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Thursday, October 22, 2020

तुम लगाते चलो अश्जार जिधर से गुज़रो
उस के साए में जो बैठेगा, दुआ ही देगा
-नामालूम

(अश्जार = बहुत सारे पेड़, "शजर" का बहुवचन)

Monday, May 11, 2020

जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुलह की दुआ
दुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो
-लाला माधव राम 'जौहर'

Monday, July 8, 2019

उठे हैं हाथ तो अपने करम की लाज बचा
वगरना मेरी दुआ क्या मिरी तलब क्या है
-सिद्दीक़ मुजीबी

(करम = कृपा, करुणा)

Wednesday, June 26, 2019

मुसलसल चोट खा कर देख ली है

मुसलसल चोट खा कर देख ली है
ये दुनिया आज़मा कर देख ली है।

(मुसलसल = लगातार)

कोई मुश्किल न कम होती है मय से
ये शै मुंह से लगा कर देख ली है।

(शै = वस्तु, पदार्थ, चीज़)

मिला किसको इलाज-ए-इश्क़ अब तक
यहाँ सब ने दवा कर देख ली है।

यक़ीं अपनों पे तुम करने चले हो
यूं हमने ये ख़ता कर देख ली है।

अधूरी सी अड़ी है ज़िद पे अब तक
तमन्ना बरगला कर देख ली है।

(बरगलाना = बहकाना, भटकाना, दिग्भ्रमित करना, गुमराह करना, फुसलाना)

दुआओं से तो घर चलता नहीं है
दुआ हमने कमा कर देख ली है।

- विकास "वाहिद"
२५ जून २०१९

Saturday, June 15, 2019

आकाश की हसीन फ़ज़ाओं में खो गया

आकाश की हसीन फ़ज़ाओं में खो गया
मैं इस क़दर उड़ा कि ख़लाओं में खो गया

(ख़लाओं = अँतरिक्षों)

कतरा रहे हैं आज के सुक़रात ज़हर से
इंसान मस्लहत की अदाओं में खो गया

(मस्लहत = समझदारी, हित, भलाई)

शायद मिरा ज़मीर किसी रोज़ जाग उठे
ये सोच के मैं अपनी सदाओं में खो गया

(सदाओं = आवाज़ों)

लहरा रहा है साँप सा साया ज़मीन पर
सूरज निकल के दूर घटाओं में खो गया

मोती समेट लाए समुंदर से अहल-ए-दिल
वो शख़्स बे-अमल था दुआओं में खो गया

(अहल-ए-दिल = दिल वाले), (बे-अमल = बिना कर्म के)

ठहरे हुए थे जिस के तले हम शिकस्ता-पा
वो साएबाँ भी तेज़ हवाओं में खो गया

(शिकस्ता-पा = मजबूर, असहाय, लाचार), (साएबाँ = शामियाना, मण्डप)

-कामिल बहज़ादी

Tuesday, May 28, 2019

न रस्मो राह का चर्चा, न हुस्ने यार की बातें

न रस्मो राह का चर्चा, न हुस्ने यार की बातें
यहाँ जिस से मिलो करता है कारोबार की बातें

इसी के साये में हमने कई सदियाँ गुज़ारी हैं
हमारे सामने मत कीजिये तलवार की बातें

मेरे मालिक मेरी माँ की दुआ की लाज रख लेना
मेरे आँगन में अब होने लगीं दीवार की बातें

-आरिफ़ "मीर"

Friday, May 24, 2019

ख़िज़ां की रुत में गुलाब लहजा बनाके रखना, कमाल ये है

ख़िज़ां की रुत में गुलाब लहजा बनाके रखना, कमाल ये है
हवा की ज़द पे दिया जलाना, जला के रखना, कमाल ये है

(ख़िज़ां = पतझड़), (ज़द=निशाना, सामना, target)

ज़रा सी लरज़िश पे तोड़ देते हैं, सब तअल्लुक़, ज़माने वाले
सो ऐसे वैसों से भी तअल्लुक़, बना के रखना, कमाल ये है

(लरज़िश = थरथराहट, कँपकँपी, ग़लती)

किसी को देना ये मश्वरा के, वो दुःख बिछड़ने का, भूल जाए
और ऐसे लम्हे में अपने आँसू, छुपा के रखना, कमाल ये है

ख़याल अपना, मिज़ाज अपना, पसंद अपनी, कमाल क्या है
जो यार चाहे वो हाल अपना, बना के रखना, कमाल ये है

किसी की राह से ख़ुदा की ख़ातिर, उठा के कांटे, हटा के पत्थर
फिर उस के आगे निगाह अपनी, झुका के रखना, कमाल ये है

वो जिसको देखे तो दुःख का लश्कर भी लड़खाए, शिकस्त खाए
लबों पे अपने वो मुस्कुराहट, सजा के रखना, कमाल ये है

(लश्कर=भीड़, फ़ौज)

हज़ार ताक़त हो, सौ दलीलें हों, फिर भी लहजे में आजिज़ी से
अदब की लज़्ज़त, दुआ की ख़ुश्बू, बसा के रखना,कमाल ये है

(आजिज़ी = विनय, नम्रता, बेबसी, लाचारी), (अदब=शिष्टता, सभ्यता)

-मुबारक सिद्दीक़ी

Thursday, May 16, 2019

जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम

जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम
बेदार हो गए किसी ख़्वाब-ए-गिराँ से हम

(बेदार = जागृत, जागना), (ख़्वाब-ए-गिराँ =  बड़ा सपना)

ऐ नौ-बहार-ए-नाज़ तिरी निकहतों की ख़ैर
दामन झटक के निकले तिरे गुल्सिताँ से हम

(ऐ नौ-बहार-ए-नाज़ = नयी बहार के नाज़-नख़रे ), (निकहतों = ख़ुशबुओं)

पिंदार-ए-आशिक़ी की अमानत है आह-ए-सर्द
ये तीर आज छोड़ रहे हैं कमाँ से हम

(पिंदार-ए-आशिक़ी = प्रेम का अभिमान या समझ)

आओ ग़ुबार-ए-राह में ढूँढें शमीम-ए-नाज़
आओ ख़बर बहार की पूछें ख़िज़ाँ से हम

(ग़ुबार-ए-राह = रास्ते की धूल का तूफ़ान), (शमीम-ए-नाज़ = प्यार की खुशबू), (ख़िज़ाँ = पतझड़)

आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ' के साथ
कैसे ज़मीं की बात कहें आसमाँ से हम

-अहमद नदीम क़ासमी

Tuesday, April 16, 2019

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया
ऐसे लगा कि एक ज़माना गुज़र गया

सब के लिए बुलंद रहे हाथ उम्र भर
अपने लिए दुआओं का लम्हा गुज़र गया

कोई हुजूम-ए-दहर में करता रहा तलाश
कोई रह-ए-हयात से तन्हा गुज़र गया

(हुजूम-ए-दहर = दुनिया की भीड़), (रह-ए-हयात = ज़िन्दगी की राह)

मिलना तो ख़ैर उस को नसीबों की बात है
देखे हुए भी उस को ज़माना गुज़र गया

दिल यूँ कटा हुआ है किसी की जुदाई में
जैसे किसी ज़मीन से दरिया गुज़र गया

इस बात का मलाल बहुत है मुझे 'अदीम'
वो मेरे सामने से अकेला गुज़र गया

हम देखने का ढंग समझते रहे 'अदीम'
इतने में ज़िंदगी का तमाशा गुज़र गया

बाक़ी बस एक नाम-ए-ख़ुदा रह गया 'अदीम'
सब कुछ बहा के वक़्त का दरिया गुज़र गया

-अदीम हाशमी

Thursday, April 11, 2019

अब कहाँ ऐसी तबीअत वाले
चोट खा कर जो दुआ करते थे

तर्क-ए-एहसास-ए-मोहब्बत मुश्किल
हाँ मगर अहल-ए-वफ़ा करते थे

-साग़र सिद्दीक़ी

(तर्क-ए-एहसास-ए-मोहब्बत =इश्क़ के एहसास का त्याग), (अहल-ए-वफ़ा =  वफ़ा करने वाले लोग)

Friday, February 22, 2019

कोई ख़ंजर ना किसी तलवार से

कोई ख़ंजर ना किसी तलवार से
हल हुईं हैं मुश्किलें बस प्यार से

क्या बताएं हम इलाजे इश्क़ अब
पूछते हैं वो दवा बीमार से

वो मज़े के दिन वो बचपन अब कहाँ
दिन गुज़रते थे किसी त्यौहार से

ढूंढते दैरो हरम में जो ख़ुदा
अब तलक महरूम हैं दीदार से

(दैरो हरम = मंदिर मस्जिद), (महरूम = वंचित)

क्या मरासिम हैं मेरे तन्हाई से
पूछ लो मेरे दरो दीवार से

(मरासिम = मेल-जोल, प्रेम-व्यवहार, संबंध)

पोछते कब अश्क़ अपनी आँख के
कब मिली फ़ुर्सत हमें घर बार से

है अगर तेरी दुआ में कुछ कमी
फिर सदा आती नहीं उस पार से

(सदा = आवाज़)

किसको फ़ुर्सत कौन पूछे हाल अब
लड़ रहे हैं सब यहाँ किरदार से

मशवरा है आईना मत देखना
कर लिया सौदा अगर दस्तार से

(दस्तार = पगड़ी)

- विकास वाहिद // ०४ -०२ -२०१९

Sunday, February 17, 2019

न सुनती है न कहना चाहती है

न सुनती है न कहना चाहती है
हवा इक राज़ रहना चाहती है

न जाने क्या समाई है कि अब की
नदी हर सम्त बहना चाहती है

(सम्त = तरफ़, दिशा की ओर)

सुलगती राह भी वहशत ने चुन ली
सफ़र भी पा-बरहना चाहती है

(पा-बरहना = नंगे पैर)

तअल्लुक़ की अजब दीवानगी है
अब उस के दुख भी सहना चाहती है

उजाले की दुआओं की चमक भी
चराग़-ए-शब में रहना चाहती है

(चराग़-ए-शब = रात का दिया)

भँवर में आँधियों में बादबाँ में
हवा मसरूफ़ रहना चाहती है

(मसरूफ़ = जिसे फुर्सत न हो, काम में लगा हुआ, प्रवृत्त, संलग्न, मश्गूल)

-मंज़ूर हाशमी

Wednesday, February 13, 2019

खो न जाए कहीं हर ख़्वाब सदाओं की तरह

खो न जाए कहीं हर ख़्वाब सदाओं की तरह
ज़िंदगी महव-ए-तजस्सुस है हवाओं की तरह

(सदाओं = आवाज़ों), (महव-ए-तजस्सुस = तलाश में तल्लीन/ तन्मय/ डूबी हुई)

टूट जाए न कहीं शीशा-ए-पैमान-ए-वफ़ा
वक़्त बे-रहम है पत्थर के ख़ुदाओं की तरह

हम से भी पूछो सुलगते हुए मौसम की कसक
हम भी हर दश्त पे बरसे हैं घटाओं की तरह

(दश्त = जंगल)

बारहा ये हुआ जा कर तिरे दरवाज़े तक
हम पलट आए हैं नाकाम दुआओं की तरह

कभी माइल-ब-रिफ़ाक़त कभी माइल-ब-गुरेज़
ज़िंदगी हम से मिली तेरी अदाओं की तरह

(माइल-ब-रिफ़ाक़त = मेल-जोल की प्रवृति), (माइल-ब-गुरेज़ = दूर रहने की प्रवृति)

-मुमताज़ राशिद

Monday, January 21, 2019

जैसे भी इशारात हों, जैसी भी नज़र हो

जैसे भी इशारात हों, जैसी भी नज़र हो
पहली सी मुहब्बत न सही, कुछ तो मगर हो

साग़र हो, सुराही हो, मय-ए-ज़ुद-असर हो
जीना कोई मुश्किल नहीं, सामान अगर हो

(मय-ए-ज़ूद-असर = जल्दी असर करने वाली शराब)

चौखट हो के दहलीज़, दरीचा हो के दर हो
जैसा भी हो, कहने के लिए कोई तो घर हो

हम जिस की तजल्ली के हैं मुश्ताक़ अज़ल से
वो काफ़िर-ए-आफ़ाक़ ख़ुदा जाने किधर हो?

(तजल्ली = प्रकाश, नूर), (मुश्ताक़ = उत्सुक), ((अज़ल = सृष्टि के आरम्भ, अनादिकाल), (काफ़िर-ए-आफ़ाक़ = दुनिया का माशूक़)

हम जान भी दे दें तो कोई देखे न देखे
वो होंट हिला दें तो ज़माने को ख़बर हो

तन्हाई में रह कर भी मैं तनहा नहीं रहता
होता है कोई साथ, सफ़र हो के हज़र हो

(हज़र = घर में रहना, सफ़र का उल्टा)

सब की ये दुआ है कि मैं इस रोग से छूटूँ
मेरी ये दुआ है के दुआ में न असर हो

अब जाने दे, जाने दे मुझे, ऐ शब-ए-हिज्राँ
शब भर तो रुके वोह, जिसे उम्मीद-ए-सहर हो

(शब-ए-हिज्राँ = जुदाई की रात), (उम्मीद-ए-सहर = सुबह होने की उम्मीद)

इस बज़्म-ए-अदीबाँ में भला 'क़ैस' का क्या काम
उस रिन्द-ए-ख़राबात में कोई तो हुनर हो

(बज़्म-ए-आदीबाँ = कलाकारों की महफ़िल), (रिन्द-ए-ख़राबात = मैख़ाने में ही रहने वाला शराबी)

-राजकुमार क़ैस

Sunday, March 18, 2018

नव वर्ष के दोहेे

अब खूँटी पर टाँग दे, नफ़रत-भरी कमीज़ ।
बोना है नव वर्ष में, मुस्कानों के बीज ।।

घर में या परदेस में ,सबसे मुझको प्यार ।
सबके आँगन में खिले, फूलों का संसार ।।

नए साल से हम कहें-करलो दुआ कुबूल ।
माफ़ करें हर एक की, जो-जो खटकी भूल ।।

मुड़-मुड़कर क्या देखना, पीछे उड़ती धूल ।
फूलों की खेती करो, हट जाएँगे शूल ।।

अधरों पर मुस्कान ले, कहता है नव वर्ष ।
छोड़ उदासी को यहाँ, आ पहुँचा है हर्ष ।।

-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

Sunday, February 19, 2017

न जाने कौन मेरे हक़ में दुआ पढ़ता है
डूबता भी हूँ तो समन्दर उछाल देता है
-शायर: नामालूम

Wednesday, November 30, 2016

जोखिमों से लगाव मारे है

जोखिमों से लगाव मारे है
हमको अपना सुभाव मारे है

यूं कमी भी नहीं घरों की हमें
कुछ भटकने का चाव मारे है

तू परेशां है बेख़याली से
और मुझे रखरखाव मारे है

प्यार के हर्फ़ तो हैं ढाई मगर
इनका इक-इक घुमाव मारे है

उनके हक़ में भी हम दुआ मांगें
जिनको मन का रिसाव मारे है

-हस्तीमल हस्ती

Saturday, April 9, 2016

न शोहरत मिली हमें

न शोहरत मिली हमें
न दौलत मिली हमें

पर इतना तो हुआ
के इज़्ज़त मिली हमें

सच मुंह पे कह देते हैं
बुरी आदत मिली हमें

पुरखों की दुआएं थी
एक छत मिली हमें

हुनर तो न था कोई
बस कुव्वत मिली हमें

(कुव्वत = शक्ति)

उम्मीद प्यार की थी जहाँ
वहीँ नफरत मिली हमें

हश्र बदी का जब देखा
कुछ हिम्मत मिली हमें

खाली थे कब ग़म से
कब फुर्सत मिली हमें

झोली भरी हैं दुआओं से
ये बरकत मिली हमें

दफ्न हैं तेरे पहलू में
क्या सुहबत मिली हमें

- विकास वाहिद

Friday, March 18, 2016

दुआ मरने की माँगी ज़ीस्त की ख़्वाहिश निकल आयी

दुआ मरने की माँगी ज़ीस्त की ख़्वाहिश निकल आयी
न जाने कैसे तपती धूप में बारिश निकल आयी

(ज़ीस्त = जीवन, ज़िंदगी)

समझते थे हम अपनी मौत को इक हादसा अब तक
मगर तफ़्तीश में वो क़त्ल की साजिश निकल आयी

चले थे घर से समझा कर बहुत इस दिल को हम, लेकिन
नये मेले में दुनिया के नयी ख़्वाहिश निकल आयी

कहा है ज़िन्दगी ने फिर किसी दिन मिल के बैठेंगे
चलो फिर कुछ मुलाकातों की गुंजाइश निकल आयी

बड़ी मुश्किल से हम घर के लिए कुछ लेने निकले थे
कलेजा चीरती बच्चों की फ़रमाइश निकल आयी

-राजेश रेड्डी

Tuesday, July 14, 2015

शोला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो

शोला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो
मैं कब का जा चुका हूँ सदाएँ मुझे न दो

(सदाएँ = आवाज़ें)

जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया
अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआएँ मुझे न दो

ये भी बड़ा करम है सलामत है जिस्म अभी
ऐ ख़ुसरवान-ए-शहर क़बाएँ मुझे ना दो

(ख़ुसरवान-ए-शहर = शहर के बादशाह), (क़बा = एक प्रकार का लम्बा ढीला पहनावा, चोगा)

ऐसा कभी न हो के पलटकर न आ सकूँ
हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो

(सदाएँ = आवाज़ें)

कब मुझ को एतिराफ़-ए-मुहब्बत न था 'फ़राज़'
कब मैं ने ये कहा था सज़ाएँ मुझे न दो

(एतिराफ़-ए-मुहब्बत = प्यार कबूलना, स्वीकार करना कि मुहब्बत है)

-अहमद फ़राज़