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Monday, May 11, 2020

वो पलक मूँद के हौले से मुस्कुराये हैं
उनके तसव्वुर में जाने कौन आया होगा
-अनूप भार्गव

(तसव्वुर = कल्पना, ख़याल, विचार, याद)

Wednesday, July 25, 2018

वहशत, आह, फ़ुग़ाँँ और गिरया...शोर मचा है नालों का


वहशत, आह, फ़ुग़ाँँ और गिरया...शोर मचा है नालों का
बस्ती में बाज़ार लगा है चाक गिरेबाँ वालों का

खेल सियानों का है मुहब्बत, इस का छल तुम क्या जानो
क्या बतलाएँ क्या होता है इस में भोले भालों का

चल कर खुद ही देख ले सारे जीते हैं या मरते हैं
जान गई, पर जी अटका है, तेरे ख़स्ता हालों का

तेरे सर के सौदे की तशहीर है सारी बस्ती में
किस पर भेद छुपा है, पगले, उलझे सुलझे बालों का

लाख उपायों से न टली है बिपता जो कि आनी थी
तदबीर से पलड़ा भारी है, तक़दीर की उलटी चालों का

ख़ार ए बयाबाँ के बोसे से जबकि चारा हो जाए
गुल से मुँह का लगाना कैसा अपने पाँव के छालों का

जितना ज़ोर लगाया उतना उलझा उसकी कुंडली में
पल पल कसता जाए दिल पर हल्क़ा काले बालों का

एक तसव्वुर के पर्दे में, बाबर, माज़ी, फ़र्दा, हाल
आँखें मूँदे सफ़र किया है जाने कितने सालों का

-बाबर इमाम

Tuesday, February 13, 2018

जब चाहें तसव्वुर में गले तुझको लगा लें
हम रस्म-ए-मुलाक़ात के पाबन्द नहीं हैं
-शायर: नामालूम

(तसव्वुर = ख़याल, विचार, याद)

Saturday, May 7, 2016

मैं होश में था तो फिर उसपे मर गया कैसे

मैं होश में था तो फिर उसपे मर गया कैसे
ये ज़हर मेरे लहू में उतर गया कैसे

कुछ उसके दिल में लगावट ज़रूर थी वरना
वो मेरा हाथ दबाकर गुज़र गया कैसे

ज़रूर उसकी  तवज्जो की रहबरी होगी
नशे में था तो मैं अपने ही घर गया कैसे

जिसे भुलाये कई साल हो गये 'कलीम'
मैं आज उसकी गली से गुज़र गया कैसे

-कलीम चाँदपुरी



Mehdi Hassan/ मेहदी हसन 






Mehdi Hassan/ मेहदी हसन (Private Mehfil)


Sunday, August 11, 2013

अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
हम मरे जाते हैं तुम कहते हो हाल अच्छा है

तुझ से माँगूँ मैं तुझी को कि सब कुछ मिल जाये
सौ सवालों से यही इक सवाल अच्छा है

देख ले बुलबुल-ओ-परवाना की बेताबी को
हिज्र अच्छा, न हसीनों का विसाल अच्छा है

[(हिज्र = बिछोहजुदाई), (विसाल = मिलन)]

आ गया उस का तसव्वुर तो पुकारा ये शौक़
दिल में जम जाये इलाही ये ख़याल अच्छा है

 (तसव्वुर = ख़याल, विचार, याद)

-अमीर मीनाई

Sunday, March 3, 2013

बुरे दिनों से बचाना मुझे मेरे मौला,
क़रीबी दोस्त भी बचकर निकलने लगते हैं।

बुलन्दियों का तसव्वुर भी ख़ूब होता है,
कभी कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं।
-राहत इन्दौरी

Sunday, October 14, 2012

सिर्फ़ लहरा के रह गया आँचल
रंग बन कर बिखर गया कोई

गर्दिश-ए-ख़ूं रगों में तेज़ हुई
दिल को छूकर गुज़र गया कोई

फूल से खिल गये तसव्वुर में
दामन-ए-शौक़ भर गया कोई
-अली सरदार जाफ़री