हवस जीने की है यूं उम्र के बेकार कटने पर
जो हम से ज़िन्दगी का हक़ अदा होता तो क्या होता
- बृजनारायण चकबस्त
Thursday, May 28, 2015
ज़िन्दगी क्या है, अनासिर में ज़हूर-ए-तरतीब
मौत क्या है, इन्ही अजज़ा का परीशां होना
-बृज नारायण चकबस्त
(अनासिर = पंचभूत, पाँच तत्व - अग्नि, जल, वायु, धरती और आकाश), (ज़हूर-ए-तरतीब = ठीक से गुज़ारने का तरीक़ा, प्रकट होने का सिलसिला/ क्रम ), (अजज़ा = भाग, टुकड़े), (परीशां होना = बिखर जाना)
Sunday, April 21, 2013
मिटने वालों की वफ़ा का यह सबक़ याद रहे,
बेड़ियाँ पैर में हों, और दिल आज़ाद रहे ।
-चकबस्त
Friday, March 22, 2013
अहले हिम्मत मंज़िले मक़सूद तक आ ही गए,
बंदए तक़दीर क़िस्मत का गिला करते रहे ।
-चकबस्त