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Friday, August 5, 2022

कर लूंगा जमा दौलत ओ ज़र उस के बाद क्या

कर लूंगा जमा दौलत-ओ-ज़र उस के बाद क्या
ले   लूँगा  शानदार  सा  घर  उस  के  बाद क्या

(ज़र = धन-दौलत, रुपया-पैसा)

मय की तलब जो होगी तो बन जाऊँगा मैं रिन्द
कर लूंगा मयकदों का सफ़र उस के बाद क्या

(रिन्द = शराबी)

होगा जो शौक़ हुस्न से राज़-ओ-नियाज़ का
कर  लूंगा  गेसुओं में सहर उस के बाद क्या

(राज़-ओ-नियाज़ = राज़ की बातें, परिचय, मुलाक़ात), (गेसुओं =ज़ुल्फ़ें, बाल), (सहर = सुबह)

शे'र-ओ-सुख़न की ख़ूब सजाऊँगा महफ़िलें
दुनिया  में  होगा नाम मगर उस के बाद क्या

(शे'र-ओ-सुख़न = काव्य, Poetry)

मौज आएगी तो सारे जहाँ की करूँगा सैर
वापस  वही  पुराना नगर उस के बाद क्या

इक रोज़ मौत ज़ीस्त का दर खटखटाएगी 
बुझ जाएगा चराग़-ए-क़मर उस के बाद क्या

(ज़ीस्त = जीवन), (चराग़-ए-क़मर = जीवन का चराग़)

उठी   थी   ख़ाक,   ख़ाक  से  मिल  जाएगी  वहीं
फिर उस के बाद किस को ख़बर उस के बाद क्या

-ओम प्रकाश भंडारी "क़मर" जलालाबादी 









Saturday, December 6, 2014

फिर आने लगा याद वही प्यार का आलम

फिर आने लगा याद वही प्यार का आलम
इंकार का आलम कभी इक़रार का आलम

वो पहली मुलाक़ात में रंगीन इशारे
फिर बातों ही बातों में वो तक़रार का आलम

वोह झूमता बलखाता हुआ सर्व-ऐ-ख़िरामा 
मैं कैसे भुला दूँ तेरी रफ़्तार का आलम

(सर्व-ऐ-ख़िरामा =  शान/ शाइस्तगी से चलने वाला)

कब आये थे वो कब गये, कुछ याद नहीं है
आँखों में बसा है वोही दीदार का आलम

-क़मर जलालाबादी