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Sunday, May 10, 2020

सब कुछ झूट है लेकिन फिर भी बिल्कुल सच्चा लगता है

सब कुछ झूट है लेकिन फिर भी बिल्कुल सच्चा लगता है
जान-बूझ कर धोका खाना कितना अच्छा लगता है

ईंट और पत्थर मिट्टी गारे के मज़बूत मकानों में
पक्की दीवारों के पीछे हर घर कच्चा लगता है

आप बनाता है पहले फिर अपने आप मिटाता है
दुनिया का ख़ालिक़ हम को इक ज़िद्दी बच्चा लगता है

(ख़ालिक़ = बनानेवाला, सृष्टिकर्ता, ईश्वर)

इस ने सारी क़स्में तोड़ें सारे वा'दे झूटे थे
फिर भी हम को उस का होना अब भी अच्छा लगता है

उसे यक़ीं है बे-ईमानी बिन वो बाज़ी जीतेगा
अच्छा इंसाँ है पर अभी खिलाड़ी कच्चा लगता है

-दीप्ति मिश्रा

Thursday, April 16, 2020

बतर्ज-ए-मीर

अक्सर ही उपदेश करे है, जाने क्या - क्या बोले है।
पहले ’अमित’ को देखा होता अब तो बहुत मुँह खोले है।

वो बेफ़िक्री, वो अलमस्ती, गुजरे दिन के किस्से हैं,
बाजारों की रक़्क़ासा, अब सबकी जेब टटोले है।

(रक़्क़ासा = नर्तकी)

जम्हूरी निज़ाम दुनियाँ में इन्क़िलाब लाया लेकिन,
ये डाकू को और फ़कीर को एक तराजू तोले है।

(जम्हू री निज़ाम= गणतंत्र, जनतंत्र, प्रजातंत्र)

उसका मकतब, उसका ईमाँ, उसका मज़हब कोई नहीं,
जो भी प्रेम की भाषा बोले, साथ उसी के हो ले है।

(मकतब = पाठशाला, स्कूल)

बियाबान सी लगती दुनिया हर रौनक काग़ज़ का फूल
कोलाहल की इस नगरी में चैन कहाँ जो सो ले है

-अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’

Thursday, May 2, 2019

आंखों में तूफ़ान उठाए फ़िरते हैं

आंखों में तूफ़ान उठाए फ़िरते हैं
हम दिल में अरमान उठाए फ़िरते हैं।

जिसके पंछी को इक दिन उड़ जाना है
सब ऐसा ज़िंदान उठाए फ़िरते हैं।

(ज़िंदान = पिंजरा/जेल)

किसको फ़ुर्सत उनके दिल में झांके जो
होठों पे मुस्कान उठाए फ़िरते हैं।

दौलत वालों को ये शिकवा है कि हम
क्यूं अपना ईमान उठाए फ़िरते हैं।

हमसे पूछो दुनिया वालों हम कितने
रिश्तों के एहसान उठाए फ़िरते हैं।

दुनिया में हम जैसे हैं सौदाई जो
उल्फ़त में नुक़सान उठाए फ़िरते हैं।

(सौदाई = दीवाने/प्रेमी)

आहें,आंसू,चाहत, वादे और वफ़ा
क्या क्या हम इंसान उठाए फ़िरते हैं।

- विकास"वाहिद"
०१ मई २०१९

Thursday, January 24, 2019

दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा

दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा
घर को लगा के आग ये मेहमान जाएगा

सब होंगे उस से अपने तआरुफ़ की फ़िक्र में
मुझ को मिरे सुकूत से पहचान जाएगा

(सुकूत = मौन, चुप्पी, ख़ामोशी)

इस कुफ़्र-ए-इश्क़ से मुझे क्यूँ रोकते हो तुम
ईमान वालो मेरा ही ईमान जाएगा

आज उस से मैं ने शिकवा किया था शरारतन
किस को ख़बर थी इतना बुरा मान जाएगा

अब इस मक़ाम पर हैं मिरी बे-क़रारियाँ
समझाने वाला हो के पशेमान जाएगा

 (पशेमान = शर्मिंदा)

दुनिया पे ऐसा वक़्त पड़ेगा कि एक दिन
इंसान की तलाश में इंसान जाएगा

-फ़ना निज़ामी कानपुरी

Wednesday, January 23, 2019

बिखरे हैं सारे ख़्वाब और अरमान इधर-उधर

बिखरे हैं सारे ख़्वाब और अरमान इधर-उधर
ये कौन कर गया मेरा सामान इधर-उधर

खु़द में कहीं- कहीं ही नज़र आ रहा हूँ मैं
ह़ालात कर गए मिरी पहचान इधर-उधर

मिलता नहीं कहीं भी कोई हमनवा मुझे
दिल में छुपाए फिरता हूँ तूफ़ान इधर-उधर

ना-पैद होके रह गया दुनिया में अब सुकून
हर कोई फिर रहा है परेशान इधर-उधर

(ना-पैद = विनष्ट, अप्राप्य, जो अब पैदा न होता हो। जो इतना अप्राप्य या दुर्लभ हो कि मानों कहीं पैदा ही न होता हो)

सज्दागुज़ार हूँ मगर इस दिल का क्या करूँ
भटकाए जा रहा है मिरा ध्यान इधर-उधर

हम आईना नहीं थे सो बस में न रह सके
देखा उन्हें तो हो गया ईमान इधर-उधर

आँसू मिरे समेट के रक्खे न जा सके
होता चला गया मिरा दीवान इधर-उधर

- राजेश रेड्डी

Saturday, January 23, 2016

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूठी क़सम से आपका ईमान तो गया

दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उल्टी शिक़ायतें रहीं एहसान तो गया

डरता हूँ देख कर दिल-ए-बेआरज़ू को मैं
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया

(दिल-ए-बेआरज़ू = बिना इच्छाओं का दिल)

क्या आई राहत आई जो कुंज-ए-मज़ार में
वो वलवला वो शौक़ वो अरमान तो गया

(कुंज-ए-मज़ार = कब्र का कोना, कब्र का एकांत स्थान), (वलवला = उत्साह, उमंग, जोश)

देखा है बुतकदे में जो ऐ शेख कुछ न पूछ
ईमान की तो ये है कि ईमान तो गया

(बुतकदा = मंदिर)

इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो ज़िल्लतें हुईं
लेकिन उसे जता तो दिया जान तो गया

(इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ = प्रेम के रहस्य को प्रकट या ज़ाहिर करना), (ज़िल्लतें = तिरस्कार, अपमान, अनादर)

गो नामाबर से कुछ न हुआ पर हज़ार शुक्र
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया

(नामाबर = पत्रवाहक, संदेशवाहक)

बज़्म-ए-अदू में सूरत-ए-परवाना मेरा दिल
गो रश्क़ से जला तिरे क़ुर्बान तो गया

(बज़्म-ए-अदू = दुश्मन की महफ़िल), (रश्क़ = ईर्ष्या, जलन)

होश-ओ-हवास-ओ-ताब-ओ-तवाँ 'दाग़' जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया

(ताब-ओ-तवाँ = तेज और बल)

-दाग़ देहलवी



Saturday, August 16, 2014

छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी
नये दौर में लिखेंगे मिलकर नई कहानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

आज पुरानी ज़ंजीरों को तोड़ चुके हैं
क्या देखें उस मंज़िल को जो छोड़ चुके हैं
चाँद के दर पे जा पहुंचा है आज ज़माना
नये जगत से हम भी नाता जोड़ चुके हैं
नया ख़ून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

हमको कितने ताजमहल हैं और बनाने
कितने हैं अजंता हम को और सजाने
अभी पलटना है रुख़ कितने दरियाओं का
कितने पवर्त राहों से हैं आज हटाने
नया ख़ून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

आओ मेहनत को अपना ईमान बनाएं
अपने हाथों को अपना भगवान बनाएं
राम की इस धरती को गौतम की भूमी को
सपनों से भी प्यारा हिंदुस्तान बनाएं
नया ख़ून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

दाग गुलामी का धोया है जान लुटा के
दीप जलाए हैं ये कितने दीप बुझा के
ली है आज़ादी तो फिर इस आज़ादी को
रखना होगा हर दुश्मन से आज बचा के
नया ख़ून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी

हर ज़र्रा है मोती आँख उठाकर देखो
माटी में सोना है हाथ बढ़ाकर देखो
सोने की ये गंगा है चांदी की यमुना
चाहो तो पत्थर से धान उगाकर देखो
नया ख़ून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...
-प्रेम धवन


Wednesday, June 12, 2013

नज्रे साहिर (साहिर लुधियानवी को समर्पित)

यूँ वो जुल्मत से रहा दस्तो-गरेबाँ यारो
उस से लरजाँ थे बहुत शब के निगहबाँ यारो

[(जुल्मत = अंधकार), (दस्तो-गरेबाँ = संघर्ष करता हुआ), (लरजाँ=कंपित /थरथराते हुए), (निगहबाँ=रक्षक)]

उस से हर गाम दिया हौसले -ताज़ा हमें
वो न इक पल भी रहा हमसे गुरेजाँ यारो

[(गाम = डग, कदम, पग), (हौसले -ताज़ा= नया हौसला), (गुरेजाँ =भागा हुआ, बचकर निकलने वाला)]

उसने मानी न कभी तीरगी-ए-शब से शिकस्त
दिल अँधेरों में रहा उसका फ़रोज़ाँ यारो

[(तीरगी-ए-शब= रात का अँधेरा), (फ़रोज़ाँ= प्रकाशमान, रौशन)]

उसको हर हाल में जीने की अदा आती थी
वो न हालात से होता था परीशाँ यारो

उसने बातिल से न ता-जीस्त किया समझौता
दहर में उस सा कहाँ साहिबो-ईमाँ यारो

[(बातिल = असत्य), (ता-जीस्त = जीवन भर), (साहिबो-ईमाँ = ईमान वाला)]

उसको थी कश्मकशे-दैरो-हरम से नफ़रत
उस सा हिन्दू न कोई उस सा मुसलमाँ यारो

(कश्मकशे-दैरो-हरम = मंदिर मस्जिद के झगड़े)

उसने सुल्तानी-ए-जम्हूर के नग्मे लिखे
रूह शाहों की रही उससे परीशाँ यारो

(सुल्तानी-ए-जम्हूर = आम जनता की बादशाहत)

अपने अशआर की शमाओं से उजाला करके
कर गया शब का सफ़र कितना वो आसाँ यारो

उसके गीतों से ज़माने को सँवारे, आओ
रुहे-साहिर को अगर करना है शादाँ यारो

(शादाँ =प्रसन्न)

-हबीब जालिब 

Friday, May 10, 2013


वे ख़ाम-ख़्वाह हथेली पे जान रखते हैं
अजीब लोग हैं मुँह में ज़ुबान रखते हैं

ख़ुशी तलाश न कर मुफ़लिसों की बस्ती में
ये शय अभी तो यहाँ हुक़्मरान रखते हैं

यहँ की रीत अजब दोस्तो, रिवाज अजब
यहाँ ईमान फक़त बे-ईमान रखते हैं

चबा-चबा के चबेने-सा खा रहे देखो
वो अपनी जेब में हिन्दोस्तान रखते हैं

ग़मों ने दिल को सजाया, दुखों ने प्यार किया
ग़रीब हम हैं मगर क़द्रदान रखते हैं

वे जिनके पाँव के नीचे नहीं ज़मीन कोई
वे मुठ्ठियों में कई आसमान रखते हैं

सजा के जिस्म न बेचें यहाँ, कहाँ बेचें
ग़रीब लोग हैं, घर में दुकान रखते हैं।
-नूर मुहम्मद `नूर'

Sunday, April 21, 2013

जहाँ में अहले-ईमाँ, सूरते ख़ुरशीद जीते हैं,
इधर डूबे उधर निकले, उधर डूबे इधर निकले।
-अल्लामा इक़बाल

[(अहले-ईमाँ = ईमान वाले लोग, सच्चे लोग), (सूरते ख़ुरशीद - सूरज की तरह)]

Sunday, December 2, 2012

इस अहद के इन्साँ मे वफ़ा ढूँढ रहे हैं,
हम ज़हर की शीशी मे दवा ढूँढ रहे हैं।

दुनिया को समझ लेने की कोशिश में लगे हम,
उलझे हुए धागों का सिरा ढूँढ रहे हैं।

पूजा में, नमाज़ों में, अज़ानों में, भजन में,
ये लोग कहाँ अपना ख़ुदा ढूँढ रहे हैं।

पहले तो ज़माने में कहीं खो दिया ख़ुद को,
आईने में अब अपना पता ढूँढ रहे हैं।

ईमाँ की तिजारत के लिए इन दिनों हम भी,
बाज़ार में अच्छी-सी जगह ढूँढ रहे हैं।
-राजेश रेड्डी

Wednesday, November 21, 2012

न डालो बोझ ज़हनों पर कि बचपन टूट जाते हैं,
सिरे नाज़ुक हैं बंधन के जो अक्सर छूट जाते हैं।

नहीं दहशत गरों का कोई मज़हब या कोई ईमाँ,
ये वो शैताँ हैं जो मासूम ख़ुशियाँ लूट जाते हैं।

हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो,
अगर ठोकर लगा दें हम तो चश्मे फूट जाते हैं।

[(रेग ए सहरा = रेगिस्तान की रेत), (चश्मा  = पानी का सोता)]

नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आँगन में,
कि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं अपने छूट जाते हैं।

[(संग = पत्थर), (ख़िश्त = ईंट)]

न रख रिश्तों की बुनियादों में कोई झूट का पत्थर,
लहर जब तेज़ आती है घरौंदे टूट जाते हैं।

’शेफ़ा’ आँखें हैं मेरी नम ये लम्हा बार है मुझ पर,
 बहुत तकलीफ़ होती है जो मसकन छूट जाते हैं।

(मसकन = रहने की जगह, घर)

-इस्मत ज़ैदी

Thursday, September 27, 2012

मस्जिद तो बना दी शब भर में, ईमाँ की हरारत वालों ने,
मन अपना पुराना पापी है, बरसों में नमाज़ी बन न सका।
-अल्लामा इक़बाल

[(शब = रात), (ईमां की हरारत वालों ने = धर्मावलंबी, जिनको धर्म का बुखार चढ़ा है)]

Tuesday, September 25, 2012

आस्था का जिस्म घायल रूह तक बेज़ार है
क्या करे कोई दुआ जब देवता बीमार है

तीरगी अब भी मज़े में है यहाँ पर दोस्तो
इस शहर में जुगनुओं को रोशनी दरकार है

भूख से बेहाल बच्चों को सुनाकर चुटकुले
जो हँसा दे, आज का सबसे बड़ा फ़नकार है

मैं मिटा के ही रहूँगा मुफ़लिसी के दौर को
बात झूठी रहनुमा की है, मगर दमदार है

वो रिसाला या कोई नॉवल नहीं है दोस्तो
पढ़ रहा हूँ मैं जिसे, वो दर्द का अख़बार है

ख़ूबसूरत जिस्म हो या सौ टका ईमान हो
बेचने की ठान लो तो हर तरफ़ बाज़ार है

रास्ते ही रास्ते हों जब शहर की कोख में
मंज़िलों को याद रखना और भी दुश्वार है
-डॉ कुमार विनोद