जो लड़खड़ाए तो खुद को सहारा करते हैं
हम अपनी मौज को अपना किनारा करते हैं
(मौज = लहर)
बहुत हसीन समझते है अपने आप को हम
जब आईने में हम अपना नज़ारा करते हैं
हम अपने घर को सजाते है आसमाँ की तरह
इसी में चाँद इसी में सितारा करते हैं
ग़ज़ल के पीछे भटकते है सोई रातो में
ये है ख़सारा तो फिर हम ख़सारा करते हैं
(ख़सारा = हानि, घाटा, नुक्सान)
वो जिसका नाम है शोहरत, कमाल लड़की है
हम उसके वास्ते क्या-क्या गवारा करते हैं
मुहब्बतों की ज़ुबाँ हर्फ़ से नहीं बनती
मुहब्बतों में दिलों से पुकारा करते हैं
(हर्फ़ = अक्षर)
- शकील आज़मी
हम अपनी मौज को अपना किनारा करते हैं
(मौज = लहर)
बहुत हसीन समझते है अपने आप को हम
जब आईने में हम अपना नज़ारा करते हैं
हम अपने घर को सजाते है आसमाँ की तरह
इसी में चाँद इसी में सितारा करते हैं
ग़ज़ल के पीछे भटकते है सोई रातो में
ये है ख़सारा तो फिर हम ख़सारा करते हैं
(ख़सारा = हानि, घाटा, नुक्सान)
वो जिसका नाम है शोहरत, कमाल लड़की है
हम उसके वास्ते क्या-क्या गवारा करते हैं
मुहब्बतों की ज़ुबाँ हर्फ़ से नहीं बनती
मुहब्बतों में दिलों से पुकारा करते हैं
(हर्फ़ = अक्षर)
- शकील आज़मी
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