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Tuesday, May 7, 2019

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल, ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
-ख़्वाजा मीर दर्द

(ग़ाफ़िल = बेसुध, बेख़बर)

Saturday, September 21, 2013

हरदम बुतों की सूरत रखता है दिल नज़र में
होती है बुतपरस्ती अब तो ख़ुदा के घर में
- ख़्वाजा मीर 'दर्द'
बाहर न आ सकी तू क़ैद-ए-ख़ुदी से अपनी
ऐ अक़्ल-ए-बेहक़ीक़त देखा शऊर तेरा

[(क़ैद-ए-ख़ुदी = अहंकार का बंधन), (अक़्ल-ए-बेहक़ीक़त = असलियत से दूर अक़्ल), (शऊर = काम करने की योग्यता या ढंग)]

-ख़्वाजा मीर 'दर्द'
रौंदे है नक़्श-ए-पा की तरह ख़ल्क़ याँ मुझे
ऐ उम्र-ए-रफ़्ता ! छोड़ गई तू कहाँ मुझे

[(नक़्श-ए-पा = पैरों के निशान), (ख़ल्क़ = सृष्टी, जगत), (उम्र-ए-रफ़्ता = बीती हुई ज़िन्दगी)]

- ख़्वाजा मीर 'दर्द' 
हम तुझसे किस हविस की फ़लक जुस्तजू करें ?
दिल ही नहीं रहा है जो कुछ आरज़ू करें

[(हविस = कामना, तृष्णा), (फ़लक = आसमान), (जुस्तजू = इच्छा, खोज)]

-ख़्वाजा मीर 'दर्द'

Wednesday, September 18, 2013

सूरतें क्या क्या मिली हैं ख़ाक में
है दफ़ीना हुस्न का ज़ेरे ज़मीं
-ख़्वाजा मीर 'दर्द'

[(दफ़ीना = ख़ज़ाना), (ज़ेरे ज़मीं = ज़मीन के नीचे)]
तेरी गली में, मैं न चलूँ और सबा चले
यूँ ही ख़ुदा जो चाहे तो बन्दे की क्या चले
-ख़्वाजा मीर 'दर्द'

(सबा = हवा)
दुश्वार होती ज़ालिम, तुझको भी नींद आनी
लेकिन सुनी न तूने टुक भी मेरी कहानी

मुहताज अब नहीं हम नासेह नसीहतों के
साथ अपने सब वो बातें लेती गई जवानी

-ख़्वाजा मीर 'दर्द'

(नासेह = उपदेशक)

Monday, September 16, 2013

जितनी बढ़ती है, उतनी घटती है
ज़िन्दगी आप ही आप कटती है
-ख़्वाजा मीर 'दर्द'
वाक़िफ़ न याँ किसी से हम हैं न कोई हमसे
यानी कि आ गए हैं, बहके हुए अदम से
-ख़्वाजा मीर 'दर्द'

(अदम = परलोक)
तुहमतें चन्द अपने जिम्मे धर चले
किसलिए आए थे और क्या कर चले

(तुहमतें = तोहमतें = झूठे  इल्ज़ाम, झूठे  कलंक)

शम्अ की मानिंद हम इस बज़्म में
चश्मे-नम आये थे, दामन तर चले

[(चश्मे-नम = भरी आँखों से, आँसू भरे नेत्र), (दामन तर = भीगे हुए वस्त्र)]

-ख़्वाजा मीर 'दर्द'

Saturday, July 13, 2013

अर्ज़ ओ समाँ कहाँ तेरी वुसअत को पा सके
मेरा ही दिल है वो कि जहाँ तू समाँ सके

(वुसअत = विस्तार)

वहदत में तेरी हर्फ़ दुई का न आ सके
आईना क्या मजाल तिझे मुंह दिखा सके

(वहदत = एकत्व, अद्वैत भाव), (हर्फ़ = अक्षर, शब्द)

मैं वो फ़तादा हूँ कि बग़ैर अज़ फ़ना मुझे
नक़्श ए क़दम की तरहा न कोई उठा सके

क़ासिद नहीं ये काम तेरा अपनी राह ले
उस का पयाम दिल के सिवा कौन ला सके

(क़ासिद = पत्रवाहक, डाकिया), (पयाम = सन्देश)

ग़ाफ़िल ख़ुदा की याद पे मत भूल ज़ीन्हार
अपने तईं भुला से अगर तू भुला सके

(ग़ाफ़िल = बेख़बर), (ज़ीन्हार = कदापि)

यारब ये क्या तिलिस्म है इद्राक ओ फ़ेहम याँ
दौड़े हज़ार, आप से बाहर न जा सके

(इद्राक ओ फ़ेहम = बुद्धि, समझ, ज्ञान)

गो बहस करके बात बिठाई प क्या हुसूल
दिल सा उठा ग़िलाफ़ अगर तू उठा सके

(हुसूल = लाभ, निष्कर्ष, नतीजा), (ग़िलाफ़ = खोल)

इतफ़ा-ए-नार-ए-इश्क़ न हो आब-ए-अश्क से
ये आग वो नहीं जिसे पानी बुझा सके

(इतफ़ा-ए-नार-ए-इश्क़ = इश्क़ की आग बुझाना), (आब-ए-अश्क = आँसुओं का पानी)

मस्त-ए-शराब-ए-इश्क़ वो बेखुद है जिसको हश्र
ऐ दर्द चाहे लाये बखुद पर न ला सके

-ख़्वाजा मीर दर्द

Thursday, May 9, 2013


तर दामनी पे शेख़ हमारी न जाइयो,
दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें।
-ख़्वाजा मीर 'दर्द'