Thursday, June 13, 2013

सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है

दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यूँ है

तन्हाई की ये कौन सी मन्ज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है

[(रफ़ीक़ = मित्र, हमराही), (ता-हद्द-ए-नज़र = जहाँ तक नज़र जा सके)]

हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-ए-पशेमाँ, पशेमाँ सा क्यूँ है

(ज़ूद-ए-पशेमाँ = अपनी भूल पर बहुत जल्दी पछताने वाला)

क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है
-शहरयार



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