमा न हो काला धुआँ तो हो
ये भी अगर नहीं हो तो बुझ जाना चाहिए

-निदा फ़ाज़ली

Tuesday, January 1, 2019

आएगा कोई चल के ख़िज़ाँ से बहार में

आएगा कोई चल के ख़िज़ाँ से बहार में
सदियाँ गुज़र गई हैं इसी इंतिज़ार में

(ख़िज़ाँ = पतझड़)

छिड़ते ही साज़-ए-बज़्म में कोई न था कहीं
वो कौन था जो बोल रहा था सितार में

ये और बात है कोई महके कोई चुभे
गुलशन तो जितना गुल में है उतना है ख़ार में

अपनी तरह से दुनिया बदलने के वास्ते
मेरा ही एक घर है मिरे इख़्तियार में

(इख़्तियार = अधिकार, प्रभुत्व)

तिश्ना-लबी ने रेत को दरिया बना दिया
पानी कहाँ था वर्ना किसी रेग-ज़ार में

(तिश्ना-लबी =प्यास), (रेग-ज़ार = रेगिस्तान)

मसरूफ़ गोरकन को भी शायद पता नहीं
वो ख़ुद खड़ा हुआ है क़ज़ा की क़तार में

(मसरूफ़ = काम में लगा हुआ, संलग्न, Busy), (गोरकन = कब्र खोदनेवाला), (क़ज़ा = मौत)

-निदा फ़ाज़ली

Saturday, December 22, 2018

दुनिया में रह कर हर इंसाँ, दरिया से रवादारी सीखे
लहरें भी उट्ठा करती हैं, कश्ती भी चलती जाती है
(रवादारी = सह्रदयता, Generosity)

-मुनव्वर लखनवी

Monday, June 11, 2018

क्या इक दरिया अपना पानी चुन सकता है

क्या इक दरिया अपना पानी चुन सकता है
पानी भी क्या अपनी रवानी चुन सकता है

जीना है दुनिया में दुनिया की शर्तों पर
कौन क़फ़स में दाना-पानी चुन सकता है

(क़फ़स = पिंजरा)

दिल तो वो दीवाना है जो मह़फ़िल में भी
अपनी मर्ज़ी की वीरानी चुन सकता है

छोड़ दिया है मैंने दर-दर सजदा करना
तू कोई दीगर पेशानी चुन सकता है

मैंने तो ख़त में लिक्खे हैं अपने मआ’नी
वो इस ख़त में अपने मआ’नी चुन सकता है

जीना ही जब इतना मुश्किल है तो कोई
कैसे मरने की आसानी चुन सकता है

हर किरदार को चुन लेती है उसकी कहानी
क्या कोई किरदार कहानी चुन सकता है

- राजेश रेड्डी

Tuesday, February 13, 2018

ये मुहब्बत भी एक नेकी है
आओ दरिया में डाल आते हैं
-ईनाम नदीम