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Tuesday, July 6, 2021

माना के तिरा फ़ैज़ अभी, आम नहीं है

माना के तिरा फ़ैज़ अभी, आम नहीं है
क्या "क़ैस" की ख़ातिर भी, कोई जाम नहीं है ? 

(फ़ैज़ = लाभ, उपकार, कृपा)

मेरी ये शिकायत के मुझे, टाल रहे हैं 
उनका ये बहाना के अभी, शाम नहीं है

दिन भर तिरी यादें हैं तो, शब भर तिरे सपने
दीवाने को अब और कोई, काम नहीं है

वो दिल ही नहीं जिस में तिरी, याद नहीं है
वो लब ही नहीं जिस पे तिरा, नाम नहीं है

अपनों से शिकायत है ना, ग़ैरों से गिला है
तक़दीर ही ऐसी है कि, आराम नहीं है

ये "क़ैस"-ए-बला-नोश भी, क्या चीज़ है, यारों 
बद-क़ौल है, बद-फ़ेल है, बद-नाम नहीं है

("क़ैस"-ए-बला-नोश = शराबी "क़ैस"), (बद-क़ौल = बुरा बोलने वाला), (बद-फ़ेल = बुरे काम करने वाला)

राजकुमार "क़ैस"

Friday, June 28, 2019

ऐसे लम्हे भी तो आते हैं के काटे न कटें
और कभी साल भी पल भर में गुज़र जाते हैं

हम मरेंगे तो किसी बात की ख़ातिर, वरना
लोग मरने को तो बिन बात ही मर जाते हैं

-राजकुमार "क़ैस"

Tuesday, March 12, 2019

वाइज़ कभी तो इश्क़-ओ-मुहब्बत की बात कर
हर रोज़ कुफ़्र-ओ-दीं का फ़साना फ़ुज़ूल है

(वाइज़ = धर्मोपदेशक), (कुफ़्र-ओ-दीं = पाप और पुण्य, धर्म-अधर्म)

इरफ़ान-ए-ज़िन्दगी की तलब है तो दिल में झाँक
दैर-ओ-हरम के फेर में आना फ़ुज़ूल है

(इरफान-ए-ज़िन्दगी = ज़िंदगी का ज्ञान), (दैर-ओ-हरम = मंदिर और मस्जिद)

-राजकुमार "क़ैस"

Tuesday, February 19, 2019

कोसने वालों ने कोसा है मिज़ाज-ए-हुस्न को
लूटने वालों ने लूटे हैं मुहब्बत के मज़े
-राजकुमार क़ैस

Monday, January 21, 2019

जैसे भी इशारात हों, जैसी भी नज़र हो

जैसे भी इशारात हों, जैसी भी नज़र हो
पहली सी मुहब्बत न सही, कुछ तो मगर हो

साग़र हो, सुराही हो, मय-ए-ज़ुद-असर हो
जीना कोई मुश्किल नहीं, सामान अगर हो

(मय-ए-ज़ूद-असर = जल्दी असर करने वाली शराब)

चौखट हो के दहलीज़, दरीचा हो के दर हो
जैसा भी हो, कहने के लिए कोई तो घर हो

हम जिस की तजल्ली के हैं मुश्ताक़ अज़ल से
वो काफ़िर-ए-आफ़ाक़ ख़ुदा जाने किधर हो?

(तजल्ली = प्रकाश, नूर), (मुश्ताक़ = उत्सुक), ((अज़ल = सृष्टि के आरम्भ, अनादिकाल), (काफ़िर-ए-आफ़ाक़ = दुनिया का माशूक़)

हम जान भी दे दें तो कोई देखे न देखे
वो होंट हिला दें तो ज़माने को ख़बर हो

तन्हाई में रह कर भी मैं तनहा नहीं रहता
होता है कोई साथ, सफ़र हो के हज़र हो

(हज़र = घर में रहना, सफ़र का उल्टा)

सब की ये दुआ है कि मैं इस रोग से छूटूँ
मेरी ये दुआ है के दुआ में न असर हो

अब जाने दे, जाने दे मुझे, ऐ शब-ए-हिज्राँ
शब भर तो रुके वोह, जिसे उम्मीद-ए-सहर हो

(शब-ए-हिज्राँ = जुदाई की रात), (उम्मीद-ए-सहर = सुबह होने की उम्मीद)

इस बज़्म-ए-अदीबाँ में भला 'क़ैस' का क्या काम
उस रिन्द-ए-ख़राबात में कोई तो हुनर हो

(बज़्म-ए-आदीबाँ = कलाकारों की महफ़िल), (रिन्द-ए-ख़राबात = मैख़ाने में ही रहने वाला शराबी)

-राजकुमार क़ैस