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Friday, September 27, 2019

आँखें खुली हुई हैं तो मंज़र भी आएगा

आँखें खुली हुई हैं तो मंज़र भी आएगा
काँधों पे तेरे सर है तो पत्थर भी आएगा

हर शाम एक मसअला घर भर के वास्ते
बच्चा ब-ज़िद है चाँद को छू कर भी आएगा

इक दिन सुनूँगा अपनी समाअत पे आहटें
चुपके से मेरे दिल में कोई डर भी आएगा

 (समाअत = सुनना, सुनवाई)

तहरीर कर रहा है अभी हाल-ए-तिश्नगाँ
फिर इस के बाद वो सर-ए-मिंबर भी आएगा

(तहरीर = लेख, लिखावट), (हाल-ए-तिश्नगाँ = प्यासे का हाल), (सर-ए-मिंबर = मंच के ऊपर)

हाथों में मेरे परचम-ए-आग़ाज़-ए-कार-ए-ख़ैर
मेरी हथेलियों पे मिरा सर भी आएगा

(परचम-ए-आग़ाज़-ए-कार-ए-ख़ैर = अच्छा काम शुरू करने का झंडा, Flag of the beginning of good work)

मैं कब से मुंतज़िर हूँ सर-ए-रहगुज़ार-ए-शब
जैसे कि कोई नूर का पैकर भी आएगा

(मुंतज़िर = प्रतीक्षारत), (सर-ए-रहगुज़ार-ए-शब = रात के रास्ते पर), (नूर = प्रकाश, ज्योति, आभा, रोशनी, शोभा, छटा, रौनक, चमक-दमक), (पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख, जिस्म)

-अमीर क़ज़लबाश

Friday, November 11, 2016

हर गाम हादसा है ठहर जाइए जनाब

हर गाम हादसा है ठहर जाइए जनाब
रस्ता अगर हो याद तो घर जाइए जनाब

(गाम = कदम, पग)

ज़िंदा हक़ीक़तों के तलातुम हैं सामने
ख़्वाबों की कश्तियों से उतर जाइए जनाब

(तलातुम = तूफ़ान, बाढ़, पानी का लहराना)

इंकार की सलीब हूँ सच्चाइयों का ज़हर
मुझ से मिले बग़ैर गुज़र जाइए जनाब

(सलीब = सूली)

दिन का सफ़र तो कट गया सूरज के साथ साथ
अब शब की अंजुमन में बिखर जाइए जनाब

(शब = रात),  (अंजुमन = सभा, महफ़िल)

कोई चुरा के ले गया सदियों का ए'तिक़ाद
मिम्बर की सीढ़ियों से उतर जाइए जनाब

(ए'तिक़ाद = श्रद्धा, आस्था, विश्वास, यकीन, भरोसा), (मिम्बर = उपदेश-मंच, भाषण-मंच)

-अमीर क़ज़लबाश


Thursday, August 27, 2015

मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा
-अमीर क़ज़लबाश