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Friday, July 31, 2020

ये जो बोतलों में शराब है ये ख़राब थी ये ख़राब है
इसे छोड़ दे इसे तोड़ दे ये किसी मरज़ की दवा नहीं
-शकील आज़मी 

Monday, July 22, 2019

दर्द आराम बना ज़ख़्म  सीना आया
कितनी मुश्किल से हमें चैन से जीना आया
-शकील आज़मी

Friday, August 4, 2017

ख़्वाब देखो, कोई ख़्वाहिश तो करो

ख़्वाब देखो, कोई ख़्वाहिश तो करो
जीना आसान है, कोशिश तो करो

आज भी प्यार है दुनिया में बहुत
जोड़कर हाथ गुज़ारिश तो करो

जंग ये जीती भी जा सकती है
ज़िंदगी से कोई साज़िश तो करो

सब्ज़-ओ-गुल हैं इसी ख़ाक तले
बनके बादल कभी बारिश तो करो

लोग मरहम भी लगायेंगे 'शकील'
पहले ज़ख़्मों की नुमाइश तो करो

-शकील आज़मी

दुनिया इक दरिया है, पार उतरना भी तो है

दुनिया इक दरिया है, पार उतरना भी तो है
बेईमानी कर लूँ लेकिन मरना भी तो है

पत्थर हूँ भगवान बना रह सकता हूँ कब तक
रेज़ा-रेज़ा हो के मुझे बिखरना भी तो है

ऐसे मुझको मारो कि क़ातिल भी ठहरूँ मैं
आखिर ये इल्ज़ाम किसी पे धरना भी तो है

दिल से तुम निकले हो तो कोई और सही कोई और
ये जो ख़ालीपन है इसको भरना भी तो है

बाँध बनाने वालों को मालूम नहीं शायद
पानी जो ठहरा है उसे गुज़रना भी तो है

साहिल वालों! अभी तमाशा ख़त्म नही मेरा
डूब रहा हूँ लेकिन मुझे उभरना भी तो है

(साहिल = किनारा)

अच्छी है या बुरी है चाहे जैसी है दुनिया
आया हूँ तो कुछ दिन यहाँ ठहरना भी तो है

-शकील आज़मी

Thursday, April 20, 2017

गुज़रता है मेरा हर दिन मगर पूरा नहीं होता

गुज़रता है मेरा हर दिन मगर पूरा नहीं होता
मैं चलता जा रहा हूँ और सफ़र पूरा नहीं होता

लगाना बाग़ तो उसमें मुहब्बत भी ज़रा रखना
परिंदों के बिना कोई शजर पूरा नहीं होता

(शजर = पेड़)

ख़ुदा भी ख़ूब है भगवान की मूरत भी सुन्दर है
मगर जब माँ नहीं होती तो घर पूरा नहीं होता

वो चोटी की बनावट हो कि टोपी की सजावट हो
बिना इन्सानियत के कोई सर पूरा नहीं होता

ये मेरा ख़ालीपन है जो मुझे सैराब करता है
उधर रहता हूँ मैं ख़ुद में जिधर पूरा नहीं होता

(सेराब = भरपूर, भरा हुआ, भीगा हुआ, पानी से सींचा हुआ)

-शकील आज़मी

Wednesday, April 20, 2016

चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए

चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए
मैं तो सूरज हूँ बुझूंगा भी तो जलने के लिए

मंज़िलों ! तुम ही कुछ आगे की तरफ बढ़ जाओ
रास्ता कम है मेरे पाँवों को चलने के लिए

ज़िंदगी अपने सवारों को गिराती जब है
एक मौका भी नहीं देती संभलने के लिए

मैं वो मौसम जो अभी ठीक से छाया भी नहीं
साज़िशें होने लगी मुझको बदलने के लिए

महफ़िल-ए-इश्क़ में शामों की ज़रूरत क्या है
दिल को ही मोम बनाते हैं पिघलने के लिए

ये बहाना तेरे दीदार की चाहत का है
हम जो आते हैं इधर रोज़ टहलने के लिए

-शकील आज़मी

Thursday, December 17, 2015

जान दे सकता है क्या साथ निभाने के लिए

जान दे सकता है क्या साथ निभाने के लिए
हौसला है तो बढ़ा हाथ मिलाने के लिए

ज़ख्मे-दिल इस लिए चेहरे पे सजा रखा है
कुछ तमाशा तो हो दुनिया को दिखाने के लिए

मैंने दीवार पे क्या लिख दिया खुद को इक दिन
बारिशें होने लगी मुझको मिटाने के लिए

इक झलक देख लें तुझको तो चले जाएंगें
कौन आया है यहां उम्र बिताने के लिए

फ़िल्म के परदे पे छपना कोई आसान नहीं
मरना पड़ता है यहाँ नाम कमाने के लिए

-शकील आज़मी

Wednesday, January 14, 2015

फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक

फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक
धरती जितनी प्यासी है, उतना तो जल दे मालिक

वक़्त बड़ा दुखदायक है, पापी है संसार बहुत,
निर्धन को धनवान बना, दुर्बल को बल दे मालिक

कोहरा कोहरा सर्दी है, काँप रहा है पूरा गाँव,
दिन को तपता सूरज दे, रात को कम्बल दे मालिक

बैलों को एक गठरी घास, इंसानों को दो रोटी,
खेतो को भर गेहूं से, काँधों को हल दे मालिक

हाथ सभी के काले हैं, नजरें सबकी पीली हैं,
सीना ढांप दुपट्टे से, सर को आँचल दे मालिक

-शकील आज़मी

कहीं खोया ख़ुदा हमने, कहीं दुनिया गँवाई है
बड़े शहरों में रहने की बड़ी क़ीमत चुकाई है
-शकील आज़मी
पलक भिगोते है दिल से नमी निकालते हैं
हम अपनी आँख से तेरी कमी निकालते हैं
-शकील आज़मी
हम मुलाज़िम हैं मगर थोड़ी अना रखते हैं
हमसे हर हुक्म की तामील नहीं हो पाती

(मुलाज़िम = नौकर, सेवक), (अना = आत्मसम्मान), (हुक्म की तामील = आज्ञा का पालन)

-शकील आज़मी
हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिये
कुछ हुनर चाहिए बाज़ार में रहने के लिये

(चश्म-ए-ख़रीदार = खरीदने वाले की नज़र)

अब तो बदनामी का शोहरत से वो रिश्ता है, के लोग
नंगे हो जाते है अख़बार में रहने के लिये

-शकील आज़मी
कमा के पूरा किया जितना भी ख़सारा था
वहीं से जीत के निकला जहां से मैं हारा था

(ख़सारा = हानि, घाटा, नुक्सान)

न मेरे चेहरे पे दाढ़ी, न सर पे चोटी थी
मगर फ़साद ने पत्थर मुझे भी मारा था

-शकील आज़मी
फ़रेब-ए- ज़िन्दगी खाकर भी चालाकी नहीं आई
कि पानी में भी रह के हमको तैराकी नहीं आई
-शकील आज़मी

धुआँ धुआँ है फ़ज़ा रौशनी बहुत कम है

धुआँ धुआँ है फ़ज़ा, रौशनी बहुत कम है
सभी से प्यार करो ज़िंदगी बहुत कम है

(फ़ज़ा = वातावरण)

मक़ाम जिस का फ़रिश्तों से भी ज़ियादा था
हमारी ज़ात में वो आदमी बहुत कम है

(मक़ाम = स्थान)

हमारे गाँव में पत्थर भी रोया करते थे
यहाँ तो फूल में भी ताज़गी बहुत कम है

जहाँ है प्यार वहाँ सब गिलास ख़ाली हैं
जहाँ नदी है वहाँ तिश्नगी बहुत कम है

(तिश्नगी = प्यास)

तुम आसमान पे जाना तो चाँद से कहना
जहाँ पे हम हैं वहाँ चांदनी बहुत कम है

बरत रहा हूँ मैं लफ़्ज़ों को इख़्तिसार के साथ
ज़ियादा लिखना है और डाइरी बहुत कम है

(इख़्तिसार = संक्षेप)

-शकील आज़मी
कई आँखों में रहती है कई बांहें बदलती है
मुहब्बत भी सियासत की तरह राहें बदलती है

इबादत में न हो गर फ़ायदा तो यूँ भी होता है
अक़ीदत हर नई मन्नत पे दरगाहें बदलती है

(अक़ीदत = श्रद्धा, आस्था, विश्वास)

-शकील आज़मी
अपनी मंज़िल पे पहुंचना भी, खड़े रहना भी
कितना मुश्किल है बड़े होके बड़े रहना भी

काश मैं कोई नगीना नहीं, पत्थर होता
क़ैद जैसा है, अंगूठी में जड़े रहना भी

-शकील आज़मी
मेरी बहती हुई आँखों में तेरे ख़्वाब की फ़स्ल
बाढ़ के पानी में ये घास मर न जाए कहीं

आके ले जा, कि बहुत शोर है दिल में मेरे
तेरी तन्हाई मेरे पास न मर जाए कहीं

-शकील आज़मी
कुछ तो रफ़्तार भी कछुए की तरह है अपनी
और कुछ वक़्त भी ख़रगोश हुआ जाता है
-शकील आज़मी

जो लड़खड़ाए तो खुद को सहारा करते है

जो लड़खड़ाए तो खुद को सहारा करते हैं
हम अपनी मौज को अपना किनारा करते हैं

(मौज = लहर)

बहुत हसीन समझते है अपने आप को हम
जब आईने में हम अपना नज़ारा करते हैं

हम अपने घर को सजाते है आसमाँ की तरह
इसी में चाँद इसी में सितारा करते हैं

ग़ज़ल के पीछे भटकते है सोई रातो में
ये है ख़सारा तो फिर हम ख़सारा करते हैं

(ख़सारा = हानि, घाटा, नुक्सान)

वो जिसका नाम है शोहरत, कमाल लड़की है
हम उसके वास्ते क्या-क्या गवारा करते हैं

मुहब्बतों की ज़ुबाँ हर्फ़ से नहीं बनती
मुहब्बतों में दिलों से पुकारा करते हैं

(हर्फ़ = अक्षर)

- शकील आज़मी