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Tuesday, August 20, 2019

दुई का तज़्किरा तौहीद में, पाया नहीं जाता

दुई का तज़्किरा तौहीद में, पाया नहीं जाता
जहाँ मेरी रसाई है, मिरा साया नहीं जाता

(दुई = दो का भाव, द्वैत), (तज़्किरा = चर्चा, बातचीत), (तौहीद = ईश्वर को एक मानना), (रसाई = पहुंच)

मिरे टूटे हुए पा-ए-तलब का, मुझ पे एहसाँ है
तुम्हारे दर से उठ कर अब कहीं, जाया नहीं जाता

(पा-ए-तलब = इच्छा रूपी पैर)

मोहब्बत हो तो जाती है, मोहब्बत की नहीं जाती
ये शोअ'ला ख़ुद भड़क उठता है, भड़काया नहीं जाता

फ़क़ीरी में भी मुझ को माँगने से, शर्म आती है
सवाली हो के मुझ से हाथ, फैलाया नहीं जाता

चमन तुम से इबारत है, बहारें तुम से ज़िंदा हैं
तुम्हारे सामने फूलों से, मुरझाया नहीं जाता

(इबारत = शब्द-चित्रण, प्रतीक)

मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल, मख़्सूस होते हैं
ये वो नग़्मा है जो हर साज़ पर, गाया नहीं जाता

(मख़्सूस = विशिष्ट, ख़ास)

मोहब्बत अस्ल में 'मख़मूर', वो राज़-ए-हक़ीक़त है
समझ में आ गया है फिर भी, समझाया नहीं जाता

- "मख़मूर" देहलवी

Friday, October 7, 2016

राज़ मेरे दिल का अब जो आम है

राज़ मेरे दिल का अब जो आम है
ये यक़ीनन आँसुओं का काम है

चारागर तेरा यहाँ क्या काम है
यार की तस्वीर से आराम है

(चारागर = चिकित्सक)

अश्क तो ख़ुशियों की चाहत ने दिये
ग़म बेचारा मुफ़्त में बदनाम है

(अश्क = आँसू)

बोझ बन जाती है दिल पर हर उमीद
ना-उमीदी में बड़ा आराम है

आज इधर का रुख़ किया क्यों ज़िंदगी !
मुझसे ऐसा क्या ज़रूरी काम है

अब तो अख़बारों में पढ़ लेता हूँ मैं
आज मुझ पर कौन सा इल्ज़ाम है

- राजेश रेड्डी

Wednesday, September 21, 2016

आना भी नहीं है कहीं जाना भी नहीं है

आना भी नहीं है कहीं जाना भी नहीं है
अब मिलने मिलाने का ज़माना भी नहीं है

तुम भी तो मेरे चाहने वालों में थे शामिल
किस्सा ये कोई ख़ास पुराना भी नहीं है

इस दिल में कई राज़ तो ऐसे भी हैं जिनको
करना भी नहीं याद भुलाना भी नहीं है

मंदिर में भी, मैखाने में भी शोर बहुत है
अपना तो कहीं और ठिकाना भी नहीं है

दुनिया को बुरा कहना है हर हाल में लेकिन
दुनिया को हमें छोड़ के जाना भी नहीं है

साहिल पे गुज़र हो तो समंदर से गरज़ क्या
खोना भी नहीं कुछ हमें पाना भी नहीं है

कुछ लोग न समझे हैं न समझेंगे हकीकत
हमको ये ग़ज़ल उनको सुनाना भी नहीं है

-अशोक मिज़ाज बद्र

Wednesday, March 9, 2016

तह-ब-तह है राज़ कोई आब की तहवील में

तह-ब-तह है राज़ कोई आब की तहवील में
ख़ामुशी यूँ ही नहीं रहती है गहरी झील में

(तह-ब-तह = एक के नीचे एक, परत दर परत), (आब = पानी), (तहवील = सपुर्दगी, अमानत, खज़ाना)

मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
आज तक मसरूफ़ हूँ उस ख़्वाब की तकमील में

(मसरूफ़ = मशगूल, काम में लगा हुआ), (तकमील = पूरा होने की क्रिया या भाव, निष्पादन, पूर्ति)

हर घड़ी अहकाम जारी करता रहता है ये दिल
हाथ बांधे मैं खड़ा हूँ हुक्म की तामील में

(अहकाम = हुक्म का बहुवचन, आदेश), (तामील = आज्ञा का पालन)

कब मिरी मर्ज़ी से कोई काम होता है तमाम
हर घड़ी रहता हूँ मैं क्यूँ बेसबब ताजील में

(बेसबब = बिना कारण), (ताजील = जल्दी, शीघ्रता)

मांगती है अब मोहब्बत अपने होने का सुबूत
और मैं जाता नहीं इज़हार की तफ़्सील में

(इज़हार = ज़ाहिर या प्रकट करना), (तफ़्सील = विस्तृत वर्णन, ब्योरा)

मुद्दआ तेरा समझ लेता हूँ तेरी चाल से
तू परेशां है अबस अल्फ़ाज़ की तावील में

(अबस = व्यर्थ, नाहक), (तावील = व्याख्या)

अपनी ख़ातिर भी तो 'आलम' चीज़ रखनी थी कोई
अब कहाँ कुछ भी बचा है तेरी इस ज़म्बील में

(ज़म्बील = थैली, विशेषतः वो थैली जिसमें फ़कीर लोग भीख में मिली हुई चीज़ें रखते हैं)

-आलम खुर्शीद

Friday, February 26, 2016

जमा हुआ है फ़लक पे कितना ग़ुबार मेरा

जमा हुआ है फ़लक पे कितना ग़ुबार मेरा
जो मुझ पे होता नहीं है राज़ आश्कार मेरा

(फ़लक = आसमान), (ग़ुबार = गर्द, धूल, मन में दबाया हुआ क्रोध), (आश्कार = स्पष्ट, प्रकट, खुला हुआ)

तमाम दुनिया सिमट न जाए मिरी हदों में
कि हद से बढ़ने लगा है अब इंतिशार मेरा

(इंतिशार = फैलना, बिखरना)

धुआँ सा उठता है किस जगह से मैं जानता हूँ
जलाता रहता है मुझको हर पल शरार मेरा

(शरार = चिंगारी)

बदल रहे हैं सभी सितारे मदार अपना
मिरे जुनूँ पे टिका है दार-ओ-मदार मेरा

(मदार = दौरा करने का रास्ता, भ्रमण मार्ग), (दार-ओ-मदार = निर्भरता)

किसी के रस्ते पे कैसे नज़रें जमाए रक्खूँ
अभी तो करना मुझे है ख़ुद इंतिज़ार मेरा

तिरी इताअत क़ुबूल कर लूँ भला मैं कैसे
कि मुझपे चलता नहीं है ख़ुद इख़्तियार मेरा

(इताअत = हुक्म मानना, आज्ञापालन),  (इख़्तियार = अधिकार, प्रभुत्व)

बस इक पल में किसी समुन्दर में जा गिरूंगा
अभी सितारों में हो रहा है शुमार मेरा

(शुमार = गिनती, हिसाब)

- आलम खुर्शीद

Wednesday, February 24, 2016

रंग बिरंगे सपने रोज़ दिखा जाता है क्यों

रंग बिरंगे सपने रोज़ दिखा जाता है क्यों
बैरी चाँद हमारी छत पर आ जाता है क्यों

क्या रिश्ता है आखिर मेरा एक सितारे से
रोज़ वो कोई राज़ मुझे बतला जाता है क्यों

पलकें बंद करूं तो सब कुछ अच्छा लगता है
आँखें खोलूँ तो कोहरा सा छा जाता है क्यों

हर पैकर का अपना अपना साया होता है
लेकिन साये को साया ही खा जाता है क्यों

(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख)

मेरे हिस्से की किरणें जब कोई चुराता है
नील गगन पर सूरज वो शरमा जाता है क्यों

शायद उसके दिल में कोई चोर समाया है
देख के मुझको यार मेरा घबरा जाता है क्यों

- आलम खुर्शीद

मज़ा अलग है जीने में

मज़ा अलग है जीने में
राज़ अगर हों सीने में।

तूफां से टकराता हूँ
खस्ताहाल सफीने में।

(सफीना = नाव, कश्ती)

कभी कभी हंस लेते हैं
कभी सालों में महीने में।

गुज़री है कुछ यूं अब तक
टाट कभी पशमीने में।

फर्क नहीं फकीरों को
पत्थर और नगीने में।

मेहनत कर, बहा ज़रा
महक है फिर पसीने में।

हर सम्त दिखाई देता है
मथुरा कभी मदीने में।

(सम्त = तरफ, ओर)

ये आंसू हैं, शराब नहीं
जिगर लगता है पीने में।

- विकास वाहिद

Monday, January 25, 2016

मरज़ जब हद से बढ़े तो इलाज भी ज़रूरी है

मरज़ जब हद से बढ़े तो इलाज भी ज़रूरी है
दुश्मन हद से बढे तो महाज़ भी ज़रूरी है

(महाज़ = युद्धस्थल, रणभूमि)

सादामिजाज़ी को बुज़दिली समझते हैं लोग
वजूद के लिए तल्ख़ मिजाज़ भी ज़रूरी है

(वजूद = अस्तित्व)

थक जाता है सूरज दिन भर लड़ते हुए
अंधेरों के मुकाबिल एक सिराज भी ज़रूरी है

(सिराज = दीपक, चिराग़)

रहें जहां में यूं के कोई ग़म ही न हो जैसे
ज़िंदा रहने के लिए ये मजाज़ भी ज़रूरी है

(मजाज़ =  जो वास्तविक न हो, भ्रम)

माना के नर्म लहज़ा है अदब की ज़रुरत
हक़ के लिए मगर ऊंची आवाज़ भी ज़रूरी है

मुश्किलों से जंग में बुलंद इरादे काफी नहीं
कसा हुआ हो बदन का साज़ भी ज़रूरी है

खुली किताब बनके हासिल नहीं है कुछ
सीने में छुपे हुए कुछ राज़ भी ज़रूरी हैं

मंज़िल की तलाश है तो चलना है पहली शर्त
छूना है गर आसमां तो परवाज़ भी ज़रूरी है

(परवाज़ = उड़ान)

तेरी दौलत मेयार नहीं है तेरी इज़्ज़त का
सर उठाके चलने के लिए एज़ाज़ भी ज़रूरी है।

[(मेयार = पैमाना, मापदंड), (एज़ाज़ = सम्मान, प्रतिष्ठा, इज़्ज़त)]

- विकास वाहिद

Thursday, December 31, 2015

कहानी के कभी अंजाम से आग़ाज़ तक जाएँ

कहानी के कभी अंजाम से आग़ाज़ तक जाएँ
ये ख़्वाहिश है किसी दिन ज़िन्दगी के राज़ तक जाएँ

(अंजाम = अंत, समाप्ति, परिणाम ), (आग़ाज़ = प्रारम्भ)

निकल कर साज़ के तारों से पहुँचेंगे वो ही दिल तक
जो नग़मे दिल के तारों से निकल कर साज़ तक जाएँ

कहा करती है कितनी अनकही बातें ख़मोशी भी
ज़रूरी तो नहीं नाले किसी आवाज़ तक जाएँ

(नाले = आर्तनाद, पुकार, चीत्कार, रुदन, रोना)

हमें फ़ुर्सत ही कब है ज़िन्दगी का बोझ ढोने से
उठाने के लिए जो हम किसी के नाज़ तक जाएँ

फ़लक यूँ तो बस इक परवाज़ की दूरी पे है, लेकिन
हम इन टूटे परों से कैसे उस परवाज़ तक जाएँ

(फ़लक = आसमान), (परवाज़ = उड़ान), (परों = पंखों)

बची है इक यही सूरत जहाँ में अम्न की अब तो
पलटकर तीर अपने अपने तीरअंदाज़ तक जाएँ

(अम्न = शांति, सुकून), (तीरअंदाज़ = तीर चलाने वाला)

किसी एज़ाज़ को आना है तो आएगा ख़ुद हम तक
हम अहल-ए-फ़न हैं क्यों चल कर किसी एज़ाज़ तक जाएँ

(एज़ाज़ = सम्मान, प्रतिष्ठा, इज़्ज़त), (अहल-ए-फ़न = कलाकार, गुणवान, हुनरमंद)

तमन्ना है कभी छू पाएँ 'ग़ालिब' के तख़य्युल को
ये अरमां है किसी दिन 'मीर' के अंदाज़ तक जाएँ

(तख़य्युल = सोच, विचार, कल्पना, खयाल)

-राजेश रेड्डी

Friday, November 13, 2015

संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है

संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
इक धुँध से आना है इक धुँध में जाना है

(फ़साना = विवरण, हाल), (शय = वस्तु, चीज़)

ये राह कहाँ से है ये राह कहाँ तक है
ये राज़ कोई राही समझा है न जाना है

इक पल की पलक पर है ठहरी हुई ये दुनिया
इक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है

क्या जाने कोई किस पर किस मोड़ पर क्या बीते
इस राह में ऐ राही हर मोड़ बहाना है

हम लोग खिलौना हैं इक ऐसे खिलाड़ी का
जिस को अभी सदियों तक ये खेल रचाना है

-साहिर लुधियानवी



 

Tuesday, October 27, 2015

जियो तो ऐसे जियो जैसे सब तुम्हारा है

जियो तो ऐसे जियो जैसे सब तुम्हारा है
मरो तो ऐसे कि जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं |

ये  एक  राज़  के दुनिया न जिसको जान  सकी
यही वो राज़ है जो ज़िंदगी का  हासिल  है,
तुम्हीं  कहो  तुम्हे ये बात कैसे  समझाऊँ
कि ज़िंदगी  की  घुटन ज़िंदगी की कातिल  है,
हर  इक  निगाह  को  कुदरत का  ये इशारा है
जियो तो ऐसे जियो जैसे सब तुम्हारा है ।

जहां में आ के जहां से खिचें-खिचें न रहो
वो  ज़िंदगी  ही  नही  जिसमें  आस  बुझ  जाए,
कोई भी प्यास दबाये से दब नहीं सकती
इसी  से  चैन  मिलेगा  कि प्यास  बुझ  जाए,
ये  कह के मुड़ता  हुआ  ज़िंदगी  का  धारा  है
जियो तो  ऐसे जियो जैसे सब तुम्हारा है

ये  आसमां, ये ज़मीं, ये फ़िज़ा, ये नज़्ज़ारे
तरस  रहे  हैं  तुम्हारी मेरी नज़र  के लिए
नज़र चुरा  के हर इक शै को  यूं  न ठुकराओ
कोई  शरीक-ए-सफ़र  ढूँढ़ लो सफ़र के लिए
बहुत  करीब  से  मैंने  तुम्हें  पुकारा  है
जियो तो ऐसे जियो जैसे सब तुम्हारा है ।

-साहिर लुधियानवी



Thursday, August 27, 2015

अक़्ल को क्यूँ बताएँ इश्क़ का राज़
ग़ैर को राज़-दाँ नहीं करते
-तिलोकचंद महरूम

Saturday, August 16, 2014

पीड़ितों के बीच से तलवार लेकर आ गये
आप नाटक में नया किरदार लेकर आ गये |

मैं समझता था हर इक शै है बहुत सस्ती यहाँ
एक दिन बाबा मुझे बाज़ार लेकर आ गये |

माँ के हाथों की बनी स्वेटर थमाई हाथ में
आप बच्चे के लिए संसार लेकर आ गये |

क़त्ल, चोरी, घूसखोरी, खुदखुशी बस, और क्या
फिर वही मनहूस सा अख़बार लेकर आ गये |

दोस्तों से अब नहीं होती हैं बातें राज़ की
चन्द लम्हे बीच में दीवार लेकर आ गये |

-आशीष नैथानी 'सलिल'

Wednesday, July 3, 2013

रहें बेफिक्र कैसे

रहें बेफिक्र कैसे आओ इसका राज़ हम सीखें,
परिंदों से नया जीने का ये अंदाज़ हम सीखें ।
कोइ रुत हो, कोई मौसम, हवा प्रतिकूल हो चाहे,
चलो अम्बर को छू लेने की वो परवाज़ हम सीखें।
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

Tuesday, July 2, 2013

जिस तरफ डालो नजर सैलाब का संत्रास है

जिस तरफ डालो नज़र सैलाब का संत्रास है
बाढ़ में डूबे शजर हैं नीलगूँ आकाश है

आम चर्चा है बशर ने दी है कुदरत को शिकस्त
कूवते इंसानियत का राज़ इस जा फाश है.
-अदम गोंडवी

Tuesday, June 18, 2013

सच कहना और पत्थर खाना पहले भी था आज भी है
बन के मसीहा जान गँवाना पहले भी था आज भी है

दफ़्न हजारों ज़ख्म जहाँ पर दबे हुए हैं राज़ कई
दिल के भीतर वो तहखाना पहले भी था आज भी है

जिस पंछी की परवाज़ों में दिल की लगन भी शामिल हो
उसकी ख़ातिर आबोदाना पहले भी था आज भी है

कतना, बुनना, रंगना, सिलना, फटना फिर कतना, बुनना
जीवन का ये चक्र पुराना पहले भी था आज भी है

बदल गया है हर इक क़िस्सा फानी दुनिया का लेकिन
मेरी कहानी तेरा फ़साना पहले भी था आज भी है
-हस्तीमल हस्ती

Wednesday, May 1, 2013

काग़ज़ का इक ताज महल है
काग़ज़ का अंदाज़ है जिस में
काग़ज़ का हर राज़ है जिस में
काग़ज़ के वादों में लिपटी
काग़ज़ की मुमताज़ है जिस में
-कँवल ज़ियाई

Thursday, April 4, 2013

फ़ुगाँ कि मुझ ग़रीब को हयात का ये हुक्म है,
समझ हरेक राज़ को मगर फ़रेब खाए जा ।
- जोश मलीहाबादी

[(फ़ुगाँ = दुहाई), (हयात = जीवन)]






 

Sunday, March 24, 2013

इंसान मुसीबत में हिम्मत न अगर हारे,
आसाँ से वह आसाँ है, मुश्किल से जो मुश्किल है ।

दुनिया की तरक्क़ी है, इस राज़ से वाबस्ता,
इंसान के क़ब्ज़े में, सब कुछ है अगर दिल है ।

(वाबस्ता =  सम्बन्धित)

-सफ़ी लखनवी 

Sunday, December 2, 2012

सबब हर एक मुझसे पूछता है मेरे रोने का
इलाही सारी दुनिया को मैं कैसे राज़दां कर लूँ।।
ताजवर नजीबाबादी