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Saturday, November 12, 2016

बेक़रारी सी बेक़रारी है

बेक़रारी सी बेक़रारी है
वस्ल है और फ़िराक तारी है

जो गुज़ारी न जा सकी हमसे
हमने वो ज़िन्दगी गुज़ारी है

उस से कहियो के दिल की गलियों में
रात दिन तेरी इन्तेज़ारी है

एक महक सम्त-ए-जाँ से आई थी
मैं ये समझा तेरी सवारी है

हादसों का हिसाब है अपना
वरना हर आन सबकी बारी है

बिन तुम्हारे कभी नहीं आई
क्या मेरी नींद भी तुम्हारी है

निगेहबाँ क्या हुए के लोगों पर
अपना साया भी अब तो भारी है

ख़ुश रहे तू के ज़िन्दगी अपनी
उम्र भर की उम्मीदवारी है

आप में कैसे आऊँ मैं तुझ बिन
साँस जो चल रही है आरी है

हिज्र हो या विसाल हो, कुछ हो
हम हैं और उसकी यादगारी है

-जॉन एलिया


Tuesday, October 23, 2012

दोस्त बन बन के मिले मुझको मिटाने वाले
मैंने देखे हैं कई रंग बदलने वाले

तुमने चुप रहकर सितम और भी ढाया मुझ पर
तुमसे अच्छे हैं मेरे हाल पे हँसनेवाले

मैं तो इख़लाक़ के हाथों ही बिका करता हूँ
और होंगे तेरे बाज़ार में बिकनेवाले

(अख़लाक़ = इख़लाक़ = शिष्टाचार, सद्वृत्ति)

आख़री बार सलाम-ए-दिल-ए-मुज़्तर ले लो
फिर ना लौटेंगे शब-ए-हिज्र पे रोनेवाले

[(मुज़्तर = व्याकुल, बेचैन, बेबस, लाचार) (सलाम-ए-दिल-ए-मुज़्तर = व्याकुल दिल का सलाम), (शब-ए-हिज्र = जुदाई की रात)]

-सईद राही

Friday, September 28, 2012

एक रंगीन झिझक एक सादा पयाम
कैसे भूलूं किसी का वो पहला सलाम
-
कैफ़ी आज़मी
कुछ भी ना बचा कहने को हर बात हो गयी
आओ कहीं शराब पीयें रात हो गयी


सूरज को चोंच में लिये मुर्गा खडा रहा
खिड्की के पर्दे खीच दिये रात हो गयी


रस्ते में वो मिला था मैं बच कर गुज़र गया
उसकी फटी कमीज़ मेरे साथ हो गयी


मुद्दत से थी तलाश मिलें, और मिल लिये
दो पल रुके, सलाम हुआ, बात हो गयी


नक्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिये
इस शहर में तो सबसे मुलाकात हो गई


-निदा फ़ाज़ली

 

Tuesday, September 25, 2012

तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा

तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा,
सफ़र एक उम्र का पल में तमाम कर लूँगा।

नज़र मिलाई तो पूछूंगा इश्क़ का अंजाम,
नज़र झुकाई तो खाली सलाम कर लूँगा।

जहान-ए-दिल पे हुकूमत तुम्हे मुबारक हो,
रही शिकस्त तो वो अपने नाम कर लूँगा।

- कैफ़ी आज़मी
करते नहीं कबूल अब वो मेरा सलाम भी,
करते थे खुद जो सलाम अभी कल ही की बात है
-शायर: नामालूम