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Friday, October 12, 2012

अजब तरकीब से साने ने रख्खी है बिना इस की
कि सदिया हो गयी इक ईंट भी इसकी नहीं खिसकी

[(साने=बनाने वाला, creator); (बिना=आधार, नीव)

लगी रहती है आमद-रफ़्त जिसमें रोज़ जिस-तिस की
वही रौनक है जिसकी और वही दिलचस्पियाँ जिसकी

यह दुनिया या इलाही! जल्वा गाह-ए-नाज़ है किस की
हज़ारो उठ गये, रौनक़ वही है आज तक इस की

-"नादिर" काकोरवी