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Friday, April 19, 2013

मुकाबिल तोप से हर पल कलम थी,
तुम्हारे हाथ की तलवार क्या है ।

(मुकाबिल = सम्मुख, आमने-सामने)

मुक़म्मल फैसला कर ले मोहब्बत,
तो सरहद पे उठी दीवार क्या है ।

(मुक़म्मल = सम्पूर्ण)

हमें बिकना नहीं मंजूर, सुन ले
अब तेरा दर है क्या, बाज़ार क्या है ।

-अवनीश कुमार
क़ैद में हैं और बाँहों में खुला आकाश है,
यह हमारा ही नहीं युग का विरोधाभास है ।

ताज बदले पर वज़ीरों का वही कुनबा रहा,
वक़्त के संग बदल जाने का उन्हें अभ्यास है ।
-अवनीश कुमार

Saturday, April 13, 2013

मदारी मंच पर आकर नये करतब दिखाता है,
तमाशा देखता है मुल्क़ औ ताली बजाता है ।

कभी मैं सोचता हूँ कि ये साज़िश ख़त्म कब होगी,
न कोई चीखता है न कोई हल्ला मचाता है ।
-अवनीश कुमार
 
दर्द की फ़सलों पे बाकी रहा अश्कों का लगान,
जो भी बन्दे बस गए थे इश्क़ की जागीर में ।
-अवनीश कुमार

Thursday, April 11, 2013

रास्ता सच का अगर है तो अकेले चल पड़ो,
एक दिन पीछे तुम्हारे कारवां हो जायेगा ।

एक तिनके की अहमियत वैसे तो कुछ भी नहीं,
इक परिंदे के लिए वो आशियाँ हो जाएगा ।
-अवनीश कुमार
 
हवाओं के पाँव में ज़ंजीर देखे,
बहुत दिन हुए तेरी तस्वीर देखे ।

दोस्त है गर तो सीने से लग जाए मेरे,
मेरा दुश्मन है तो अपनी शमशीर देखे ।
-अवनीश कुमार

(शमशीर = तलवार)


Hawaon ke paanv me zanjeer dekhe,
Bahut din hue teri tasweer dekhe.

Dost hai gar to seene se lag jaaye mere,
Mera dushman hai to apni shamsheer dekhe.
-Avneesh Kumar