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Sunday, June 30, 2019

मंज़र गुज़िश्ता शब के दामन में भर रहा है
दिल फिर किसी सफ़र का सामान कर रहा है

है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को
कितना सफ़र हुआ है कितना सफ़र रहा है

-शहरयार

 (गुज़िश्ता = भूतकाल, बीता हुआ), (शब = रात)

Thursday, June 13, 2019

शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को
मैं देखता रहा दरिया तिरी रवानी को

(शदीद = कठिन, मुश्किल, कठोर, घोर, प्रचंड, तीव्र, तेज़, अत्याधिक), (रवानी = बहाव, प्रवाह)

जो चाहता है कि इक़बाल हो सिवा तेरा
तो सब में बाँट बराबर से शादमानी को

(इक़बाल = प्रताप, तेज, जलाल, सौभाग्य, खुशकिस्मती, समृद्धि), (शादमानी = खुशी)

-शहरयार

Monday, November 10, 2014

सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का
यही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का
-शहरयार

(सियाह = काली)

Thursday, June 13, 2013

सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है

दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यूँ है

तन्हाई की ये कौन सी मन्ज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है

[(रफ़ीक़ = मित्र, हमराही), (ता-हद्द-ए-नज़र = जहाँ तक नज़र जा सके)]

हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-ए-पशेमाँ, पशेमाँ सा क्यूँ है

(ज़ूद-ए-पशेमाँ = अपनी भूल पर बहुत जल्दी पछताने वाला)

क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है
-शहरयार



Wednesday, June 12, 2013

सूरज का सफ़र ख़त्म हुआ रात न आयी
हिस्से में मेरे ख्वाबों की सौग़ात न आयी

मौसम ही पे हम करते रहे तब्सरा ता देर
दिल जिस से दुखे ऐसी कोई बात न आयी

यूं डोरे को हम वक़्त की पकड़े तो हुए थे
एक बार मगर छूटी तो फिर हाथ न आयी

हमराह कोई और न आया तो क्या गिला
परछाई भी जब मेरी मेरे साथ न आयी

हर सिम्त नज़र आती हैं बेफ़सल ज़मीन
इस साल भी शहर में बरसात न आयी
-शहरयार

Sunday, June 9, 2013

ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है
हद्द-ए-निगाह तक जहाँ ग़ुबार ही ग़ुबार है

ये किस मुकाम पर हयात मुझ को लेके आ गई
न बस ख़ुशी पे है जहाँ न ग़म पे इख़्तियार है

(हयात = जीवन)

तमाम उम्र का हिसाब माँगती है ज़िन्दगी
ये मेरा दिल कहे तो क्या ये ख़ुद से शर्मसार है

बुला रहा क्या कोई चिलमनों के उस तरफ़
मेरे लिये भी क्या कोई उदास बेक़रार है

न जिस की शक्ल है कोई न जिस का नाम है कोई
इक ऐसी शै का क्यों हमें अज़ल से इंतज़ार है

(अज़ल = मृत्यु, मौत)

-शहरयार

Friday, May 31, 2013

दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिये

इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार
दीवार-ओ-दर को ग़ौर से पहचान लीजिये

माना के दोस्तों को नहीं दोस्ती का पास
लेकिन ये क्या के ग़ैर का एहसान लीजिये

कहिये तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँ
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये
-शहरयार


Tuesday, January 22, 2013

निशाते-ग़म भी मिला, रंजे-शादमानी भी,
मगर वो लम्हे बहुत मुख़्तसर थे, फ़ानी भी।
-शहरयार

 [(निशाते-ग़म =दु:ख का आनंद),  (रंजे-शादमानी=प्रसन्नता का दु:ख), (फ़ानी = नश्वर)]

Sunday, October 7, 2012

चाहता कुछ हूँ मगर लब पे दुआ है कुछ और
दिल के अतराफ़ की देखो तो फ़ज़ा है कुछ और

जो मकाँदार हैं दुनिया में उन्हे क्या मालूम
घर की तामीर की हसरत का मज़ा है कुछ और

 जिस्म के साज़ पे सुनता था अजब सा नग़मा
रूह के तारों को छेड़ा तो सदा है कुछ और

पेशगोई पे नजूमी की भरोसा कैसा
वक़्त के दरिया के पानी पे लिखा है कुछ और

तू वफ़ाकेश है जी-जान से चाहा है तुझे
तेरे बारे में पर लोगों से सुना है कुछ और
-शहरयार

Tuesday, October 2, 2012

हुआ ये क्या कि खामोशी भी गुनगुनाने लगी
गई रुतों की हर इक बात याद आने लगी
बुरा कहो कि भला समझो ये हक़ीक़त है
जो बात पहले रुलाती थी अब हँसाने लगी
-शहरयार
दामे-उल्फ़त से छूटती ही नहीं
ज़िन्दगी तुझको भूलती ही नहीं
(दामे-उल्फ़त = प्रेम जाल)

कितने तूफ़ाँ उठाए आँखों ने
नाव यादों की डूबती ही नहीं

तुझसे मिलने की तुझको पाने की
कोई तदबीर सूझती ही नहीं

एक मंज़िल पे रुक गई है हयात
ये ज़मीं जैसे घूमती ही नहीं
(हयात = जीवन)

-शहरयार
कोई नहीं जो हमसे इतना भी पूछे
जाग रहे हो किसके लिए, क्यों सोये नहीं
दुख है अकेलेपन का, मगर ये नाज़ भी है
भीड़ में अब तक इंसानों की खोये नहीं
-शहरयार
न खुशगुमान हो उस पर तू ऐ दिले-सादा,
सभी को देख के वो शोख मुस्कुराता है
-शहरयार


हौसला दिल का निकल जाने दे
मुझको जलने दे पिघल जाने दे
छा रही हैं जो मेरी आँखों पर
उन घटाओं को मचल जाने दे
-शहरयार
अजीब चीज़ है ये वक़्त जिसको कहते हैं,
कि आने पाता नहीं और बीत जाता है
-शहरयार
जिन्दगी जैसी तवक्का थी नहीं, कुछ कम है
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है


घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक ये ज़मीं कुछ कम है

बिछडे़ लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है, यक़ीं कुछ कम है


अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है

आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है
-शहरयार

तुझको खोकर क्यों ये लगता है कि कुछ खोया नहीं
ख़्वाब में आएगा तू, इस वास्ते सोया नहीं

आप बीती पर जहाँ हँसना था जी भर के हँसा
हाँ जहाँ रोना ज़रूरी था वहाँ रोया नहीं

मौसमों ने पिछली फ़स्लों की निगह्बानी न की
इसलिए अबके ज़मीने-दिल में कुछ बोया नहीं

वक़्त के हाथों में जितने दाग़ थे सब धो दिए
दाग़ जो तुझसे मिला है इक उसे धोया नहीं

कैसी महफ़िल है यहाँ मैं किस तरह आ गया
सबके सब ख़ामोश बैठे हैं कोई गोया नहीं
-शहरयार

Friday, September 28, 2012

तेज आंधी में अंधेरों के सितम सहते रहे
रात को फिर भी चिरागों से शिकायत कुछ है
आज की रात मैं घूमूँगा खुली सड़कों पर
आज की रात मुझे ख़्वाबों से फुरसत कुछ है
-शहरयार

Thursday, September 27, 2012

अजीब सानेहा मुझ पर गुजर गया यारो
मैं अपने साये से कल रात डर गया यारो

हर एक नक्श तमन्ना का हो गया धुंधला
हर एक ग़म मेरे दिल का भर गया यारो

भटक रही थी जो कश्ती वो ग़र्क--आब हुई
चढ़ा हुआ था जो दरिया उतर गया यारो

-शहरयार