Tuesday, September 25, 2012

तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा

तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा,
सफ़र एक उम्र का पल में तमाम कर लूँगा।

नज़र मिलाई तो पूछूंगा इश्क़ का अंजाम,
नज़र झुकाई तो खाली सलाम कर लूँगा।

जहान-ए-दिल पे हुकूमत तुम्हे मुबारक हो,
रही शिकस्त तो वो अपने नाम कर लूँगा।

- कैफ़ी आज़मी

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