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Thursday, May 23, 2019

ख़ुशहाली बिकती नहीं कभी हाट बाज़ार
मन राज़ी तो सब भला हर दिन है त्यौहार
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Thursday, June 7, 2018

फिर न मन में कभी मलाल आया

फिर न मन में कभी मलाल आया
नेकियाँ जब कुएँ में डाल आया।

होड़ सी लग रही थी जाने क्यूँ
मैं तो सिक्का वहाँ उछाल आया।

आज हम भी जवाब दे बैठे
बज़्म में फिर बड़ा उबाल आया।

फ़न की बारीकियाँ समझने का
उम्र के बाद ये कमाल आया।

फेर लीं आपने निगाहें जब
आज दिल में बड़ा मलाल आया।

इक ज़माने से ख़ुद परेशाँ थे
आज तबियत में कुछ उछाल आया।

'आरसी' झूठ जब नहीं बोला
आइने में कहाँ से बाल आया।

-आर. सी. शर्मा “आरसी”

Wednesday, February 8, 2017

तुम्हारे बाद तन्हाई अधिक है 
अकेले जान घबराई अधिक है।
चलो मिलकर कहीं पुल ढूंढ लें हम
हमारे दरमियाँ खाई अधिक है
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Friday, December 23, 2016

बताएं क्या तुम्हें ,कैसे बताएं क्या नवाज़ा है,
बना के दोस्त अपना फिर मुझे ही दर्द देता है
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Sunday, August 28, 2016

फल तो वो देगा जो सबका मीत है

"कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" .........

फल तो वो देगा जो सबका मीत है..

गर हवाएं बह रहीं प्रतिकूल हैं।
राह में कांटे बिछे या फूल हैं।
तम सघन चहुँ ओर ही अंधियार हो।
या कि चहुँदिस दूधिया उजियार हो।
तू तो बस निज कर्म पर विश्वास कर।
और बदले में ना फल की आस कर।
कर्म करने में ही तेरी जीत है।
फल तो वो देगा जो सबका मीत है॥

यह नदी जैसे निरंतर बह रही।
और हवा चलती हुई कुछ कह रही।
कर्म निज निस्वार्थ तुम करते रहो।
और सतत ही मार्ग पर बढ़ते रहो।
बीज जब बोया है फल तो आएगा।
आज ना आया तो कल आ जाएगा।
बीज बोना ही जगत की रीत है।
फल तो वो देगा जो सबका मीत है।।

मात्र तेरा कर्म बुद्धि योग है।
विमुख होना कर्म से अभियोग है।
किस लिए तू मोह में आसक्त है।
जब तू मोहन का सखा है भक्त है।
वो ही कर्त्ता है वही करतार है।
उसके हाथों में ही सब अधिकार है।
गर नहीं उसको तनिक स्वीकार है।
फिर तुम्हारी जीत में भी हार है।
'आरसी' की कर्म पहली प्रीत है।
फल तो वो देगा जो सबका मीत है॥

-आर० सी० शर्मा 'आरसी'

Saturday, April 9, 2016

बहुत हो गया दिल जलाने का मौसम

बहुत हो गया दिल जलाने का मौसम
यही है यही मुस्कुराने का मौसम।

चलो आज फिर से कसम ये उठा लें
न आये कभी दिल दुखाने का मौसम।

सुनो आज मौसम यही कह रहा है
सभी से दिलों को मिलाने का मौसम।

कहीं आग से घर किसी का जले ना
लगी आग फिर से बुझाने का मौसम।

खिजाएं यहाँ फिर पलट कर न आएं
नए पेड़ फिर से लगाने का मौसम।

तुम्हारे हमारे सदा बीच हो अब
किये जो भी वादे निभाने का मौसम ।

बहुत ठण्ड है आज लेकिन करें क्या
तेरी आँख में डूब जाने का मौसम।

चलो हाथ दिल पर रखो और कह दो
यही है दिलों को मिलाने का मौसम।

मिला कर नज़र हो गए तुम परीशां
नरम धूप है गुनगुनाने का मौसम।

अगर हम बहकने लगें रोक देना
नहीं ये नहीं गुल खिलाने का मौसम।

किसी को किसी से मुहब्बत नहीं है
चलो 'आरसी' दूर जाने का मौसम।

-आर. सी . शर्मा "आरसी"

Wednesday, February 24, 2016

हमसे ये दीद-ए-पुरनम नहीं देखे जाते
गमज़दा दोस्त औ हमदम नहीं देखे जाते
बढ़ चले जानिबे मंज़िल तो ये डरना कैसा ?
राह में शोले या शबनम नहीं देखे जाते
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Sunday, January 17, 2016

रात दिन में वक़्त ये ढलता रहा

रात दिन में वक़्त ये ढलता रहा
ज़िंदगी का कारवां चलता रहा

भोर का सपना दिखा कर चल दिए
आदमी बस आँख ही मलता रहा

द्रौपदी की लाज लुटने से अधिक
भीष्म का ही मौन बस खलता रहा

कीमतें जब झूंठ की बढ़ने लगीं
सच बिचारा हाथ ही मलता रहा

आज बेटे बेटियाँ सब मस्त हैं
बाप लेकिन बर्फ सा गलता रहा

आँधियों ने साजिशें तो कीं मगर
इक दिया बेख़ौफ़ सा जलता रहा

ईद की खुशियाँ फ़क़त दो रोज़ की
पर मुहर्रम उम्र भर चलता रहा

ज़ख़्म अब किस को दिखाएँ 'आरसी'
जिसने देखे बस नमक मलता रहा

-आर० सी० शर्मा “ आरसी “

Sunday, November 15, 2015

रो पड़े मासूम कोई यह न होना चाहिए
घाव बच्चों के हमें आँसू से धोना चाहिए
स्वप्न आँखों में सलौने अधर पे मुस्कान हो
आने वाली नस्ल को ऐसा खिलौना चाहिए
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Thursday, May 14, 2015

हमें हर बात पर यूँ आह भरना भी नहीं आता
किसी को देख जलना, डाह करना भी नहीं आता
ज़रा सा मुख़्तलिफ़ अंदाज अपना शायराना है
हमें हर बात पर ही वाह करना भी नहीं आता
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Wednesday, May 6, 2015

बना कर हमसफ़र क्यों रास्ते में छोड़ देता है
किनारे ढूंढती कश्ती को मांझी मोड़ देता है

मुकद्दर भी हमें अब न्याय सच्चा दे नहीं पाता
जिसे दिल में बसाते हैं वही दिल तोड़ देता है

-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Friday, May 1, 2015

कुदरत को छेड़ने की सज़ा हमको मिली है
तड़पा है आसमान ये धरती भी हिली है
-आर० सी० शर्मा "आरसी"
ढूंढा ढूंढी तो लगे जीवन भर का काम
आओ हम तुम ढूँढ लें ह्रदय विलोपित राम
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

जगत कर्ता जगत हर्ता तो केवल राम होता है
उसी का नाम होठों पर सुबह और शाम होता है

यहाँ सब लोग जाने क्यूं हमीं पर तंज हैं कसते
बिचारा 'आरसी' तो मुफ्त में बदनाम होता है

-आर० सी० शर्मा "आरसी"

क्या तेरी औकात बता

क्या तेरी औकात बता
तू मत अपनी ज़ात बता

अपने बीच हुआ जो भी
खुल कर पूरी बात बता

दुनियां आदर देगी पर
मत खुद को सुकरात बता

लिखना केवल सच को सच
दिन को तो मत रात बता

हमको भी कुछ कहना है
तू अपने जज़्बात बता

मेरी जफ़ा का ज़िक्र तो कर
तू ने की जो घात बता

मेरा तो रब मालिक है
कुछ अपने हालात बता

-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Tuesday, July 29, 2014

दर्द में डूबा हुआ है हर फ़साना आजकल 
मुस्कुराए हो गया है इक ज़माना आजकल |
हम जला बैठे हवन में उंगलियाँ जिनके लिए 
चाहते हैं वो ही हमको आजमाना आजकल |
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Tuesday, December 3, 2013

बना कर हाथ को तकिया वो अब फुटपाथ पे सोता,
कभी जिस शख्स में गणतंत्र का उल्लास देखा था  |
मिरी आँखें उजाला देख कर खुलने से कतरातीं,
इन्ही आँखों से मैनें भोर का विन्यास देखा था |
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Sunday, December 1, 2013

माना कि हम छप ना पाए पुस्तक या अख़बारों में
लेकिन ये क्या कम है अपनी गिनती है खुद्दारों में |
हम वो पत्थर हैं जो गहरे गढ़े रहे बुनियादों में,
शायद तुमको नज़र न आए इसीलिए मीनारों में |
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Friday, October 18, 2013

ग़म नहीं जो रास्ता पुरख़ार होगा
बस ज़रा सा हौसला दरकार होगा
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

(पुरख़ार = काँटों से भरा हुआ)


Sunday, September 29, 2013

कभी इसरार की, इज़हार की, इकरार की बातें,
ज़रूरी तो नहीं ग़ज़लों में केवल प्यार की बातें|
ग़मों को ओढ़ कर जो लोग हैं फूटपाथ पर सोते ,
उन्हें शेरो में शामिल कर, न कर रुखसार की बातें|
-आर० सी० शर्मा "आरसी"