नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर
जो हाथ में नहीं है वो पत्थर तलाश कर
सूरज के इर्द-गिर्द भटकने से फ़ाएदा
दरिया हुआ है गुम तो समुंदर तलाश कर
तारीख़ में महल भी है हाकिम भी तख़्त भी
गुमनाम जो हुए हैं वो लश्कर तलाश कर
रहता नहीं है कुछ भी यहाँ एक सा सदा
दरवाज़ा घर का खोल के फिर घर तलाश कर
कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन
फिर इस के बा'द थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर
-निदा फ़ाज़ली
Thursday, January 17, 2019
न दीद है, न सुख़न, अब न हर्फ़ है, न पयाम
कोई भी हीला-ए-तस्कीं नहीं, और आस बहुत है
उम्मीद-ए-यार, नज़र का मिजाज़, दर्द का रंग
तुम आज कुछ भी न पूछो कि दिल उदास बहुत है
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़